प्रभाषजी ने पूरी हिंदी पत्रकारिता को दिशा और भाषा
दी
शंभूनाथ शुक्ल
शंभूनाथ शुक्ल
वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल ने प्रभाष जी पर यह संस्मरण अपने फेसबुक वाल पर लिखा है। जिसे वहां से लेकर साभार प्रकाशित किया जा रहा है- मॉडरेटर
जनसत्ता के एक पुराने साथी और वरिष्ठ पत्रकार ने राजीव मित्तल ने जनसत्ता के फाउंउर और उस पत्र के प्रधान संपादक रहे दिवंगत प्रभाष जोशी के बारे में टिप्पणी की है कि माली ने ही बगिया उजाड़ डाली। शायद चीजों का सरलीकरण है। उत्साहीलाल लखनौआ पत्रकार कुछ ज्यादा ही नाजुक होते हैं न तो उनमें संघर्ष का माद्दा है न चीजों की सतह तक जाने का साहस। जब तक रामनाथ गोयनका जिंदा रहे एक भी ऐसा मौका नहीं मिलता जब जनसत्ता के प्रसार के लिए प्रभाष जी चिंतित न रहे हों। लेकिन आरएनजी की मृत्यु के बाद हालात बदल गए और जनसत्ता प्रबंधन की कुचालों का शिकार हो गया। यह सच है कि जनसत्ता को एक्सप्रेस प्रबंधन ने कभी पसंद नहीं किया लेकिन आरएनजी के रहते प्रभाष जी प्रबंधन की ऐसी कुचालों का जवाब देते रहे। लेकिन विवेक गोयनका, जो खुद हिंदी नहीं जानते थे उनका इस हिंदी अखबार से क्या लगाव हो सकता था। दिल्ली के एक्सप्रेस ग्रुप में मुख्य महाप्रबंधक के रूप में राजीव तिवारी की नियुक्ति और जनसत्ता के संपादकीय विभाग के कुछ अति वामपंथी तबकों ने मिलकर जनसत्ता को भीतर से पिचका दिया। राजीव मित्तल जनसत्ता में तब आए जब जनसत्ता का पराभव काल शुरू हो चुका था वरना जनसत्ता ने उस वक्त की राजनीति और पत्रकारिता को एक ऐसी दिशा और दशा प्रदान की थी जो न तो कभी टाइम्स ग्रुप अपने हिंदी अखबार नवभारत टाइम्स को दे पाया था न बिड़ला की धर्मशाला कहा जाने वाला हिंदुस्तान।
जनसत्ता के एक पुराने साथी और वरिष्ठ पत्रकार ने राजीव मित्तल ने जनसत्ता के फाउंउर और उस पत्र के प्रधान संपादक रहे दिवंगत प्रभाष जोशी के बारे में टिप्पणी की है कि माली ने ही बगिया उजाड़ डाली। शायद चीजों का सरलीकरण है। उत्साहीलाल लखनौआ पत्रकार कुछ ज्यादा ही नाजुक होते हैं न तो उनमें संघर्ष का माद्दा है न चीजों की सतह तक जाने का साहस। जब तक रामनाथ गोयनका जिंदा रहे एक भी ऐसा मौका नहीं मिलता जब जनसत्ता के प्रसार के लिए प्रभाष जी चिंतित न रहे हों। लेकिन आरएनजी की मृत्यु के बाद हालात बदल गए और जनसत्ता प्रबंधन की कुचालों का शिकार हो गया। यह सच है कि जनसत्ता को एक्सप्रेस प्रबंधन ने कभी पसंद नहीं किया लेकिन आरएनजी के रहते प्रभाष जी प्रबंधन की ऐसी कुचालों का जवाब देते रहे। लेकिन विवेक गोयनका, जो खुद हिंदी नहीं जानते थे उनका इस हिंदी अखबार से क्या लगाव हो सकता था। दिल्ली के एक्सप्रेस ग्रुप में मुख्य महाप्रबंधक के रूप में राजीव तिवारी की नियुक्ति और जनसत्ता के संपादकीय विभाग के कुछ अति वामपंथी तबकों ने मिलकर जनसत्ता को भीतर से पिचका दिया। राजीव मित्तल जनसत्ता में तब आए जब जनसत्ता का पराभव काल शुरू हो चुका था वरना जनसत्ता ने उस वक्त की राजनीति और पत्रकारिता को एक ऐसी दिशा और दशा प्रदान की थी जो न तो कभी टाइम्स ग्रुप अपने हिंदी अखबार नवभारत टाइम्स को दे पाया था न बिड़ला की धर्मशाला कहा जाने वाला हिंदुस्तान।