बदलाव का कारगर हथियार बना सोशल मीडिया
उमेश चतुर्वेदी
सोशल नेटवर्किंग
साइटों पर नकेल कसने की तैयारी में जुटी सरकार शायद
इसमें कामयाब हो भी जाय। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सरकार इस पर नकेल
क्यों कसना चाहती है। दरअसल अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को जितनी
तेजी से सोशल नेटवर्किंग साइटों ने वर्चुअल स्पेस में बढ़ावा दिया और फिर इसका असर
जमीनी स्तर पर भी पड़ा। जिसके चलते पहले अप्रैल 2011 में सरकार को परेशान होना
पड़ा। इसके बाद अगस्त 2011 में तो हद ही हो गई, जब अन्ना हजारे के लिए दिल्ली की
सड़कों पर लाखों लोग उतर आए। सही मायने में देखें तो सोशल मीडिया यानी फेसबुक और
ट्विटर ने देश में बदलाव की बड़ी भूमिका तैयार करने में मदद ही दी है। भारत में आज
अगर भ्रष्टाचार विरोधी माहौल बना है तो उसमें मुख्य धारा की मीडिया की बजाय सोशल
मीडिया का ज्यादा योगदान है। सोशल मीडिया पर बलिया जिले के सुदूरवर्ती गांव बघांव
से लेकर कोयंबटूर तक से प्रतिक्रियाएं और सहयोग सामने आ रहा है। इसका असर ही है कि
लोगों के भ्रष्टाचार के खिलाफ लामबंद होने में देर नहीं लगी और अन्ना का आंदोलन
देखते-देखते जनआंदोलन बन गया।