इस ब्लॉग पर कोशिश है कि मीडिया जगत की विचारोत्तेजक और नीतिगत चीजों को प्रेषित और पोस्ट किया जाए। मीडिया के अंतर्विरोधों पर आपके भी विचार आमंत्रित हैं।
सोमवार, 3 मई 2010
एफ एम चैनल के कर्मचारी संघर्ष को तैयार
एफ एम सहित आकाशवाणी दिल्ली के विभिन्न चैनलों में काम करने वाले सैकड़ों उदघोषकों और कर्मियों में अधिकतर कलाकारों को पिछले ग्यारह महीनों से भुगतान नहीं किया गया है। कुछ तो ऐसे भी हैं जिन्हें इससे भी अधिक समय से पैसे नहीं मिले हैं। इसके लिए श्रोताओं, कलाकारों व समाजिक कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर इन कर्मचारियों ने अपना रेडियो बचाओं अभियान शुरू किया है। अभियान का मानना है कि रेडियो के निजी चैनलों को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से आकाशवाणी की स्थिति बदत्तर बनाई जा रही है।
राजधानी में अपना रेडियो बचाओं अभियान में लगे श्रोताओं, कलाकारों व समाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि रेडियो की भी वैसी ही स्थिति बनाई जा रही है जैसा कि टेलीविजन के निजी चैनलों के लिए जगह बनाने के लिए वर्षों पूर्व दूरदर्शन की बनाई गई थी। निजी चैनलों के शुरू होने से पहले मैट्रों चैनल को सबसे ज्यादा लोकप्रिय बनाने की कोशिश की गई। उसके जरिये दर्शकों की रूचि को मसलन भाषा और विषय वस्तु आदि हर स्तर पर बदलने की पूरी कोशिश शुरू की गई। दूरदर्शन के कर्मचारियों की भी शिकायतें उन दिनों काफी बढ़ रही थी और उन पर ध्यान देने की जरूरत सरकार महसूस नहीं कर रही थी। इन दिनों रेडियों के पर्याय के रूप में एफएम चैनलों को जाना जाता है। खासतौर से मनोरंजन के लिए श्रोताओं की बड़ी तादाद एफ एम चैनलों के कार्यक्रमों को सुनती है। लेकिन आकाशवाणी के एम एम चैनलों की जो स्थिति है उसे देखकर आश्चर्य ही नहीं होता है बल्कि ये एक भरोसे के साथ कहा जा सकता है कि रेडियों के निजी चैनलों के विस्तार के लिए आकाशवाणी के आला अधिकारी काम कर रहे हैं। याद दिलाने की जरूरत नहीं होनी चाहिए कि टेलीविजन के निजी चैनलों की शुरूआत में दूरदर्शन को छोड़कर उसके कई बड़े अधिकारी निजी चैनलों की सेवा में उंची तनख्वाह पर चले गए थे।
एक तरफ तो रेडियो का तेजी से विस्तार हो रहा है और दूसरी तरफ आकाशवाणी पर वर्षों से नई नियुक्तियां नहीं हुईं हैं और यहाँ प्रोग्राम प्रजेंटेशन का काम आकस्मिक प्रस्तोता ही करते हैं। काम के घंटे अधिक और पारिश्रमिक कम, इस पर भी भुगतान में वर्ष भर की देरी । जबकि संसद की एक समिति ने आकाशवाणी में अस्थायी कलाकारों की बदतर स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए उनकी स्थायी नियुक्तियां करने की सिफारिश की थी।
रेडियो के सबसे लोकप्रिय एम एफ चैनलों के लिए काम करने वाले कलाकारों ने दो महीने के दौरान सम्बंधित उच्चाधिकारियों से मिलकर इन स्थितियों से अवगत कराया है लेकिन स्थितियां जस की तस हैं । "अपना रेडियो बचाओ " मंच के तत्वावधान में लगभग बीस सक्रिय प्रज़ेन्टरों का एक प्रतिनिधिमंडल आकाशवाणी महानिदेशक को पहले १७ फरवरी और फिर २६ अप्रेल २०१० को ज्ञापन दे चुका है । इस ज्ञापन में कार्यक्रमों के गिरते स्तर, भुगतान में अभूतपूर्व विलम्ब के और ध्यान दिलाया गया है और एफ़ एम गोल्ड चैनेल में चल रही गडबडियों के लिए एफ़ एम गोल्ड चैनल की कार्यक्रम अधिशासी MrsMmmmmmmmm Mrs. Ritu Rajput को जिम्मेवार बताया गया है। लम्बे समय तक यह चैनल देश के सर्वाधिक लोकप्रिय चैनेल्स में रहा है और इसके सूझबूझ से भरे मनोरंजक और ज्ञानवर्धक कार्यक्रम व्यापक जनहित का काम करते रहे हैं और श्रोताओं का जीवन प्रकाशित करते रहे हैं.
अपना रेडियो बचाओ मंच इस सन्दर्भ में सूचना और प्रसारण मंत्रालय से तत्काल हस्तक्षेप की मांग करता है और तुरंत भुगतान कर के कैजुअल प्रज़ेन्टरों के नियमितीकरण की प्रक्रिया आरम्भ करने की भी मांग करता है। साथ ही संसदीय समिति की सिफारिशों के आलोक में तत्काल कदम उठाने का आग्रह करता है। इस मंच के सदस्यों ने इस बात पर भी जोर दिया है कि आकाशवाणी को बर्बाद करने की जो साजिश चल रही है उसका पर्दापाश करने के लिए मंच राजधानी और देश के दूसरे शहरों में अभियान चलाएगा।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
-
उमेश चतुर्वेदी लोहिया जी कहते थे कि दिल्ली में माला पहनाने वाली एक कौम है। सरकारें बदल जाती हैं, लेकिन माला पहनाने वाली इस कौम में कोई बदला...
-
टेलीविजन के खिलाफ उमेश चतुर्वेदी वाराणसी का प्रशासन इन दिनों कुछ समाचार चैनलों के रिपोर्टरों के खिलाफ कार्रवाई करने में जुटा है। प्रशासन का ...