केंद्र सरकार ने तीसरे प्रेस आयोग बनने की संभावनाओं को
ख़ारिज कर दिया है। सूचना के अधिकार के तहत मांगे गए एक आवेदन के जबाब में सूचना और
प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार के अवर सचिव सह केन्द्रीय जन सूचना पदाधिकारी
शैलेश गौतम ने यह जानकारी आवेदक सूचना अधिकार कार्यकर्त्ता अभिषेक रंजन को दी है।
जबाब में सरकार की ओर से बताया गया है कि तीसरे प्रेस आयोग के गठन संबंधी कोई
प्रस्ताव सरकार के अधीन विचाराधीन नही है।
इस ब्लॉग पर कोशिश है कि मीडिया जगत की विचारोत्तेजक और नीतिगत चीजों को प्रेषित और पोस्ट किया जाए। मीडिया के अंतर्विरोधों पर आपके भी विचार आमंत्रित हैं।
बुधवार, 3 सितंबर 2014
मंगलवार, 2 सितंबर 2014
इन्क्लूसिव मीडिया – यूएनडीपी फैलोशिप 2014
इन्क्लूसिव मीडिया- यूएनडीपी फैलोशिप 2014 के लिए हिन्दी और अंग्रेजी मीडिया से जुड़े ओड़िशा, झारखंड, असम और पंजाब के कुल छह पत्रकारों का चयन हुआ है। चयनित फैलो अपनी रोजमर्रा की पत्रकारिता से समय निकालकर देश के ग्रामीण और वंचित समुदायों के बीच समय बिताएंगे ताकि समाज के इस हिस्से की चिन्ता और सरोकारों को व्यापक कवरेज मिल सके और उसपर लोगों का ध्यान जा सके। फैलोशिप के अन्तर्गत चयनित प्रत्येक अभ्यर्थी को समाचारों को एकत्र करने और इस क्रम में हुए खर्चे की भरपाई के लिए अधिकतम 150,000 की राशि प्रदान की जाएगी।
फैलोशिप के लिए अभ्यर्थियों का चयन प्रसिद्ध पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता श्री विनीत नारायण, विकासपरक मुद्दों के विशेषज्ञ तथा विकासशील समाज अध्ययन पीठ(सीएसडीएस) के वरिष्ठ फैलो प्रोफेसर पीटर डीसूजा, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑव मैनेजमेंट, अहमदाबाद(आईआईएम-ए) के पूर्व डीन प्रो. जगदीप छोकर, यूएन कोऑर्डिनेशन एडवाइजर सुश्री राधिका कौल बत्रा तथा आईआईटी दिल्ली की अर्थशास्त्री(विकास) सुश्री रीतिका खेड़ा ने किया।
चयनित अभ्यर्थियों के नाम और उनके परियोजना प्रस्ताव का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है :
1. सुश्री शारदा लहंगीर, एएनआई/ विमेन्स फीचर सर्विस (ओडिशा के छह जनजातीय जिलों में वनाधिकार के क्रियान्वयन और आजीविका के लिहाज से आदिवासी समुदाय पर प्रभाव का अध्ययन)
2. रजनीश आनंद, प्रभात खबर, रांची ( झारखंड के चाईबासा और सिंहभूम जिले में माहवारी से संबंधित व्याप्त भ्रांतियों और इससे संबंधित स्वास्थ्गत साफ-सफाई की समस्या पर केंद्रित अध्ययन)
3. आलोका कुजूर, स्वतंत्र पत्रकार, अपनी रांची ( झारखंड के बिरहोर समुदाय की महिलाओं और बच्चों के संदर्भ में खाद्य-सुरक्षा, जमीन और जीविका के मुद्दे पर केंद्रित अध्ययन)
4. जसिन्ता केरकेट्टा, स्वतंत्र पत्रकार, खबरमंत्र (झारखंड के पाँच जिलों में पहाड़िया समुदाय की रोजगार और सांस्कृतिक दशा का अध्ययन)
5. संजीव वर्मा, हिन्दुस्तान टाइम्स, चंडीगढ़ (महिलाओं की स्थिति के लिहाज से पंजाब के पाँच जिलों में मादक द्रव्यों का प्रभाव, इससे संबंधित कानून-व्यवस्था और स्वास्थ्य-सुविधाओं की स्थिति का अध्ययन)
6. संजय रे, द असम ट्रब्यून, गुवाहाटी (असम के दूर-दराज के इलाकों के चाय-बगानों के बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चियों की स्थिति के आकलन पर केंद्रित अध्ययन)
इन्क्लूसिव मीडिया फॉर चेंज(www.im4change.org) समाज के वंचित वर्गों से संबंधित विचारों, सूचनाओं और विकल्पों का एक भंडारघर चलाता है, साथ ही इस परियोजना के अन्तर्गत शोध-कार्य और मीडिया कैप्सिटी बिल्डिंग की कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं। परियोजना विकासशील समाज अध्ययन पीठ, राजपुर रोड, दिल्ली में स्थित है।
