बुधवार, 30 अक्टूबर 2013

पहले प्यार की तरह याद रही राजेंद्र यादव से पहली मुलाकात

हंस संपादक से अपना पहला परिचय सारिका में प्रकाशित उनकी कहानी जहरबाद से हुआ था..शायद 1990 या 1991 की सारिका में छपा था..इसके पहले साहित्य के विद्यार्थी के नाते पिछली सदी के साठ के दशक में कहानी को नया मुहावरा देकर नए सिरे से प्रतिष्ठित करने वाले नई कहानी आंदोलन के बारे में पढ़ तो चुका था..लेकिन उलटबांसी देखिए कि पाठ्यक्रम में नई कहानी आंदोलन के तीनों कथाकारों मोहन राकेश, राजेंद्र यादव और कमलेश्वर की एक भी कहानी नहीं थी..अलबत्ता इतिहास में उनका जिक्र जरूर था..यह बात और है कि एमए की पढ़ाई के दौरान पत्रिकाओं से नाता गहराता गया और तीनों की ही कई रचनाएं पढ़ने को मिलीं..बहरहाल जब मैंने पहली बार सारा आकाश पढ़ा तो राजेंद्र यादव से मिलने की उत्कंठा बढ़ गई..बाद में हंस का तो पारायण ही करने लगा.इन्हीं दिनों साहित्यिक हस्तियों से इंटरव्यू का चस्का लगा..दिल्ली 1993 में आया तो बिना वक्त लिए राजेंद्र यादव से मिलने जा पहुंचा हंस के दफ्तर..राजेंद्र जी की जिंदादिली देखिए कि उन्होंने बिना पूछे-जांचे इंटरव्यू भी दे दिया..उसी दौरान रामशरण जोशी जी आए..तब वे नई दुनिया के दिल्ली ब्यूरो प्रमुख थे..यादव जी ने उनसे मेरा परिचय कराया और पूछा कि इस नाम को जानते हो..मैंने कहा नई दुनिया ..तब यादव जी का जवाब था..वो तो कब की पुरानी हो गई..इसी दौरान प्रेमपाल शर्मा सपत्नीक वहां पधारे..उनसे भी वहीं परिचय हुआ..यह पहली मुलाकात और उस दौरान हुई बातचीत तब के स्वतंत्र भारत में प्रकाशित हुई..जिसे किताबघर से प्रकाशित राजेंद्र यादव के मेरे साक्षात्कार में भी शामिल किया गया है..इसका शीर्षक है- मैं साहित्य की लड़ाई को हवाई हमला मानता हूं..बाद के दौर में कितने लोगों से इंटरव्यू किए..किसी ने नखरे दिखाए तो किसी ने बार-बार बुलाकर नहीं दिया..लेकिन राजेंद्र जी की यह अदा आजतक याद है..बाद में उनसे बीसियों मुलाकातें हुईं..ढेरों इंटरव्यू किए..लेकिन पहली याद पहले प्यार की तरह चस्पा रही..आखिरी बार 26 अक्टूबर 2013 को दूरदर्शन के मुख्यालय में मुलाकात हुई..वे दृश्यांतर पत्रिका का लोकार्पण करने आए थे..