गुरुवार, 13 सितंबर 2012

ईस्ट इंडिया कंपनी की भाषा नीति और हिंदी
उमेश चतुर्वेदी
अगर भारतीयों को पूरी तरह से समझना और उन्हें कंपनी के शासन से संतुष्ट रखना है तो सबसे अच्छा उपाय यही हो सकता है कि सरकार के जिन जूनियर सिविल सेवकों को जनसंपर्क में रहकर प्रशासन की जिम्मेदारी संभालनी है, उन्हें हिंदुओं और मुसलमानों के रीति-रिवाजों, काम करने के तरीकों और धार्मिक मान्यताओं की जानकारी हो।
-          लॉर्ड वेलेजली
हिंदी को राजभाषा का उचित स्थान नहीं मिलने की जब भी चर्चा होती है, 1835 में लागू  की गई अंग्रेजी शिक्षा को जमकर कोसा जाता है। जिसे मैकाले की मिंट योजना के तहत लागू किया गया था। लेकिन इसके साढ़े तीन दशक पहले ही राजकाज में हिंदी या हिंदुस्तानी की जरूरत और अहमियत को भारत में कंपनी राज संभालने आए लॉर्ड वेलेजली ने समझ लिया था। उनकी यह समझ उनके इस बयान में साफ झलक रही है।
हिंदी दिवस पर खास सर्वेक्षण मीडिया स्टडीज ग्रुप ने किया है। इस सर्वेक्षण को यहां अविकल प्रकाशित किया जा रहा है। 

मीडिया स्टडीज ग्रुप का सरकारी हिंदी वेबसाइट का सर्वेक्षण
सरकार की वेबसाइटों पर हिंदी की घोर उपेक्षा दिखाई देती है। हिंदी को लेकर भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालय, विभाग व संस्थान के साथ संसद की वेबसाइटों के एक सर्वेक्षण से यह आभास मिलता है कि सरकार को हिंदी की कतई परवाह नहीं हैं। सर्वेक्षण में शामिल वेबसाइटों के आधार पर यह दावा किया जा सकता है कि हिंदी भाषियों के एक भी मुकम्मल सरकारी वेबसाइट नहीं हैं। अंग्रेजी के मुकाबले तो हिंदी की वेबसाइट कहीं नहीं टिकती है। हिंदी के नाम पर जो वेबसाइट है भी, वे भाषागत अशुद्धियों से आमतौर पर भरी हैं। हिंदी के नाम पर अंग्रेजी का देवनागरीकरण मिलता हैं। हिंदी की वेबसाइट या तो खुलती नहीं है। बहुत मुश्किल से कोई वेबसाइट खुलती है तो ज्यादातर में अंग्रेजी में ही सामग्री मिलती है। रक्षा मंत्रालय की वेबसाइट का हिंदी रूपांतरण करने के लिए उसे गूगल ट्रासलेंशन से जोड़ दिया गया है।