शुक्रवार, 22 जून 2018

सन्मार्ग में


सोज का गिरगिटिया रंग


1994 में भारतीय जनसंचार संस्थान से डिप्लोमा मिलने के बावजूद हिंदी विभाग के छात्रों से नौकरियां दूर ही रहीं..इक्का-दुक्का लोगों को छोड़ दें तो मेरे जैसे प्रवासी लोग फ्रीलांसिंग कर रहे थे..उन दिनों हम जैसे फ्रीलांसरों को दैनिक हिंदुस्तान के तत्कालीन सहायक संपादक कृष्णकिशोर पांडेय बहुत सहयोग देते थे.. आज पत्रकारिता में एक खास धारा के लोगों के लिए लालू यादव मसीहा हैं..लेकिन ढाई दशक पहले बिहार में जिस तरह शासन चल रहा था, उससे मीडिया के बड़े धड़े की नजर में लालू की छवि सिर्फ हंसोड़ राजनेता की थी.. उस माहौल में कृष्णकिशोर पांडेय पहले सहायक संपादक थे, जिन्होंने अपने संपादकीय में लालू के लिए लालू जी शब्द का इस्तेमाल किया.. उन दिनों उनके दफ्तर में कई राजनेता भी आते थे, अपना लेख देने और छपवाने.. दैनिक हिंदुस्तान की पहली मंजिल पर स्थित उनके काठ के केबिन में ही चरण सिंह सरकार में विदेश मंत्री रहे श्यामनंदन मिश्र, रूसी विद्वान पी ए बारान्निकोव, नंदकिशोऱ त्रिखा, सैफुद्दीन सोज से मुझे मुलाकात का मौका मिला..वही सैफुद्दीन सोज, जो कश्मीर पर दिए अपने बयान को लेकर विवाद खड़ा कर चुके हैं.. तब वे आज की तरह कांग्रेस में नहीं, नेशनल कांफ्रेंस के तीन में से एक सांसद होते थे...उन्हें हुमायूं रोड पर घर मिला था, जिसमें वे रहा करते थे..उन दिनों उनकी हालत खास अच्छी नहीं थी..वह दौर कश्मीर में आतंकवाद के तेजी से पैर पसारने का था..लिहाजा कश्मीर पर लिखने वालों की मांग बढ़ गई थी.. सैफुद्दीन सोज चूंकि कश्मीरी हैं, लिहाजा उन्हें भी लिखने का चस्का लग गया था...लेखन के जरिए वे कुछ पैसे भी कमाना चाहते थे..इसलिए उन्होंने कृष्ण किशोर पांडेय से मुलाकात की थी..तब फ्रीलांसरों में के के पांडेय के तौर पर मशहूर पांडेय जी ने उनके पास जाने और उनसे उनके लेख लाने की जिम्मेदारी मुझे दी थी.. तब इंटरनेट नहीं था..लिहाजा वे अपने सहयोगी से अंग्रेजी में टाइप किया हुआ लेख तैयार रखते और मेेरे पीपी नंबर पर मैसेज दे देते। मैं इस उत्साह में जाकर उनके लेख ले आता, क्योंकि उसके अनुवाद की भी जिम्मेदारी मेरी होती थी...जिसके एवज में कभी साढ़े तीन सौ तो कभी चार सौ रूपए बतौर मेहनताना मिलता था...जिससे उस फाकामस्ती के दौर में कुछ दिन के गुजारे के लिए सहूलियत हो जाती... मुझे कभी याद नहीं है कि सोज ने उन दिनों कभी भारत विरोधी बात की हो...उलटे वे भारतीयता की ही बात करते थे..कभी ठीक से बैठने को भी नहीं बोलते थे..लेकिन लेख निकलने में देर होती तो मैं ही निर्लज्जता से उनकी बैठक में बैठ जाता... उनके दिन बहुरे तब, जब देवेगौड़ा सरकार में वे जलसंसाधन मंत्री बने..बाद में जब नेशनल कांफ्रेंस एनडीए में शामिल हुई तो सोज ने नेशनल कांफ्रेंस छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया....इसके बाद जब उनसे संसद परिसर में मुलाकात भी हुई तो वे अनचीन्ह होने की कोशिश करते थे... कश्मीर के नेताओं की दरअसल हकीकत यही रही है, जब तक उनकी हैसियत नहीं रहती, चाहे वह राजनीतिक हो या आर्थिक...तब तक वे भारत का गुण गाते नहीं थकते..उन्हें भारत में ही भविष्य नजर आता है.. लेकिन जैसे ही उनकी हैसियत बदलने लगती है, उनके सुर बदलने लगते हैं..सोज इसके अकेले उदाहरण नहीं हैं..कश्मीर को कूट-कूट कर खाने वाले फारूक़ अब्दुल्ला के बयान भी सोज के बयान से अलहदा नहीं हैं..बस तरीका अलग है.. ऐसे में सवाल जरूर उठता है कि आखिर क्या वजह है कि कश्मीरी नेताओं के ताकत में आते ही बयान बदल जाते हैं...इतने कि वे भारत विरोधी हो जाते हैं..क्या इसके पीछे कुछ और पाने की लालसा होती है...या फिर कहीं से कुछ और मिल जाता है...जरूरी है कि अब इस नजरिए से सोज जैसे नेताओं के बयानों की चीरफाड़ हो..अगर वे दोषी हों, तो उनके भी खिलाफ वैसी ही कार्रवाई हो, जैसे ऐसे बयान देने वाले किसी दूसरे गैर कश्मीरी भारतीय नागरिक के खिलाफ होती रही है...

