उमेश चतुर्वेदी
राजनीति चाहे कहीं की भी हो..लगता है एक नियम पूरी शिद्दत से हर
जगह लागू होता है..अपने प्रतिद्वंद्वी और विरोधी पर तब जोरदार हमले करो, जब उसकी हालत सबसे ज्यादा कमजोर
हो..यूपीए की चुनावी हार और संसद में कांग्रेस की ऐतिहासिक पराजय के बाद
गांधी-नेहरू परिवार के खिलाफ जिस तरह पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह के किताबी हमले
की वजह भी राजनीति का यह नियम ही है.. किताब के प्रकाशन के बाद जिस तरह नटवर
सिंह लगातार बयान दे रहे हैं और खुलासे पर खुलासे करते जा रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि विदेश
मंत्री पद से हटाए जाने की उनकी टीस उन्हें खाए जा रही है। तेल के बदले अनाज योजना
में 2005 में नाम आने के बाद नटवर सिंह
को विदेश मंत्री पद से हटाकर काफी दिनों तक बिना विभाग का मंत्री बनाये रखा गया।
किताब में जिस तरह उन्होंने खुलासे किए हैं, उससे अगर यह माना जाने लगे कि उन्होंने अपने गुस्से को अपनी
किताब का शक्ल दिया है तो इसकी वजह उनके कांग्रेस छोड़ने के बाद के राजनीतिक पराभव
में तलाशा जा सकता है। इसीलिए उनकी आत्मकथा वन लाइफ इज नॉट एनफ भी चर्चा में है।
नटवर सिंह ने इस किताब में सबसे ज्यादा हमले सोनिया गांधी पर किए
हैं। उन्होंने लिखा है कि 2004
में
सोनिया ने प्रधानमंत्री पद के लिए त्याग नहीं किया था, बल्कि उन्हें प्रधानमंत्री न बनने के लिए राहुल गांधी ने कहा
था। राहुल को डर था कि प्रधानमंत्री बनने के बाद सोनिया की भी दादी इंदिरा और पिता
राजीव गांधी की तरह हत्या हो सकती है। यूं तो इस किताब में नटवर सिंह ने खुलासे तो
खूब किए हैं, लेकिन
सबसे ज्यादा बवाल इसी खुलासे पर हो रहा है। 2004 में सोनिया गांधी ने जब संसद के सेंट्रल हाल में
प्रधानमंत्री न बनने का ऐलान किया था तो कांग्रेसी राजनीति में आंसुओं और गुस्से की
बाढ़ आ गई थी। कभी भारतीय जनता पार्टी के नेता कल्याण सिंह के चहेते रहे बुंदेलखंड
के नेता गंगाचरण राजपूत ने अपनी रिवाल्वर अपने कनपटी पर सटा कर बड़ा नाटक किया था।
कांग्रेस की राजनीति में सोनिया के इस त्याग को भूतो न भविष्यति की तरह पेश किया
गया और कहना न होगा कि दस साल तक यूपीए के सत्ता में बने रहने को लेकर इस त्याग? ने भी बड़ी भूमिका निभाई।
कांग्रेस के लिए सोनिया का यह त्याग आधुनिक भारतीय राजनीति में यूनिक सेलिंग
प्वाइंट रहा। सोनिया के इस त्याग पर तब के विपक्षी दलों खासकर भारतीय जनता पार्टी
और शिवसेना ने दबी आवाज में ढकोसला करार दिया था। प्रचारित तो यह भी किया गया कि
सोनिया को प्रधानमंत्री बनने से तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने मना किया था।
यह बात और है कि उनके सचिव ने बाद में किताब लिखकर इस तथ्य़ से ही इनकार कर दिया
है। अब नटवर ने यह सवाल उठाया है तो जाहिर है कि इसकी चीड़फाड़ होनी ही है। 1984 में इंदिरा गांधी के बुलावे पर 31 साल की विदेश सेवा की नौकरी
छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए नटवर सिंह राजीव गांधी से लेकर सोनिया गांधी तक के
चहेते रहे। इसलिए हो सकता है कि उनके खुलासे को लेकर एक वर्ग सही माने। लेकिन जिस
तरह उनका नाम इराक में जारी तेल के बदले अनाज कार्यक्रम में आया और खुद के जरिए
अपने बेटे जगत सिंह और उसके साथी अंदलीप सहगल की कंपनी को फायदा पहुंचाने की बात
सामने आई, उसकी वजह
से नटवर के खुलासे पर शक भी बढ़ रहा है। कहना न होगा कि कांग्रेस अपने सियासी फायदे
के लिए इस शक को ही बढ़ावा देना चाहती है।
नटवर सिंह को इस बात की सबसे ज्यादा तकलीफ है कि 21 साल की कांग्रेस की सेवा के
बावजूद पार्टी ने उनसे किनारा कर लिया। कांग्रेस में परिपाटी रही है कि
नेहरू-गांधी परिवार के पार्टी सुप्रीमो के फैसले के खिलाफ बड़ा से बड़ा कांग्रेसी
सवाल उठाने की हिम्मत नहीं करता। भारतीय राजनीति ही नहीं, इतिहास में सबसे बड़ा बदलाव लाने वाले नरसिंह राव पर
