गुरुवार, 22 अगस्त 2013

अखबारी दिनों की कुछ यादें...

हिंदी के इन दिनों खूब छपने वाले एक स्तंभकार और एक बड़ी जगह कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार को पिछली सदी के आखिरी सालों में शिद्दत से नौकरी की तलाश थी...तब दैनिक भास्कर में कमलेश्वर जी प्रधान संपादक की हैसियत से कार्यरत थे। यह बात और है कि दफ्तर कम ही आते थे। बहरहाल दोनों सज्जनों को कमलेश्वर जी भास्कर में लाना चाहते थे। भास्कर के प्रबंध संचालक सुधीर अग्रवाल से मुलाकात भी करवाई। यह बात और है कि उन्हें नौकरी नहीं मिली। लेकिन कमलेश्वर जी उन लोगों की मदद करना चाहते थे। उन्होंने तब फीचर सेक्शन में काम करने वाले मुझ समेत सभी पांचों लोगों को बुलाया और कहा कि अमुक-अमुक को ज्यादा से ज्यादा छापो...ये लोग बेरोजगार हैं और उनका भी घर चलना चाहिए। संपादक के निर्देशानुसार हम लोग उन जैसे कई लोगों से साग्रह लिखवाते थे। इसी तरह दैनिक हिंदुस्तान में एक कृष्णकिशोर पांडेय जी होते थे। संपादकीय पृष्ठ के प्रभारी थे। वे भी बेरोजगार फ्रीलांसरों पर ज्यादा ध्यान देते थे। इसका यह भी मतलब नहीं कि सारे फ्रीलांसर खराब लिखते थे, उनकी पढ़ाई-लिखाई कमजोर थी और नजरिया खराब था। लेकिन आज देखिए. ठेठ खालिस हिंदी के लेखन पर अखबारों का भरोसा कम हुआ है। अंग्रेजी के तुक्कामार लेखक और टीवी के उलथा लिखने वाले चेहरों पर हिंदी अखबारों का भरोसा बढ़ गया है। ऐसे में कमलेश्वर और कृष्ण किशोर पांडेय ज्यादा याद आते हैं। कमलेश्वर जी नहीं रहे..पांडे जी दिल्ली में ही रहते हैं..

