शनिवार, 2 जून 2012


नैतिकता की राह के जरिए कामयाबी का पाठ
उमेश चतुर्वेदी
(यह समीक्षा कादंबिनी जून 2012 के अंक में प्रकाशित हुई है। )
हिंदी प्रकाशन का मतलब हाल के कुछ दिनों पहले तक सिर्फ साहित्य और उसमें भी कहानी-उपन्यास और कविता की पुस्तकों का प्रकाशन होता था। लेकिन अब हिंदी प्रकाशन की दुनिया बदल रही है। हिंदी का नया पाठक वर्ग विकसित भी हुआ है। उदारीकरण के बाद हिंदी पाठकों की भी दिलचस्पी नई आर्थिकी, नए दौर के व्यवसाय और नए जीवन मूल्यों की तरफ बढ़ी है। यही वजह है कि अब व्यवहार, व्यापार से लेकर नए मूल्यों और उन मूल्यों से सामंजस्य बढ़ाने की दिशा में सोच-विचार बढ़ाने वाली पुस्तकों की भी मांग बढ़ी है।