फैलोशिप के लिए अभ्यर्थियों का चयन प्रसिद्ध पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता श्री विनीत नारायण, विकासपरक मुद्दों के विशेषज्ञ तथा विकासशील समाज अध्ययन पीठ(सीएसडीएस) के वरिष्ठ फैलो प्रोफेसर पीटर डीसूजा, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑव मैनेजमेंट, अहमदाबाद(आईआईएम-ए) के पूर्व डीन प्रो. जगदीप छोकर, यूएन कोऑर्डिनेशन एडवाइजर सुश्री राधिका कौल बत्रा तथा आईआईटी दिल्ली की अर्थशास्त्री(विकास) सुश्री रीतिका खेड़ा ने किया।
चयनित अभ्यर्थियों के नाम और उनके परियोजना प्रस्ताव का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है :
1. सुश्री शारदा लहंगीर, एएनआई/ विमेन्स फीचर सर्विस (ओडिशा के छह जनजातीय जिलों में वनाधिकार के क्रियान्वयन और आजीविका के लिहाज से आदिवासी समुदाय पर प्रभाव का अध्ययन)
2. रजनीश आनंद, प्रभात खबर, रांची ( झारखंड के चाईबासा और सिंहभूम जिले में माहवारी से संबंधित व्याप्त भ्रांतियों और इससे संबंधित स्वास्थ्गत साफ-सफाई की समस्या पर केंद्रित अध्ययन)
3. आलोका कुजूर, स्वतंत्र पत्रकार, अपनी रांची ( झारखंड के बिरहोर समुदाय की महिलाओं और बच्चों के संदर्भ में खाद्य-सुरक्षा, जमीन और जीविका के मुद्दे पर केंद्रित अध्ययन)
4. जसिन्ता केरकेट्टा, स्वतंत्र पत्रकार, खबरमंत्र (झारखंड के पाँच जिलों में पहाड़िया समुदाय की रोजगार और सांस्कृतिक दशा का अध्ययन)
5. संजीव वर्मा, हिन्दुस्तान टाइम्स, चंडीगढ़ (महिलाओं की स्थिति के लिहाज से पंजाब के पाँच जिलों में मादक द्रव्यों का प्रभाव, इससे संबंधित कानून-व्यवस्था और स्वास्थ्य-सुविधाओं की स्थिति का अध्ययन)
6. संजय रे, द असम ट्रब्यून, गुवाहाटी (असम के दूर-दराज के इलाकों के चाय-बगानों के बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चियों की स्थिति के आकलन पर केंद्रित अध्ययन)
इन्क्लूसिव मीडिया फॉर चेंज(www.im4change.org) समाज के वंचित वर्गों से संबंधित विचारों, सूचनाओं और विकल्पों का एक भंडारघर चलाता है, साथ ही इस परियोजना के अन्तर्गत शोध-कार्य और मीडिया कैप्सिटी बिल्डिंग की कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं। परियोजना विकासशील समाज अध्ययन पीठ, राजपुर रोड, दिल्ली में स्थित है।
सोमवार, 18 अगस्त 2014
राजेंद्र यादव बिना हंस का पहला सालाना जलसा
उमेश चतुर्वेदी
(वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय द्वारा संपादित पत्रिका यथावत में प्रकाशित)
31 जुलाई 2014 की दिल्ली के ऐवान-ए-गालिब सभागार में हर साल
की तरह गहमागहमी तो थी, लेकिन बौद्धिक समाज के बीच वह गर्मजोशी नजर नहीं आ रही थी,
जो कथा और विचार पत्रिका हंस के सालाना जलसे की जान हुआ करती थी..इसके
पुनर्संस्थापक और संपादक रहे राजेंद्र यादव से सहमति रखने वाले हों या असहमति,
इक्का-दुक्का अवसरों को छोड़ दें तो इस कार्यक्रम में अपनी शिरकत जरूर करते
रहे..2013 के कार्यक्रम की अनुगूंज ऐसी रही थी कि जिस वाम और प्रगतिवादी खेमे की
बौद्धिकता को चरम पर पहुंचाने के लिए राजेंद्र यादव अपने हंस रूपी मंच का इस्तेमाल
करते रहे थे, उसी राजेंद्र यादव के खिलाफ उनकी ही धारा के समझे जाने वाले लोगों ने
मोर्चा खोल दिया था। राजेंद्र जी का अपराध सिर्फ इतना ही था कि उन्होंने उस साल का
कार्यक्रम -वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति- जिसमें उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के
वरिष्ठ नेता रहे और राष्ट्रवादी खेमे के प्रखर चिंतक गोविंदाचार्य को मंच पर ना
सिर्फ बुलाया था, बल्कि उनका सारगर्भित भाषण कराया था।
शनिवार, 9 अगस्त 2014
समाजवाद को समझने का सूत्र
उमेश चतुर्वेदी
कई प्रखर नामों के बिना भारतीय समाजवाद के विकास
और भारतीय राजनीति में गरीबों-मजलूमों की मजबूत आवाज की कल्पना नहीं की जा सकती।
आजादी का पूरा आंदोलन गरीबी और भुखमरी को दूर करके भारत को स्वराज के जरिए सुराज
तक पहुंचाने के मकसद से ओतप्रोत रहा। लेकिन भारतीय संसद में दिल से गरीबों के
समर्थन में आवाज कम ही उठी। भारतीय संसद में गरीबों की आवाज पहली बार संजीदा ढंग
से 1963 में उठी। यही वह साल है, जब डॉक्टर राम मनोहर लोहिया पहली बार फर्रूखाबाद
के उपचुनाव में जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। लोकसभा में लोहिया के पहुंचते ही पहली बार
कांग्रेस सरकार को अहसास हुआ कि संसद में सचमुच कोई विपक्ष है।
शुक्रवार, 8 अगस्त 2014
सोनिया पर किताबी विवाद
उमेश चतुर्वेदी
राजनीति चाहे कहीं की भी हो..लगता है एक नियम पूरी शिद्दत से हर
जगह लागू होता है..अपने प्रतिद्वंद्वी और विरोधी पर तब जोरदार हमले करो, जब उसकी हालत सबसे ज्यादा कमजोर
हो..यूपीए की चुनावी हार और संसद में कांग्रेस की ऐतिहासिक पराजय के बाद
गांधी-नेहरू परिवार के खिलाफ जिस तरह पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह के किताबी हमले
की वजह भी राजनीति का यह नियम ही है.. किताब के प्रकाशन के बाद जिस तरह नटवर
सिंह लगातार बयान दे रहे हैं और खुलासे पर खुलासे करते जा रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि विदेश
मंत्री पद से हटाए जाने की उनकी टीस उन्हें खाए जा रही है। तेल के बदले अनाज योजना
में 2005 में नाम आने के बाद नटवर सिंह
को विदेश मंत्री पद से हटाकर काफी दिनों तक बिना विभाग का मंत्री बनाये रखा गया।
किताब में जिस तरह उन्होंने खुलासे किए हैं, उससे अगर यह माना जाने लगे कि उन्होंने अपने गुस्से को अपनी
किताब का शक्ल दिया है तो इसकी वजह उनके कांग्रेस छोड़ने के बाद के राजनीतिक पराभव
में तलाशा जा सकता है। इसीलिए उनकी आत्मकथा वन लाइफ इज नॉट एनफ भी चर्चा में है।
फ्रांस का औपन्यासिक चित्रण
उमेश चतुर्वेदी
(यथावत में प्रकाशित)
हिंदी पाठकों के लिए सुनील गंगोपाध्याय का नाम अनजाना नहीं
है। साहित्य अकादमी के अध्यक्ष रहे गंगोपाध्याय के रचनात्मक संसार को हिंदी पाठकों
ने ज्यादातर कहानियों और उनके उपन्यासों के जरिये ही जाना है। बांग्ला साहित्य के
अप्रतिम हस्ताक्षर रहे सुनील गंगोपाध्याय गजब के साहित्यिक पत्रकार भी रहे हैं।
साहित्यिक पत्रकारिता का संस्कार और साहित्यिक मन जब मिलते हैं तो उसके प्रभाव से
जो भ्रमण वृत्तांत सामने आता है, वह उपन्यास और कई बार तो कविता जैसा आनंद देने
लगता है। सुनील गंगोपाध्याय का हिंदी में अनूदित होकर आए भ्रमण वृत्तांत चित्रकला,
कविता के देशे को पढ़ते हुए बार-बार ऐसा अनुभव होता है। सुनील गंगोपाध्याय ने
साठ के दशक में अमेरिका में एक लेखन प्रोग्राम के तहत अमेरिकी शहर आयोवा की यात्रा
की थी। इस यात्रा से पहले वे कलकत्ता, अब कोलकाता के साहित्यिक समाज में अपना
स्थान बना चुके थे। बांग्ला में लगातार जारी उनके लेखन ने उन्हें इस यात्रा का
मौका दिलाने में भूमिका निभाई थी। निम्न मध्यवर्गीय परिवार के उस घर घुस्सू युवा
के लिए यह आमंत्रण ही चौंकाऊ था। जिसके लिए विदेश यात्रा पर जाना तो एक सपना तो
था, लेकिन उसका उससे भी बड़ा सपना था अपने निम्नमध्यवर्गीय माहौल में ही जीते हुए
अपने ही परिवार के बीच अपने ही शहर में रहना। लेकिन इस सपने में एक यह सपना भी था
कि वह महान साहित्यकारों और चित्रकारों के साथ ही पूरी दुनिया में अपनी सांस्कृतिक
गतिविधियों और संभ्रांत समाज के लिए विख्यात फ्रांस का दर्शन भी करे। लेकिन यह
दर्शन इतना जल्दी हो सकता है, युवा गंगोपाध्याय सोच भी नहीं पाते। आयोवा जाते वक्त
जब हवाई जहाज पेरिस हवाई अड्डे पर रूका तो फ्रांस दर्शन का सपना जैसे पूरा होता
नजर आया और पेरिस हवाई अड्डे से ही फ्रांस के दर्शन में इतना निमग्न हुए कि वहां
से अमेरिका जाने वाली फ्लाइट ही छूट गई। आखिर ऐसा हो भी क्यों नहीं..खुद लेखक के
शब्दों में “ हमारी दृष्टि में उस
वक्त फ्रांस स्वर्ग के समान था। असंख्य शिल्पी-साहित्यकार-कवियों की लीला
भूमि....यहां ही देगा, मोने,माने, गोगा, मातिस-रूयो, जैसे महान शिल्पी..आज भी यहां
चित्र बनाते हैं पिकासो”.
