गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

रिपोर्टर की नोटबुक

उमेश चतुर्वेदी
उपन्यास-रेड जोन
उपन्यासकार-विनोद कुमार
प्रकाशक- अनुज्ञा बुक्स, दिल्ली -110092
मूल्य -395 रूपए
(यह पुस्तक समीक्षा मशहूर पत्रकार रामबहादुर राय के संपादन में प्रकाशित होने वाली पत्रिका यथावत के 01-15 अप्रैल 2015 के अंक में प्रकाशित हो चुकी है।)
रिपोर्टर की नोटबुक अव्वल तो आंकड़ों, तथ्यों और उन्हें रचने और प्रभावित होने वाले लोगों के अनुभवों का संग्रह होती है। इतना ही नहीं, अपने समय सापेक्ष इतिहास से भी रिपोर्टर अपनी नोटबुक के जरिए ही साक्षात्कार करता रहता है। कई बार तथ्यों को दर्ज करते वक्त रिपोर्टर का एक मात्र मकसद अखबार-पत्रिका की भावी स्टोरी के लिए साक्ष्य के तौर पर उसमें तथ्यों को दर्ज कर रखनाभर होता है। लेकिन जाने-अनजाने में दर्ज किए जाते रिपोर्टर की नोटबुक के विवरण कई बार तात्कालिक इतिहास को रचने, किसी की जिंदगी के दर्द को जमाने की सहानुभूति हासिल कराने का माध्यम भी बन जाते हैं। पेशे से पत्रकार विनोद कुमार के उपन्यास रेड जोन को पढ़ते वक्त बार-बार ऐसा लगता है, मानो आप किसी रिपोर्टर की नोट बुक से गुजर रहे हों। जिसमें रिपोर्टर के कार्यक्षेत्र में स्थित कुछ अभावग्रस्त जिंदगियों का दर्द है..हालात की मारी इन जिंदगियों का शोषण करती सामाजिक व्यवस्था है। उस व्यवस्था से लोहा लेने और इन जिंदगियों को राहत दिलाने की स्वघोषित जिम्मेदारी निभाने का दावा करने वाली पत्रकारिता भी हमाम में नंगे की तरह नंगी नजर आती है। राजनीति तो वैसे ही बदनाम है, उससे तो अब उम्मीद भी अनिवार्य रस्म अदायगी ही रह गई है। रेडजोन को पढ़ते वक्त इस रस्मअदायगी के पीछे का घिनौना सच भी बार-बार सामने आता है।

मंगलवार, 31 मार्च 2015

पत्रों में साया सनातनी संस्कृति का तप

 मेश चतुर्वेदी
(यह समीक्षा पांचजन्य के 05 अप्रैल 2015 के अंक में संपादित करके प्रकाशित की जा चुकी है)
उदात्त भारतीय परंपराओं के बिना भारतीय संस्कृति की व्याख्या और समझ अधूरी है। सनातनी व्यवस्था अगर पांच हजार सालों से बनी और बची हुई है तो इसकी बड़ी वजह उसके अंदर सन्निहित उदात्त चेतना भी है। पश्चिम की विचारधारा पर आधारित लोकतंत्र के जरिए जब से नवजागरण और कथित आधुनिकता का जो दौर आया, उसने सबसे पहले सनातनी व्यवस्था को दकियानुसी ठहराने की की कोशिश शुरू की। सनातनी संस्कृति के पांच हजार साल के इतिहास के सामने अपेक्षाकृत बटुक उम्र वाली संस्कृतियां भी अगर हिंदू धर्म और संस्कृति पर सवाल उठाने का साहस कर पाईं तो उसके पीछे पश्चिम आधारित लोकतंत्र और आधुनिकता की अवधारणा बड़ी वजह रही। लेकिन इसी अवधारणा के दौर में एक शख्स अपनी पूरी सादगी और विनम्रता के साथ तनकर हिंदुत्व की रक्षा में खड़ा रहा। उसने अपनी दृढ़ प्रतिज्ञा और कठिन तप के सहारे आधुनिकता के बहाने हिंदुत्व पर हो रहे हमलों का ना सिर्फ मुकाबला करने की जमीन तैयार की, बल्कि देवनागरी पढ़ने वाले लोगों के जरिए दुनियाभर में हिंदुत्व, सनानती व्यवस्था, सनातनी ज्ञान और उदात्त संस्कृति को प्रस्तारित करने में बड़ी भूमिका निभाई।