कांग्रेस के सुप्रीम परिवार की भौंहें टेढ़ी हुई तो उन्हें याद करने की भी अब कोई
जहमत नहीं उठाता। नरसिंह राव ही वे शख्स थे, जिन्होंने मनमोहन सिंह को अफसर से राजनेता ही नहीं, देश का वित्त मंत्री बना दिया, वे मनमोहन भी नरसिंह राव को
नहीं याद करते थे। जबकि वे देश के प्रधानमंत्री थे। लिहाजा नटवर की रक्षा कौन करता
और उनके साथ कौन खड़ा होता। ऐसा नहीं कि नटवर ने अपनी खुन्नस में कांग्रेस को
शिकस्त देने की कोशिश नहीं की। 2008
में वे
बीएसपी में शामिल हुए। लेकिन जिस राजस्थान से वे आते हैं, वहां के विधानसभा चुनावों में वे कोई कमाल नहीं दिखा सके।
समाजवादी पार्टी का भी उन्होंने दामन थामा। लेकिन राजस्थान की धरती पर इस पार्टी
के जरिए भी नटवर अपनी राजनीतिक औकात नहीं दिखा सके। उनकी किताब को पढ़ते वक्त इन
संदर्भों को भी देखा और परखा जाना चाहिए।
बहरहाल नटवर सिंह की किताब के कुछ तथ्यों पर ध्यान दिया जाना
चाहिए। अपनी किताब में उन्होंने मनमोहन सिंह को शरीफ इंसान तो बताया है। लेकिन यह
भी कहने से नहीं चूके हैं कि वे रीढ़विहीन व्यक्ति थे। उनके मुताबिक दस जनपथ ही
असल सत्ता का केंद्र रहा। नटवर का दावा है कि दस जनपथ के प्रिय अफसर पुलक चटर्जी
प्रधानमंत्री कार्यालय में तैनात थे और सभी अहम फाइलें लेकर दस जनपथ जाते थे और
वहां की मंजूरी के बाद ही फाइलें आगे बढ़ती थीं। हालांकि इससे मनमोहन सिंह इनकार
कर चुके हैं। यह बात और है कि नटवर के लिखने के पहले दस जनपथ, जहां सोनिया गांधी का निवास है, को लेकर ऐसी धारणा पहले से ही
जनता के एक वर्ग में रही है। इन संदर्भों में देखें तो नटवर का यह खुलासा कोई नई
बात नहीं बताता। बल्कि जनता की धारणा को ही रिकॉर्ड पर ला रहे हैं।
नटवर सिंह ने यह भी लिखा है कि उनके मंत्रालय यानी विदेश मंत्री के
दफ्तर में भी दस जनपथ का कोई जासूस था। उसने 2005 में किसी रक्षा सौदे में उनका यानी नटवर सिंह का नाम होने की
जानकारी दी थी। जिसे लेकर सोनिया ने उन्हें बुलाकर काफी बुरा-भला कहा था। नटवर
सिंह ने अपनी किताब में शक जताया है कि इराक में जारी तेल के बदले अनाज योजना से
पैसे कांग्रेस पार्टी को ही नहीं,
सोनिया
गांधी को भी मिले और उसके बचाव के लिए उन्हें बलि का बकरा बनाया गया।
नटवर सिंह अच्छे लेखक भी रहे हैं। सात साल पहले उनकी किताब योर्स
सिंसियरली आई थी। जिसका हिंदी अनुवाद कुछ चेहरे, कुछ चिट्ठियां नाम से आ चुका है। इस किताब में भी उन्होंने
गांधी-नेहरू परिवार की विजय लक्ष्मी पंडित को लेकर लिखा है। विजय लक्ष्मी पंडित की
शाहखर्ची का इस लेख में तरतीबवार जिक्र है। तब उनके लेख को लेकर सवाल इसलिए नहीं
उठा, क्योंकि विजय लक्ष्मी पंडित के
रिश्ते कभी अपनी भतीजी इंदिरा गांधी से रिश्ते सहज नहीं थे। बहरहाल एनसीपी
सांसद डीपी त्रिपाठी ने कहा है कि नटवर सिंह ने जो कहा है, उस पर भी गौर किया जाना चाहिए। त्रिपाठी के मुताबिक
सबकुछ तथ्यों पर आधारित है। सब जानते थे कि वह त्याग नहीं था और सोनिया सुपर
प्राइम मिनिस्टर की भूमिका निभा रही थीं। यह गौर करने की बात है कि डीपी त्रिपाठी
खुद भी कभी राजीव गांधी के नजदीकी रह चुके हैं। उनकी नजदीकी का जिक्र मशहूर लेखक
रवींद्र कालिया अपनी किताब गालिब छूटी शराब में जिक्र कर चुके हैं। जहां तक
कांग्रेस की बात है तो वह नटवर पर हमलावर है। उनकी इस किताब को पार्टी नटवर के
बीजेपी में शामिल होने की कोशिश के तौर पर प्रचारित कर रही है। रही बात सोनिया की
तो उन्होंने खुद जवाब में अपनी सच्चाई पेश करने के लिए जवाबी किताब लिखने का एलान
कर दिया है। उनकी किताब जब आएगी,
निश्चित
तौर पर चर्चा में होगी ही। फिलहाल पराजित बोध से परेशान कांग्रेस की परेशानी नटवर
की इस किताब ने बढ़ा ही दी है।
लेखक टेलीविजन पत्रकार हैं।
उमेश चतुर्वेदी
द्वारा जयप्रकाश
दूसरा तल, निकट
शिवमंदिर
एफ-23 ए, कटवारिया सराय
नई दिल्ली-110016
फोन-9899870697
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