गुरुवार, 21 जून 2018

योग से योगा और आगे क्या ??


मेरे बिगड़ने के दिन शुरू हो चुके थे...हालांकि तब लगता था कि जिस राह पर चल रहे हैं, वही बहुत शानदार राह है..उस राह में गोष्ठियां थीं, प्रेस कांफ्रेंस थी, ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन की बैठकें थीं...साहित्यिक समारोह थे...जिनमें शामिल होने पर शुरू में बड़ा उत्साह रहता था, लेकिन कई बार मिली उपेक्षाएं आहत भी कर देती थीं.. उन्हीं दिनों कुछ लोग ऐसे भी मिले, जिन्होंने खूब उत्साहित किया...उन्हीं में से एक थे नर्मदेश्वर चतुर्वेदी..उसी कुल-गोत्र के, जो मेरा-मेरे खानदान का है... अमर्त्य सेन के नाना, गुरूदेव रवींद्र नाथ ठाकुर के शांतिनिकेतन के ऋषि अध्यापक आचार्य क्षितिमोहन सेन की प्रेरणा से संत साहित्य का अवगाहन करने वाले पंडित परशुराम चतुर्वेदी नर्मदेश्वर जी के बड़े भाई थे.. क्या संयोग है कि हिंदी के दो बड़े संत कवियों की रचनाधर्मिता, उनके योगदान और उनकी महत्ता से हिंदी साहित्य को परिचित कराने वाले इतिहासकार-समालोचक हजारी प्रसाद द्विवेदी और परशुराम चतुर्वेदी बलिया के ही थे... दोनों का गांव गंगा के किनारे, बस अंतर इतना कि द्विवेदी जी गंगा के उत्तरी तट के वासी थे तो परशुराम जी का गांव द्विवेदी जी के गांव के ठीक सामने गंगा के दक्षिणी तट पर स्थित है...द्विवेदी जी ने कबीर के अवदान से दुनिया को परिचित कराया तो परशुराम चतुर्वेदी ने मीरां से.... यह बात और है कि परशुराम चतुर्वेदी की कीर्ति पताका उतनी ऊंचाई पर नहीं फहर पाई, जैसा मान द्विवेदी जी को हासिल हुआ... बात बिगड़ने के दिनों की हो रही थी...तो उन्हीं दिनों बलिया के टाउन हाल में हिंदी पर एक कार्यक्रम हुआ...उसमें किसी विद्वान ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव के नाम का उच्चारण नरसिंहा राव कर दिया...जैसा कि आजकल चलन ही हो गया है.. जब नर्मदेश्वर जी की बारी आई तो उन्होंने उस विद्वान पर कटाक्ष किया...अंग्रेजी के प्रभाव में नरसिंह , नरसिंहा हो गए, राम, रामा हो गए और गुप्त जी गुप्ता हो गए...जबकि गुप्ता, गुप्त शब्द का स्त्रीलिंग होता है... ऐसी ढेर सारी भाषा विज्ञान और व्याकरण विषयक उन्होंने बातें की.. नर्मदेश्वर जी से जुड़ा यह वाकया आज मुझे योग दिवस के उपलक्ष्य में आकाशवाणी समाचार मुख्यालय में हुए एक कार्यक्रम में याद आ गया। योग सिखाने वाली विदुषी ने आकाशवाणी समाचार में योग दिवस के मौके पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि योग अंग्रेजी के ए अक्षर के चलते, योगा हो गया है और इसमें डे भी मिल गया है.. मैं सोचने लगा कि अंग्रेजी ने किस तरह हमारे मूल शब्दों को भी बदल कर रख दिया है... हिंदी को मान सकते हैं कि वह अंग्रेजी के साथ समानांतर विकसित हुई है...इसलिए वह अंग्रेजी के असर में आ गई..लेकिन योग शब्द तो विशुद्ध रूप से संस्कृत का है...वैदिक संस्कृत हो या लौकिक, हर जगह योग ही शब्द के रूप में विद्यमान है.. कहा जाता है कि उदारीकरण की आंधी ने मूल्यों को उड़ा दिया है...हकीकत भी यही है..लेकिन इसने अपने डंडे भी लगाए हैं..ए का डंडा, जो राम को रामा, नरसिंह को नरसिंहा, और योग को योगा कर देती है...अगर यही चलन रहा तो किसी दिन यह योग को योगर्ट भी कर देगी तो हैरत नहीं होगी..और गुलाम मानसिकता को पीढ़ियों से ढो रहा हमारा समाज इसे ही गर्वोन्नत भाव से स्वीकार कर लेगा... वैसे योग संकुचित भी हो गया है...यह आसन और प्राणायाम का ही पर्याय बनकर रह गया है..जिन महर्षि पतंजलि को योग का आविष्कारक माना जाता है, उन्होंने योग के बारे में कहा है, यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टांगानि। यानी यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि, ये योग के आठ अंग हैं। भारत में जिन षड्दर्शन की परंपरा है, जिनमें प्रमुख हैं, सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, पूर्व मीमांसा और वेदांत हैं। विश्वविद्यालयों में बाकायदा दर्शन शास्त्र की पढ़ाई होती है...स्कोरिंग यानी ज्यादा नंबर देने वाला विषय माना जाता है दर्शन शास्त्र...इसलिए सिविल सेवा की परीक्षाओं में भी इसके जरिए लोग कामयाबी हासिल करते हैं.. उनमें से कई आईएएस हैं, आईपीएस हैं..दूसरे सेवाओं के भी अधिकारी हैं..लेकिन लगता है कि परीक्षाएं पास करने के बाद वे भी योग दर्शन को भूल गए हैं..अगर ऐसा नहीं होता तो योग के इस एकांगी रूप पर वे सवाल जरूर उठाते.. यानी योग सिर्फ आसन और प्राणायाम नहीं, जीवन का एक दर्शन है..लेकिन हम हैं कि योगा के जरिए सिर्फ प्राणायाम और आसन के पीछे ही दौड़ रहे हैं... भारतीयता की परंपरा, सर्वांग जीवन की परंपरा है, जिसमें इह भी है और पर लोक भी...योग दोनों से अपने आठों अंगों के जरिए आत्मा को जोड़ता है...इसमें परमात्मा से जुड़ने की राह भी है..जब यह जुड़ना परम यानी क्लाइमेक्स पर पहुंचता है तो एक तरह से खुद को तिरोहित करना होता है...जिस बिंदु पर यह उपलब्धि हासिल होती है, उसे परमानंद कहते हैं.. काश कि हम योग को इस अंदाज में समझ पाते...उदारीकरण की आंधी से दूर..भारतीयता के दर्शन के एकदम करीब...