मीडिया चौपाल - 2013

जन-जन के लिए विज्ञान, जन-जन के लिए संचार



14-15, सितम्बर, 2013
संचार क्रांति के इस वर्तमान समय में सूचनाओं की विविधता और बाहुल्यता है. जनसंचार माध्यमों (मीडिया) का क्षेत्र निरंतर परिवर्तित हो रहा है. सूचना और माध्यम, एक तरफ व्यक्ति को क्षमतावान और सशक्त बना रहे हैं, समाधान दे रहे हैं, वहीं अनेक चुनौतियां और समस्याएँ भी पैदा हो रही हैं. इंटरनेट आधारित संचार के तरीकों ने लगभग एक नए समाज का निर्माण किया है जिसे आजकल "नेटीजन" कहा जा रहा है. लेकिन मीडिया के इस नए रूप के लिए उपयोग किये जाने वाली पदावली - नया मीडिया, सोशल मीडिया आदि को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. लेकिन एक बात पर अधिकाँश लोग सहमत हैं कि "मीडिया का यह नया रूप लोकतांत्रिक है. यह लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा दे रहा है. मीडिया पर से कुछेक लोगों या घरानों का एकाधिकार टूट रहा है.  
आपको स्मरण होगा कि पिछले वर्ष 12 अगस्त, 2012 को "विकास की बात विज्ञान के साथ- नए मीडिया की भूमिका" विषय को आधार बनाकर एक दिवसीय "मीडिया चौपाल-2012" का आयोजन किया गया था. इस वर्ष भी यह आयोजन किया जा रहा है. कोशिश है कि "मीडिया चौपाल" को सालाना आयोजन का रूप दिया जाए. गत आयोजन की निरंतरता में इस वर्ष भी यह आयोजन 14-15 सितम्बर, 2013  (शनिवार-रविवार) को किया जा रहा है. यह आयोजन मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद तथा स्पंदन (शोध, जागरूकता और कार्यक्रम क्रियान्वयन संस्थान) द्वारा संयुक्त रूप से हो रहा है. इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य विकास में मीडिया की सकारात्मक भूमिका को बढ़ावा देना है. इस वर्ष का थीम होगा- "जन-जन के लिए विज्ञान, जन-जन के लिए मीडिया". इसी सन्दर्भ में विभिन्न चर्चा-सत्रों के लिए विषयों का निर्धारण इस प्रकार किया गया है- 1. मानव सभ्यता का भारतीय और यूरोपीय परिपेक्ष्य और मीडिया तकनीक, 2. नया मीडिया, नई चुनौतियां (तथ्य, कथ्य और भाषा के विशेष सन्दर्भ में)  3. जन-माध्यमों का अंतर्संबंध और नया मीडिया, 4. ग्रामीण भारत का सूचना सशक्तिकरण और नया मीडिया,  5. नये (सोशल) मीडिया पर  सरकारी नियमन की कोशिशें : कितना जरूरी, कितना जायज. 
कृपया विशेष वक्तव्य और प्रस्तुति देने के इच्छुक प्रतिभागी इस सम्बन्ध में एक सप्ताह पूर्व
(5 सितम्बर,2013 तक) सूचित करेंगे तो सत्रों की विस्तृत रूपरेखा तैयार करने में सुविधा होगी. इस सम्बन्ध में अन्य जानकारी के लिए संपर्क कर सकते हैं- अनिल सौमित्र - 09425008648, 0755-2765472. mediachaupal2013@gmail.com, anilsaumitra0@gmail.com
"मीडिया चौपाल-2013" में सहभागिता हेतु अभी तक 1. श्री आर. एल. फ्रांसिस (नई दिल्ली) 2. श्री हर्षवर्धन त्रिपाठी (नई दिल्ली), 3. श्री अनिल पाण्डेय ( न संडे इंडियन, नई दिल्ली), 4. श्री यशवंत सिंह (भड़ास डाटकॉम, नई दिल्ली), 5. श्री संजीव सिन्हा (प्रवक्ता डाटकॉम, नई दिल्ली), 6. श्री रविशंकर (नई दिल्ली), 7. श्री संजय तिवारी (विस्फोट डाटकॉम, नई दिल्ली), 8. श्री आशीष कुमार अंशू, 9. श्री आवेश तिवारी, 10. श्री अनुराग अन्वेषी 11.श्री सिद्धार्थ झा, 12. श्री भावेश झा, 13. श्री दिब्यान्शु कुमार (दैनिक भास्कर, रांची), 14. श्री पंकज साव (रांची), 15. श्री उमाशंकर मिश्र (अमर उजाला, नई दिल्ली), 16. श्री उमेश चतुर्वेदी (नई दिल्ली), 17. श्री भुवन भास्कर (सहारा टीवी, नई दिल्ली), 18. श्री प्रभाष झा (नवभारत टाईम्स डाटकॉम, नई दिल्ली), 19. श्री स्वदेश सिंह (नई दिल्ली),  20. श्री पंकज झा (दीपकमल,रायपुर), 21. श्री निमिष कुमार (मुम्बई), 22. श्री चंद्रकांत जोशी (हिन्दी इन डाटकॉम, मुम्बई), 23. श्री प्रदीप गुप्ता (मुम्बई), 24. श्री संजय बेंगानी (अहमदाबाद), 25. श्री स्वतंत्र मिश्र (शुक्रवार साप्ताहिक, नई दिल्ली) 26. श्री ललित शर्मा (बिलासपुर), 27. श्री बी एस पाबला (रायपुर), 28. श्री लोकेन्द्र सिंह (ग्वालियर), 29. श्री सुरेश चिपलूनकर (उज्जैन), 30. श्री अरुण सिंह (लखनऊ), 31. सुश्री संध्या शर्मा (नागपुर), 32. श्री जीतेन्द्र दवे (मुम्बई), 33. श्री विकास दावे ( कार्यकारी संपादक, देवपुत्र, इंदौर), 34. श्री राजीव गुप्ता  35. सुश्री वर्तिका तोमर, 36. ठाकुर गौतम कात्यायन पटना, 37. अभिषेक रंजन 38. श्री केशव कुमार 39. श्री अंकुर विजयवर्गीय (नई दिल्ली) 40. जयराम विप्लव (जनोक्ति.कॉम, नई दिल्ली), 41. श्री कुंदन झा (नई दिल्ली) ने अपनी सभागिता की सूचना दी है.
भोपाल से 1. श्री रमेश शर्मा (वरिष्ठ पत्रकार), 2. श्री गिरीश उपाध्याय (वरिष्ठ पत्रकार), 3. श्री दीपक तिवारी (ब्यूरो चीफ, न वीक), 4. सुश्री मुक्ता पाठक (साधना न्यूज), 5. श्री रवि रतलामी (वरिष्ठ ब्लॉगर), 6. श्रीमती जया केतकी (स्वतंत्र लेखिका), 7. श्रीमती स्वाति तिवारी (साहित्यकार), 8. श्री महेश परिमल (स्वतंत्र लेखक), 9. श्री अमरजीत कुमार (स्टेट न्यूज चैनल), 10. श्री रविन्द्र स्वप्निल प्रजापति (पीपुल्स समाचार), 11. श्री राजूकुमार (ब्यूरो चीफ, न संडे इंडियन), 12. श्री शिरीष खरे (ब्यूरोचीफ, तहलका), 13. श्री पंकज चतुर्वेदी (स्तंभ लेखक), 14. श्री संजय द्विवेदी (संचार विशेषज्ञ), 15. श्रीमती शशि तिवारी (सूचना मंत्र डाटकॉम), 16. श्री शशिधर कपूर (संचारक), 17. श्री हरिहर शर्मा, 18. श्री गोपाल कृष्ण छिबबर, 19. श्री विनोद उपाध्याय, 20. श्री विकास बोंदिया, 21. श्री रामभुवन सिंह कुशवाह, 22. श्री हर्ष सुहालका, 23. सुश्री सरिता अरगरे (वरिष्ठ ब्लॉगर), 24. श्री राकेश दूबे (एक्टिविस्ट), आदि रहेंगे ही.
इस चौपाल में प्रो. प्रमोद के. वर्मा (महानिदेशक, म.प्र. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद), श्री मनोज श्रीवास्तव (प्रमुख सचिव, मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश शासन), प्रो. बृज किशोर कुठियाला (कुलपति, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल), श्री राममाधव जी (अखिल भारतीय सह-संपर्क प्रमुख, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ), 2. श्रीमती स्मृति ईरानी (वरिष्ठ भाजपा नेत्री) के उपस्थित रहने की भी संभावना है.
कुछ और भी नाम हैं जिन्होंने आमंत्रण स्वीकार कर सहभागिता के लिए प्रयास करने का आश्वासन दिया है- श्री चंडीदत्त शुक्ल (मुम्बई), श्री प्रेम शुक्ल (सामना, मुम्बई), श्री सुशांत झा(नई दिल्ली), श्री लालबहादुर ओझा (नई दिल्ली), प्रो. शंकर शरण (स्तंभकार, नई दिल्ली) श्री नलिन चौहान (नई दिल्ली), श्री शिराज केसर, सुश्री मीनाक्षी अरोड़ा (इंडिया वाटर पोर्टल, नई दिल्ली), श्री हितेश शंकर (संपादक, पांचजन्य, नई दिल्ली).
अब न्यौता भेजने का समय खत्म हो चुका है. इस पत्र के बाद अब आगे की सूचनाएं भेजी जायेंगी. कोशिश हो कि आप सभी की भागीदारी से मीडिया के बारे में एक सार्थक चिंतन व विमर्श हो सके. इसमें आपका सहयोग अपेक्षित है.
सादर,
(अनिल सौमित्र)
संयोजक
स्पंदन (शोध, जागरूकता एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन संस्थान)


