भुवनेश्वर में आल इंडिया रेडियो द्वारा आयोजित
सर्वभाषा कवि-सम्मेलन-2015
की कुछ आंखों-देखी झलकियां
- दिनेश कुमार माली
जो भी हो, यह कार्यक्रम मेरे लिए विशिष्ट था। इस कार्यक्रम में मुझे उद्भ्रांत साहब से मिलना था। हिन्दी भाषा के अग्रणी कवि के तौर पर वह इस कार्यक्रम में शिरकत करने वाले थे। दो दिन पहले उन्होने मुझे इस संदर्भ में फोन भी किया था यह कहते हुए, “मैं भुवनेश्वर पहुँच रहा हूं 15 जनवरी को। ऑल इंडिया रेडियो द्वारा आयोजित ‘सर्वभाषा कवि सम्मेलन’ में भाग लेने के लिए। आप भुवनेश्वर से कितने दूर रहते हो ?”
फोन पर उद्भ्रांत जी की आवाज सुनते ही मन बहुत खुश हो गया।मैं उन्हें अपना आदर्श कवि मानता था और उनसे मिलने का मौका बिलकुल खोना नहीं चाहता था। वह मेरे मार्गदर्शक भी थे। मैं उन्हें साल की शुरुआत में नए साल का अभिवादन भी नहीं कर पाया था,क्योंकि उन्होने मुझे चीनी कवि लू-शून का अध्याय जोड़कर ‘चीन का संस्मरण’ पूरा करने का सलाह दी थी, मगर इधर-उधर के कामकाज की वजह से उस पाण्डुलिपि को पूरा कर नहीं पाया था। यह अपराध-बोध मुझे अपनी प्रतिबद्धता के खिलाफ चोटिल कर रहा था। अगस्त 2014 में सृजनगाथा द्वारा चीन में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन की बहुत सारी मधुर स्मृतियां मानस पटल पर रह-रहकर ताजा हो रही थी,अचानक उनके भुवनेश्वर आने का कार्यक्रम मन को अत्यंत सुकून दे रहा था।फोन पर हो रही बातचीत के दौरान उन्होंने अपने अंतस में छुपे स्नेह के अथाह महासागर में से कुछ मोती मेरी तरफ उछालते हुए कहा था, “अगर बहुत ज्यादा दूर हो तो रहने दो। मगर तुम्हें देखे हुए बहुत दिन हो गए हैं। इस कार्यक्रम में रमाकांत रथजी ,उदगाताजी जी भी आएंगे। कोशिश करना ........ ”
“आपसे मिलने के लिए दूरी कोई बाधा नहीं है,सर। मैं पूरा प्रयास करूंगा आपसे मिलने का आप भुवनेश्वर आकर अगर बिना मिले चले जाएंगे तो मुझे बड़ा अफसोस होगा। और तो और, इसी बहाने रमाकांत रथ जी व उदगाता जी से भी मिलना हो जाएगा।” यह कहते हुए मैंने मन ही मन भुवनेश्वर जाने का संकल्प लिया।
मेरे उत्तर से आश्वस्त होकर प्रसन्नतापूर्वक वह कहने लगे, “ सर्वभाषा कवि सम्मेलन या (नेशनल सिम्पोजियम ऑफ पोएट्स) ऑल इंडिया रेडियो द्वारा सन 1956 से हर साल आयोजित किया जाता है। जिसमें देश की 22 भाषाओं के उत्कृष्ट कवि भाग लेते हैं। यह एकमात्र ऐसा मंच है, जो समस्त समकालीन भारतीय भाषाओं के बीच पारस्परिक भाषायी सौहार्द्र के साथ-साथ ‘अनेकता में एकता’ के सूत्र को अक्षुण्ण रखने की प्रेरणा देता है। इस कार्यक्रम में सभी मूल कवि पहले अपना कविता पाठ करते हैं, फिर उनके अनुवादक कवि उनकी कविताओं के हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत करते हैं। इस कार्यक्रम की दो घंटे की रिकॉर्डिंग की जाती है, जिसे 25 जनवरी की रात को दस बजे आल इंडिया रेडियो से प्रसारित किया जाता है। उसी दिन,आल इंडिया रेडियो की रीज़नल शाखाएँ उनकी रीजनल भाषाओं में अनुवाद प्रसारित करती है। इस तरह देश के कोने-कोने में ये सारी कविताएं पहुँच जाती है।”
यह थी इस कार्यक्रम के बारे में संक्षिप्त जानकारी, मगर मेरे लिए यह अलग किस्म का प्रोग्राम था,जिसे मैंने अपने जीवन में न पहले कभी देखा और न ही सुना। एक भाषा के बाईस अनुवाद तो बाईस भाषा के कुल अनुवाद 484 हो जाते हैं। इतने व्यापक स्तर पर भारतीय भाषाओं के अनुवाद का अनोखा प्रयोग था यह। मैं मन ही मन सोच रहा था कि अगर ऐसे ही प्रयोग होते रहें तो भारतीय भाषाओं के शब्द-कोश अपने आप में किसी विश्व-कोश से कम नहीं होगा। “सर्वभाषा कवि सम्मेलन” के माध्यम से आल इंडिया रेडियो संविधान में मान्यता प्राप्त सारी भारतीय भाषाओं की समृद्धि, साहित्यिक धरोहर व उच्च कोटि की सांस्कृतिक प्रस्तुति के महा-संगम को एक मंच पर देखने के लिए किस साहित्य-प्रेमी का मन नहीं ललचाता होगा! एक-दो दिन बाद, इससे पहले कि मैं फर्टिलाइजर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के मेरे साहित्य-अनुरागी मित्र, सेवा-निवृत केमिकल इंजीनियर डॉ॰ प्रसन्न कुमार बराल को मेरी यह मंशा बताता तो उन्होने पहले ही वहाँ का आमंत्रण-पत्र मुझे दिखाते हुए इस कार्यक्रम की सारी रूपरेखा के बारे में विस्तृत जानकारी देने लगे।