केंद्र सरकार ने तीसरे प्रेस आयोग बनने की संभावनाओं को
ख़ारिज कर दिया है। सूचना के अधिकार के तहत मांगे गए एक आवेदन के जबाब में सूचना और
प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार के अवर सचिव सह केन्द्रीय जन सूचना पदाधिकारी
शैलेश गौतम ने यह जानकारी आवेदक सूचना अधिकार कार्यकर्त्ता अभिषेक रंजन को दी है।
जबाब में सरकार की ओर से बताया गया है कि तीसरे प्रेस आयोग के गठन संबंधी कोई
प्रस्ताव सरकार के अधीन विचाराधीन नही है।
हाल के दिनों में तीसरे प्रेस आयोग बनाने की मांग वरिष्ठ
पत्रकार रामबहादुर राय, रामशरण जोशी, कुलदीप नैय्यर समेत देश के कई वरिष्ठ पत्रकारों
ने की थी। आयोग के गठन की मांग करने वाले लोगों की माने तो नवपूंजीवाद के इस दौर में मीडिया भी पूंजी
आधारित, पूंजी आश्रित और पूंजीमुखी हो गया है। इससे
कैसे बचा जाए, यह सिर्फ पत्रकारों के लिए ही नहीं, बल्कि व्यापक समाज और कल्याणकारी राय के दायरे
में भी सोचने का भी विषय है। लोगों का मानना है कि राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक स्तर पर हो रहे बदलाव में देश को जैसी मीडिया
चाहिए उसका निर्णय तो तब ही समीचीन होगा, जब हमारे सामने पूरा एक शोधपरक अध्ययन हो। ऐसा अध्ययन
अकादमिक नहीं बल्कि प्रचलित कानून के दायरे में होना चाहिए। यह काम तीसरा प्रेस
आयोग ही कर सकता है। कुछ इन्हीं परिस्थितियों में पहले और दूसरे प्रेस आयोग जो
बनाए गए,
वे जांच आयोग कानून के
अधीन थे।
प्रमुख पत्रकार
जिन्होंने इस आयोग के पक्ष में अपनी राय रखी है:
देशबंधु अखबार के प्रधान संपादक ललित सुरजन ने कहा था कि तीसरे प्रेस आयोग का गठन किया जाए
जो देश में पत्रकारिता के समक्ष मौजूदा खतरों और चुनौतियों का अध्ययन कर बेहतर
विकल्प सुझा सके। कुछ वर्ष पहले इंदौर के भाषायी पत्रकारिता महोत्सव में गंभीर मंथन के बाद एक
प्रस्ताव पारित हुआ था। उस विमर्श में कई नामी और अनुभवी पत्रकार-संपादक थे, जो आयोग
गठन के इस प्रस्ताव से सहमत थे। उन पत्रकारों में शामिल रामशरण जोशी ने तब कहा
था कि “पिछले तीस सालों में हमारे राष्ट्र राज्य का चरित्र पूरी तरह बदल गया है।
इसलिए तीसरे प्रेस आयोग की जरूरत है।“ रामबहादुर राय ने कहा था कि “मैंने
एक बार कोशिश की थी कि तीसरे प्रेस आयोग की मांग को लेकर वरिष्ठ पत्रकारों का एक
प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री से मिले। इसके लिए प्रधानमंत्री के तत्कालीन मीडिया
सलाहकार हरीश खरे से समय दिलाने को कहा था, लेकिन वह समय नहीं मिल पाया। मुझे
जो जानकारी है उसके अनुसार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसके लिए कोई समय नहीं
निकाला और यह सब बड़े मीडिया घरानों के दबाव में हुआ।“ परांजॉय गुहा ठाकुरता ने
कहा कि “पारदर्शिता के लिए इसका गठन होना चाहिए।“ जनसत्ता के संपादक ओम थानवी
का मत था कि संपादक संस्था के उद्धार के लिए यह जरूरी है। राज्यसभा सांसद व वरिष्ठ
पत्रकार एच.के. दुआ का विचार था कि “प्रेस सही रास्ते पर चले इसके लिए
प्रेस की मौजूदा स्थिति का अध्ययन जरूरी है। यह काम प्रेस आयोग कर सकता है।“ साफ
है कि एच.के. दुआ जैसे अनुभवी लोग महसूस करते हैं कि प्रेस ने उल्टी राह पकड़ ली
है। इन लोगों के अलावा वहां हरिवंश, राहुल देव, नामवर सिंह, पुण्य
प्रसून वाजपेयी, अवधेश कुमार जैसे वरिष्ठ पत्रकार भी उपस्थित थे । जाहिर सी बात है कि प्रेस की आजादी पर किसी भी तरह
से आंच न आए, इस बात को ध्यान में रखते हुए प्रेस आयोग के गठन की मांग की गयी थी.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें