उमेश चतुर्वेदी
दिल्ली, मुंबई से लेकर कोलाकाता तक उपहास और उपेक्षा का पात्र रहा भोजपुरी समाज अचानक क्षमतावाला बाजार हो गया है. इस संभावित और अनछुए बाजार में इतनी ताकत नजर आ रही है कि मीडिया की दुनिया में उतर रहे बड़े खिलाड़ी बाकायदा खबरिया चैनल लाने की तैयारी में जुट गए हैं। जबकि मीडिया और इंटरटेनमेंट की दुनिया के नामीगिरामी हस्तियां मनोरंजन चैनल लेकर बाजार में उतरने की तैयारी में हैं।
करीब दो दशक पहले पत्रकारों की जिदगी को केंद्र में रखकर नईदिल्ली टाइम्स नाम की फिल्म बना चुके पी के तिवारी के दिमाग की उपज है महुआ चैनल। महुआ चैनल के समाचार प्रमुख अंशुमान त्रिपाठी के मुताबिक इस चैनल में जहॉ भोजपुरी में खबरें होंगी, वहीं दमदार प्रोग्रामिग भी जोर रहेगा। इसके लिए अंशुमान त्रिपाठी की टीम शिद्दत से जुटी हुई है। वहीं हमार टीवी के भी आन एयर होने की तैयारी शुरू हो चुकी है। इस चैनल को पूर्व मंत्री मतंग सिंह की कंपनी लाने जा रही है। मतंग सिंह नरसिंह राव सरकार में मत्री रह चुके हैं। असम से राज्यसभा के लिए चुने जाते रहे मतंग सिंह की मूलत- बिहार के रहने वाले हैं. शायद यही वजह है कि उनकी दिलचस्पी भदेसपन की भाषा में खबरिया चैनल लाने की है। इस चैनल के प्रमुख हैं कुमार संजाìय सिंह। कभी कुमार सजय सिंह के नाम से जाने जाते रहे संजाìय का टेलीविजन और प्रिंट पत्रकारिता में अच्छा खासा अनुभव है। फिलहाल ये चैनल तैयारियों में जुटा हुआ है। इसके अलावा पुरूवा नाम का एक चैनल भी भोजपुरी खबरों की दुनिया में दस्तक देने की तैयारियों में जुटा हुआ है। इसी तरह एक ग्रुप गंगा नाम से भी चैनल लाने की तैयारी में जुटा हुआ है।
आखिर क्या वजह है कि भदेसपन की इस भाषा को लेकर मीडिया दिग्गज़ों और नए खिलाड़ियों को अपने मीडिया साम्राज्य के लिए काफी संभावनाएं नजर आ रही हैं। दरअसल पिछले दो साल में भोजपुरी फिल्मों ने जिस तरह सफलता के नए मानदंड स्थापित किए हैं उससे एक वर्ग को लगता है कि मीडिया और इंटरटेनमेंट की दुनिया के लिए भोजपुरी का बड़े बाजार के तौर पर उभरना अभी बाकी है। इन मीडिया हाउसों को लगता है कि अगर उन्होंने शुरूआती बाजी मार ली और बाजार पर अपनी पकड़ बना ली तो सफल होना आसान होगा। वैसे भी काफी कम बजट में बनी भोजपुरी फिल्में करोड़ों का बिजनेस कर लेती हैं।
दो साल पहले बनी भोजपुरी फिल्म ससुरा बड़ा पैसे वाला ने सफलता के वे झंडे गाड़े कि भोजपुरी में लोगों को बड़ा बाजार नजर आने लगा। ये फिल्म महज 27 लाख रूपए में बनी थी और उसने छह करोड़ का बिजनेस किया। इसके बाद तो मनोज तिवारी की फिल्म दरोगा बाबू आई लव यू समेत कई फिल्मों की बाढ़ आ गई। अवधीभाषी रवि किशन भी भोजपुरी सिनेमा के सुपर स्टार हो गए। भोजपुरी का जलवा ही कहेंगे कि अमिताभ बच्चन और मिथुन चक्रवर्ती भी सिल्वर स्क्रीन पर भोजपुरी बोलते नजर आने लगे। नगमा को भी भोजपुरी बोलने से परहेज नहीं रहा। ऐसे में मीडिया और इंटरटेनमेंट के दिग्गज भला क्यों पीछे रहते। सूचना और प्रसारण मत्रालय से छन कर आ रही खबरों पर भरोसा करें तो मीडिया की दुनिया में अपनी सफलताओं का परचम लहरा चुके जी टेलीफिल्म और श्री अधिकारी ब्रदर्स भी भोजपुरी में इंटरटेनमेंट चैनल लाने की तैयारी में जुट गए हैं। पूर्व सूचना और प्रसारण सचिव रतिकॉत बसु की कंपनी भी भोजपुरी में नया चैनल लाने की तैयारी में है। खबरिया चैनल की दुनिया में हाल ही में कदम रख चुकी हरियाणा के पूर्व मंत्री विनोद शर्मा की कंपनी इंडिया न्यूज भी भोजपुरी में न्यूज चैनल लाने की तैयारी में जुटी है।
