उमेश चतुर्वेदी
हिंदी पखवाड़े की धूम है...हिंदी को लेकर साल भर तक नाक-भौं सिकोड़ने वालों की जुबान बदल गई है...खासतौर पर सरकारी दफ्तरों में गोष्ठियों और सेमिनारों की धूम है...पूरे साल तक कोने में बैठे उंघता-सा दिखता रहा राजभाषा विभाग इन दिनों जा गया है...वैसे पूरे साल सोने और उंघने की ड्यूटी निभाते राजभाषा विभाग को 1951 से ही हिंदी पखवाड़े में जागने की आदत है...हर साल वह संकल्प भी लेता है...अपने कुछ चहेते साहित्यकारों या साहित्य के नाम पर तुकबंदी करने वालों को उपकृत करने का मौसम भी होता है हिंदी पखवाड़ा...लिहाजा लोकप्रिय किस्म के कवियों को बुलाकर उन्हें शॉल-श्रीफल पकड़ा कर उनसे चार-छह कविताएं सुन ली जाती हैं
हिंदी पखवाड़े की धूम है...हिंदी को लेकर साल भर तक नाक-भौं सिकोड़ने वालों की जुबान बदल गई है...खासतौर पर सरकारी दफ्तरों में गोष्ठियों और सेमिनारों की धूम है...पूरे साल तक कोने में बैठे उंघता-सा दिखता रहा राजभाषा विभाग इन दिनों जा गया है...वैसे पूरे साल सोने और उंघने की ड्यूटी निभाते राजभाषा विभाग को 1951 से ही हिंदी पखवाड़े में जागने की आदत है...हर साल वह संकल्प भी लेता है...अपने कुछ चहेते साहित्यकारों या साहित्य के नाम पर तुकबंदी करने वालों को उपकृत करने का मौसम भी होता है हिंदी पखवाड़ा...लिहाजा लोकप्रिय किस्म के कवियों को बुलाकर उन्हें शॉल-श्रीफल पकड़ा कर उनसे चार-छह कविताएं सुन ली जाती हैं