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गुरुवार, 12 जुलाई 2012
फौलादी शरीर में एक नाजुक दिल रहता था
उमेश चतुर्वेदी
2003के गर्मियों की बात है। तब मैं बीएजी फिल्म्स में काम करता था। कहने के लिए मेरा काम रोजाना नामक दूरदर्शन के समाचार प्रोग्राम के लिए पीआईबी स्तरीय रिपोर्टिंग करना था। लेकिन कायदे से ज्यादातर काम नए-नवेले आए स्टार न्यूज चैनल के लिए पीआईबी स्तर वाली रिपोर्टिंग करना होता था। तब स्टार के पास कोई पीआईबी रिपोर्टर नहीं होता था, उनके रिपोर्टर को पीआईबी मान्यता मिलने की कम से कम एक साल तक संभावना नहीं थी।
नई आर्थिकी और उदारीकरण के दौर में जिंदगी के जब सारे फलसफे अमेरिकी तर्ज पर
तय हो रहे हों, ऐसे में अगर वहां की ही तरह इतिहास की हकीकत से पर्दे हटाने की
कोशिशों का स्वागत किया ही जाना चाहिए। शासन और प्रशासन में पारदर्शिता लाने के
दावों के बीच सचाई तो यही है कि अब तक भारतीय समाज को विगत के फैसलों की जानकारी
सिर्फ और सिर्फ मिथकीय अंदाज में सुनी-सुनाई बातों से ही होती रही है।