सोमवार, 1 अप्रैल 2013

सांस्कृतिक लालित्य से भरपूर रचनाएं

उमेश चतुर्वेदी
पुस्तक- मन का तुलसी चौरा
लेखक  तरूण विजय
प्रकाशक  वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली 

कभी हिंदी पाठकीयता की श्रीवृद्धि में अहम स्थान रखने वाली ललित निबंध विधा अब भूले-भटके वाली विधा हो गई है। कारपोरेट दबाव में अब सीधी सपाट बयानबाजी पत्रकारिता का अहम स्थान बना चुकी है। इस बीच भी अगर कोई पत्रकार अपने लेखन में लालित्य को बचाए रख सका है तो निश्चित तौर पर उसे दाद देनी ही पड़ेगी। तरूण विजय अब महज पत्रकार ही नहीं रहे, बल्कि सांसद हो गए हैं। लेकिन उनके लेखन का लालित्य अब भी बरकरार है और हिंदी के चुनिंदा अखबारों में सामयिक विषयों पर भी उऩका भावोत्मक लेखन जारी है। मन तुलसी का चौरा उनके ऐसे ही अखबारी लेखों का संग्रह है। जिसे पढ़ते हुए आपको एक बार भी नहीं लगेगा कि आप अखबारी लेखों से गुजर रहे हैं। सामयिकता का दबाव अखबारी लेखन पर इस कदर हावी रहता है कि वहां प्रकाशन के कुछ ही घंटों बाद उस लेखन में बासीपन आ जाता है। लेकिन इस संग्रह में शायद ही कोई रचना हो, जिसमें यह बासीपन आ पाया होगा।