गुरुवार, 24 जुलाई 2014
नया मीडिया और ग्रामीण पत्रकारिता
- उमेश चतुर्वेदी
दिल्ली के विधानसभा चुनावों में एक क्रांति हुई है। इस क्रांति की कहानी दो साल पहले तब लिखी जानी शुरू हुई थी, जब अन्ना दिल्ली के जंतर-मंतर पर जनलोकपाल को लेकर धरने पर बैठ गए थे। तब दिल्ली और उसके आसपास के युवाओं का हुजूम जंतर-मंतर पर उमड़ आया था। माना गया कि इस हुजूम को प्रेरणा काहिरा के तहरीक चौक पर उमड़े जनसैलाब से मिला। मिस्र, लीबिया,ट्यूनिशिया और सीरिया जैसे अरब देशों में लोकतंत्र के लिए जो आवाज उठी और लोगों का भारी समर्थन मिला, उसे मुख्यधारा की मीडिया ने अरब स्प्रिंग यानी अरब बसंत का नाम दिया। अरब देशों में चूंकि लोकतंत्र की वैसी गहरी जड़ें नहीं हैं, जैसी अमेरिका-ब्रिटेन जैसे पश्चिमी मुल्कों या फिर अपने यहां है, लिहाजा अरब स्प्रिंग की कामयाबी की कहानी अभी लिखी जानी बाकी है। लेकिन यह भी सच है कि दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी की जीत ने कामयाब क्रांति की एक कहानी जरूर लिख दी है। अरब स्प्रिंग हो या अन्ना का पहले जंतर-मंतर और बाद में रामलीला मैदान का अनशन...इसके पीछे जनसमर्थन जुटाने में सोशल मीडिया ने बड़ी भूमिका निभाई। सोशल मीडिया में इन दिनों जोर फेसबुक और ट्विटर पर है। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि ब्लॉग भी इसी मीडिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ब्लॉगिंग ने भी अपनी तरह से इस आंदोलन को व्यापक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। निश्चित तौर पर चाहे सोशल मीडिया हो या फिर ब्लॉग या फिर ट्विटर, उसे इंटरनेट यानी अंतरजाल का सहारा चाहिए। अंतरजाल यानी इंटरनेट के मंच के बिना सोशल मीडिया की कल्पना नहीं की जा सकती। वैसे यह दौर कन्वर्जेंस यानी अंतर्सरण का भी है। इंटरनेट पर मौजूद सभी मीडिया को हम नया मीडिया कहते हैं। लेकिन इस नये मीडिया के मंच पर अब पारंपरिक मीडिया यानी अखबार और पत्रिकाओं के साथ ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के दोनों महत्वपूर्ण स्तंभ टेलीविजन और रेडियो भी मौजूद है। एक तरफ से दूसरी तरफ का आवागमन और उसके अंदर से बाहर तक की तांकझांक की यह सहूलियत ही कन्वर्जेंस की बदौलत हासिल हो पाई है। मोटे तौर पर भारत जैसे देश मे इस सारे मंच को अब भी शहरी माध्यम ही माना जाता है। लेकिन क्या सचमुच अब भी यह शहरी माध्यम ही है।
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टेलीविजन के खिलाफ उमेश चतुर्वेदी वाराणसी का प्रशासन इन दिनों कुछ समाचार चैनलों के रिपोर्टरों के खिलाफ कार्रवाई करने में जुटा है। प्रशासन का ...