रविवार, 18 अगस्त 2013

पहले बड़ी रकम का पारिश्रमिक तय करो....

हाल के दिनों में एक नवेले हिंदी पत्रकार ने कुछ अखबारों के संपादकीय और ऑप एड पेज प्रभारियों को कुछ स्तंभ लेखकों के एक ही लेख के कई जगह प्रकाशित होने की जानकारी दी है...इससे कुछ लेखकों के कुछ संपादकों ने लेख छापने भी कम कर दिए हैं...इस बारे में मुझे याद आता है अपना एक संस्मरण..दैनिक भास्कर के रविवारीय परिशिष्ट रसरंग में मैं 1998 में काम कर रहा था...तब दैनिक भास्कर के प्रधान संपादक कमलेश्वर थे। उस समय भास्कर सिर्फ मध्य प्रदेश और राजस्थान में ही प्रकाशित होता था। उन दिनों मृणाल पांडे एनडीटीवी छोड़ चुकी थीं। तब रविवारीय भास्कर की कुछ कवर स्टोरियां अच्युतानंद मिश्र और मृणाल पांडे जी से लिखवाई गईं। संयोग से भास्कर में प्रकाशित मृणाल जी की एक स्टोरी किसी दूसरे अखबार में भी प्रकाशित हुई। रविवारीय में कार्यरत हमारे एक साथी ने कमलेश्वर जी से इसकी शिकायत की। कमलेश्वर जी ने शिकायत सुनी...फिर साथी से सवाल पूछा- आप एक लेख का मृणाल जी जैसे लेखक को कितना पारिश्रमिक देते हैं...उन दिनों मिलने वाली रकम कुछ सौ रूपए होती थी..मित्र ने वही जवाब दिया...कमलेश्वर जी का जवाब था--पहले एक लेख का पारिश्रमिक पांच हजार देने का इंतजाम करो..तब सोचना कि मृणाल जी या दूसरे लेखक एक ही लेख दूसरी जगह छपने को ना दें...फिर उन्होंने उसे समझाया कि अगर एक ही लेख दो अलग-अलग इलाकों के दो या चार अखबारों में छपें तो हर्ज क्या है..आखिर पाठक भी तो अलग-अलग इलाकों के हैं..