वैसे हिंदी में राष्ट्रीय कहे जाने वाले कम से दस चैनल हो गए हैं। कुछ एक अभी भी आने की तैयारी में हैं। लेकिन ये भी सच है कि हिंदी की राष्ट्रीय टेलीविजन पत्रकारिता में इससे ज्यादा स्पेस की गुंजाइ?श फिलहाल नहीं दिखती। लिहाजा इन दिनों क्षेत्रीय चैनलों की भी जोरदार तैयारियॉ चल रही हैं। वैसे इसकी शुरुआत इनाडु टीवी ने उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड, बिहार-झारखंड, मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ और राजस्थान के लिए अलग से चार क्षेत्रीय चैनल लाकर क्षेत्रीय टीवी पत्रकारिया की हिंदी में शुरूआत की थी। गुजराती, बॉग्ला, मराठी, तेलुगू, तमिल और कन्नड़ की टीवी पत्रकारिया में इनाडु ने ही पहले-पहल कदम बढ़ाया। अब तो जी और स्टार के भी गुजराती, मराठी, बॉग्ला और तेलुगू में अपने स्वतंत्र चैनल हैं।
अब इन क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों के अपने स्वतंत्र चैनल हो सकते हैं तो सवाल ये है कि 19 करोड़ लोगों की भाषा भोजपुरी में अपना कोई चैनल नहीं हो सकता है। टीआरपी की दुनिया में सबसे बड़ा बाजार मुंबई है। आज हालत ये है कि मुंबई में भी पूरबिये लोगों की संख्या करीब चालीस लाख हो है। टीआरपी के लिहाज से दूसरे बड़े बाजार दिल्ली में भी करीब चालीस लाख भोजपुरीभा?षी और पूरबिए हैं। कोलकाता की 56 फीसदी जनसंख्या गैर बॉग्लाभाषी है। जिसमें सबसे ज्यादा लोग पूवी उत्तर प्रदेश और बिहार के भी लोग हैं। मध्यवर्गीय बाजार में इनकी भी हैसियत कोई कम नहीं है। इसके साथ ही मारीशस, फिजी, गुयाना जैसे देशों में भी भोजपुरी भाषियों की संख्या लाखों में हैं। जाहिर है- इस भाषा में भी एक बड़ा बाजार इंतजार कर रहा है। और मीडिया के नए-पुराने खिलाड़ियों की इसी बाजार पर निगाह है।
लेकिन सबसे बड़ी आशंका इन चैनलों के कंटेंट को लेकर है। साठ के दशक में भोजपुरी में बनी पहली फिल्म गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो में एक सामाजिक संदेश भी था। लागी नाहीं छूटे राम से लेकर दूल्हा गंगा पार के और रूठ गइले संइया हमार जैसी फिल्मों में ये परंपरा जारी रही। लेकिन हाल के दिनों में बनी भोजपुरी फिल्में कंटेंट और कथ्य के स्तर पर कुछ खास छाप नहीं छोड़ पाई हैं। यही हाल इस इलाके के लिए रिकार्ड किए जा रहे म्यूजिक की भी है। सबसे बड़ा खतरा ये है कि खबरों में भले ही ये प्रवृत्ति ना दिखे, भोजपुरी चैनलों की प्रोग्रामिग पर इसका असर दिख सकता है। ऐसे में ये चैनल कहीं हंसी का पात्र ना बन जाएं, इसका खास खयाल रखा जाना होगा जरूरी होगा, तभी खबरिया चैनलों की दुनिया में भदेसपन की भाषा के ये चैनल भोजपुरी लोगों के विकास के साथ ही उनकी सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं को मुखर आवाज देने में सफल होंगे।
इस ब्लॉग पर कोशिश है कि मीडिया जगत की विचारोत्तेजक और नीतिगत चीजों को प्रेषित और पोस्ट किया जाए। मीडिया के अंतर्विरोधों पर आपके भी विचार आमंत्रित हैं।
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