बुधवार, 13 जून 2018

बिंदेश्वर पाठक को निक्की एशिया सम्मान


टोकियो, 13 जून। जाने-माने भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता और सुलभ शौचालय जैसी सस्ती तकनीक के जनक डॉ. बिंदेश्वर पाठक को यहां इस साल के प्रतिष्ठित निक्की एशिया पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें यह पुरस्कार संस्कृति और समुदाय श्रेणी के लिए दिया गया। जापान का प्रतिष्ठित निक्की-एशिया पुरस्कार एशिया की उन हस्तियों और संगठनों को दिया जाता है, जिन्होंने लोगों के सामुदायिक जिंदगी में क्रांतिकारी और सकारात्मक बदलाव लाने में बड़ी भूमिका निभाई है। 1996 में निक्की इंडस्ट्री द्वारा स्थापित यह पुरस्करार एशिया में क्षेत्रीय विकास, विज्ञान, तकनीक और नवाचार के साथ ही संस्कृति और समुदाय की श्रेणी में उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया जाता है। भारत से पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह और इन्फोसिस के चेयरमैन एन आर नारायणमूर्ति इस पुरस्कार से पहले सम्मानित हो चुके हैं। निक्की इंडस्ट्रीज ने अपने जापानी भाषा के अपने अखबार की 120वीं सालगिरह पर 1996 में इस पुरस्कार की स्थापना की थी। यह कंपनी जापान के प्रमुख आर्थिक अखबार का प्रकाशन करती है। जिसके अंग्रेजी और चीनी भाषा में भी संस्करण हैं। सुलभ इंटरनेशल के संस्थापक को आज सुबह यह सम्मान निक्की इंडस्ट्रीज के प्रेसिडेंट नाओतोशी ओकादा ने दिया। सम्मान की घोषणा करते हुए सम्मान समिति के अध्यक्ष फुजियो मितराई ने कहा कि डॉक्टर पाठक को यह सम्मान उनके देश की दो बड़ी चुनौतियों खराब साफ-सफाई व्यवस्था और भेदभाव की चुनौती का मुकाबला करने के लिए दिया जा रहा है। डॉक्टर पाठक के साथ चीन के पर्यावरण विद् मा जून को जहां इंटरनेट के जरिए सफाई व्यवस्था को सुधारने के लिए सम्मानित किया गया, वहीं वियतनाम के प्रोफेसर न्ग्यें थान लीम को विज्ञान और तकनीकी श्रेणी में बच्चों के लिए सस्ती दवाओं के विकास के लिए दिया गया। गौरतलब है कि डॉ पाठक ने दो गड्ढों वाले फ्लश और पर्यावरण अनुकूल कम्पोस्ट बनाने वाले सुलभ शौचालय का आविष्कार किया है। जिसने विकासशील दुनिया के करोड़ों लोगों की जिंदगी में बड़ा बदलाव लाने में बड़ी भूमिका निभाई है। इसके साथ ही इसने ग्रामीण महिलाओं और हाथ से मैला सफाई करने वाली जिंदगी में भी सकारात्मक बदलाव लाने में भूमिका निभाई है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र के विशेषज्ञ इस पुरस्कार के लिए अपनी तरफ से नामांकन दाखिल करते हैं। हालांकि वे स्वयं अपना नामांकन नहीं दाखिल कर सकते। इस पुरस्कार के लिए जापानी नागरिक और संगठन अपना नामांकन नहीं दे सकते। डॉ पाठक ने यह पुरस्कार समाज के उस कमजोर वर्ग को समर्पित किया जिसकी बेहतरी के लिए वे पांच दशकों से अधिक समय से अभियान चला रहे हैं। उन्होंने कहा, "यह पुरस्कार विशेष रूप से एशिया में समाज की सेवा के प्रति मेरी प्रतिबद्धता में एक और मील का पत्थर साबित होगा।"

रविवार, 10 जून 2018

आलोचना से पहले विचार करें


भारतीय व्यवस्था में नवाचार का हमेशा विरोध होता है..यह अंग्रेजी राज में विकसित मानसिकता की देन है..सरकार ने संयुक्त सचिव स्तर पर सीधे भर्तियां करने की जो शुरूआत की है, उसका विरोध भी नवाचार का विरोध है... अतीत ही क्यों, आपके आसपास कई ऐसे लोग मिल जाएंगे, जिनका शैक्षिक स्तर कमजोर है, लेकिन व्यवहारिकता या तकनीक की दुनिया के बादशाह हैं... पश्चिम को ही लीजिए, थॉमस अल्वा एडिशन कितने पास थे, जेम्स वाट ने कितनी पढ़ाई की थी, रिचर्ड ट्रैविथिक ने कितनी पढ़ाई की थी, अब्राहम लिंकन का शैक्षिक स्तर भी जांचिए, लेकिन उन्होंने दुनिया को बदल दिया... शिक्षा का अपना महत्व है..लेकिन उसकी भी अपनी जड़ता है। संघ लोकसेवा आयोग द्वारा देश की बेहतरीन प्रतिभाएं चुनी जाती हैं, लेकिन ये प्रतिभाएं नैतिकता और व्यवहारिकता के धरातल पर कितनी खरी हैं, आए दिन सामने आने वाली भ्रष्टाचार कथाएं इसी सोच को आइना दिखाती हैं। राजनीति के बारे में कहा जाता है कि एक बार चुनाव जीत गए तो समृद्धि की राह खुल जाती है, संघ लोकसेवा आयोग के जरिए चुनी गई प्रतिभाओं के लिए भी यही कहा जाता है। आखिर क्या वजह है कि एक-डेढ़ लाख तनख्वाह पाने वाली इन प्रतिभाओं के राज्यों की राजधानियों में आलीशान मकान जल्द ही बन जाते हैं, उनके बच्चे विदेशों में पढ़ने लगते हैं और उनके घर में शानो-शौकत की सारी सुविधाएं जल्द ही आ जाती हैं। गांवों में स्थित उनके घर भी चमक जाते हैं। क्या यह सब नैतिकताओं के चलते होता है। मैक्सवेबर ने नौकरशाही के लिए स्टील फ्रेमवर्क की जो अवधारणा दी है, उसकी एक कमी यह भी है। अव्वल तो देश में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि जो जिस काम के लिए काबिल हो, चाहे उसकी उम्र जितनी भी हो, चाहे उसका उच्च शैक्षिक स्तर वैसा ना भी हो, तो उसे वह काम करने देना चाहिए। अमेरिका में यह सोच विकसित हो गई है। इसलिए वहां उम्र के पांचवें दशक में भी लोग जिंदगी के नए अध्याय शुरू करने में नहीं हिचकते..जबकि अपने यहां लोग उस वक्त दुनिया से गुजरने की तैयारी करने लगते हैं.. संयुक्त सचिव स्तर पर सीधे भर्तियों की योजना की चीरफाड़ करते वक्त इन तर्कों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

हरिभूमि अखबार में...