उमेश चतुर्वेदी
तीन साल पहले की बात है....दिल्ली के प्रेस क्लब में एक हस्ताक्षर अभियान चलाया जा रहा था...इलाहाबाद में रह रहे एक साहित्यकार के बेटे उन्हें मानव संसाधन विकास मंत्रालय से आर्थिक मदद दिलाने के लिए इस अभियान में जुड़े हुए थे। उन्होंने इन पंक्तियों के लेखक के सामने भी वह चिट्ठी रखी, यह कहते हुए कि अगर उचित लगे तो इस पर हस्ताक्षर कर दो... पता नही उस अभियान ने उन्हें आर्थिक दुश्चिंताओं से मुक्त किया या नहीं...अब अमरकांत को भारतीय साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार मिलने की घोषणा हो चुकी है...लेकिन यह पुरस्कार भी उनकी जिंदगी को आर्थिक तौर पर पूरी तरह सुरक्षित शायद ही बना पाए। श्रीलाल शुक्ल को उनके ही साथ ज्ञानपीठ ने सम्मानित करने का निर्णय लिया है।
तीन साल पहले की बात है....दिल्ली के प्रेस क्लब में एक हस्ताक्षर अभियान चलाया जा रहा था...इलाहाबाद में रह रहे एक साहित्यकार के बेटे उन्हें मानव संसाधन विकास मंत्रालय से आर्थिक मदद दिलाने के लिए इस अभियान में जुड़े हुए थे। उन्होंने इन पंक्तियों के लेखक के सामने भी वह चिट्ठी रखी, यह कहते हुए कि अगर उचित लगे तो इस पर हस्ताक्षर कर दो... पता नही उस अभियान ने उन्हें आर्थिक दुश्चिंताओं से मुक्त किया या नहीं...अब अमरकांत को भारतीय साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार मिलने की घोषणा हो चुकी है...लेकिन यह पुरस्कार भी उनकी जिंदगी को आर्थिक तौर पर पूरी तरह सुरक्षित शायद ही बना पाए। श्रीलाल शुक्ल को उनके ही साथ ज्ञानपीठ ने सम्मानित करने का निर्णय लिया है।