उमेश चतुर्वेदी
उपन्यास-रेड जोन
उपन्यासकार-विनोद कुमार
प्रकाशक- अनुज्ञा
बुक्स, दिल्ली -110092
मूल्य -395 रूपए
(यह पुस्तक समीक्षा मशहूर पत्रकार रामबहादुर राय के संपादन में प्रकाशित होने वाली पत्रिका यथावत के 01-15 अप्रैल 2015 के अंक में प्रकाशित हो चुकी है।)
रिपोर्टर की नोटबुक
अव्वल तो आंकड़ों, तथ्यों और उन्हें रचने और प्रभावित होने वाले लोगों के अनुभवों
का संग्रह होती है। इतना ही नहीं, अपने समय सापेक्ष इतिहास से भी रिपोर्टर अपनी
नोटबुक के जरिए ही साक्षात्कार करता रहता है। कई बार तथ्यों को दर्ज करते वक्त
रिपोर्टर का एक मात्र मकसद अखबार-पत्रिका की भावी स्टोरी के लिए साक्ष्य के तौर पर
उसमें तथ्यों को दर्ज कर रखनाभर होता है। लेकिन जाने-अनजाने में दर्ज किए जाते
रिपोर्टर की नोटबुक के विवरण कई बार तात्कालिक इतिहास को रचने, किसी की जिंदगी के
दर्द को जमाने की सहानुभूति हासिल कराने का माध्यम भी बन जाते हैं। पेशे से
पत्रकार विनोद कुमार के उपन्यास रेड जोन को पढ़ते वक्त बार-बार ऐसा लगता है, मानो
आप किसी रिपोर्टर की नोट बुक से गुजर रहे हों। जिसमें रिपोर्टर के कार्यक्षेत्र
में स्थित कुछ अभावग्रस्त जिंदगियों का दर्द है..हालात की मारी इन जिंदगियों का
शोषण करती सामाजिक व्यवस्था है। उस व्यवस्था से लोहा लेने और इन जिंदगियों को राहत
दिलाने की स्वघोषित जिम्मेदारी निभाने का दावा करने वाली पत्रकारिता भी हमाम में
नंगे की तरह नंगी नजर आती है। राजनीति तो वैसे ही बदनाम है, उससे तो अब उम्मीद भी
अनिवार्य रस्म अदायगी ही रह गई है। रेडजोन को पढ़ते वक्त इस रस्मअदायगी के पीछे का
घिनौना सच भी बार-बार सामने आता है।