रविवार, 17 जून 2018

प्रेस विज्ञप्ति


मूंग और उड़द को भावांतर योजना में शामिल करने की मांग
नई दिल्ली 17 जून। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केन्द्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह से उनके कार्यालय में मुलाकात कर चना, मसूर और सरसों को प्राइस सपोर्ट स्कीम में रबी विपणन के लिए दिये गये सहयोग के लिए धन्यवाद दिया। जिसके कारण मध्यप्रदेश में अब तक का सबसे बड़ा दलहन उत्पादन संभव हो सका है। श्री चौहान ने केन्द्रीय मंत्री को प्रदेश में फसलों के जबरदस्त उत्पादन के बारे में जानकारी दी और खरीदी की सीमा को 50 हजार मीट्रिक टन और बढ़ाने का अनुरोध किया। केन्द्रीय मंत्री राधामोहन सिंह ने मुख्यमंत्री के अनुरोध पर खरीदी की सीमा को बढ़ाकर 17 लाख मीट्रिक टन करने का आश्वासन दिया। श्री चौहान ने बताया कि नेफेड से 05 हजार करोड़ की राशि अपेक्षित है। उन्होंने आग्रह किया कि इसे शीघ्र जारी करवाया जाय क्योंकि उपार्जन कार्य होने के उपरांत किसानों को समय पर राशि नहीं मिलने पर किसानों में आक्रोश की स्थिति उत्पन्न हो रही है। श्री चौहान ने कृषि मंत्री से ग्रीष्मकालीन मूंग का 100 लाख मीट्रिक टन और ग्रीष्मकालीन उड़द का 20 हजार मीट्रिक टन उपार्जन के लिए लक्ष्य तत्काल प्रदान किये जाने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि भावांतर भुगतान योजना के अंतर्गत ग्रीष्मकालीन मूंग और ग्रीष्मकालीन उड़द उपार्जन को भी इस योजना के अंतर्गत शामिल किया जाय और उक्त योजना के अंतर्गत भुगतान के व्यय की राशि को 50 प्रतिशत राज्यांश तथा 50 प्रतिशत केन्द्रांश की मांग की। इसके साथ ही चौहान ने केन्द्रीय मंत्री को 23 जून से 06 जुलाई तक होने वाले विकास पर्व समारोह में आमंत्रित किया।

सुबह सवेरे अखबार में