- उमेश चतुर्वेदी
दिल्ली के विधानसभा चुनावों में एक क्रांति हुई है। इस क्रांति की कहानी दो साल पहले तब लिखी जानी शुरू हुई थी, जब अन्ना दिल्ली के जंतर-मंतर पर जनलोकपाल को लेकर धरने पर बैठ गए थे। तब दिल्ली और उसके आसपास के युवाओं का हुजूम जंतर-मंतर पर उमड़ आया था। माना गया कि इस हुजूम को प्रेरणा काहिरा के तहरीक चौक पर उमड़े जनसैलाब से मिला। मिस्र, लीबिया,ट्यूनिशिया और सीरिया जैसे अरब देशों में लोकतंत्र के लिए जो आवाज उठी और लोगों का भारी समर्थन मिला, उसे मुख्यधारा की मीडिया ने अरब स्प्रिंग यानी अरब बसंत का नाम दिया। अरब देशों में चूंकि लोकतंत्र की वैसी गहरी जड़ें नहीं हैं, जैसी अमेरिका-ब्रिटेन जैसे पश्चिमी मुल्कों या फिर अपने यहां है, लिहाजा अरब स्प्रिंग की कामयाबी की कहानी अभी लिखी जानी बाकी है। लेकिन यह भी सच है कि दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी की जीत ने कामयाब क्रांति की एक कहानी जरूर लिख दी है। अरब स्प्रिंग हो या अन्ना का पहले जंतर-मंतर और बाद में रामलीला मैदान का अनशन...इसके पीछे जनसमर्थन जुटाने में सोशल मीडिया ने बड़ी भूमिका निभाई। सोशल मीडिया में इन दिनों जोर फेसबुक और ट्विटर पर है। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि ब्लॉग भी इसी मीडिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ब्लॉगिंग ने भी अपनी तरह से इस आंदोलन को व्यापक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। निश्चित तौर पर चाहे सोशल मीडिया हो या फिर ब्लॉग या फिर ट्विटर, उसे इंटरनेट यानी अंतरजाल का सहारा चाहिए। अंतरजाल यानी इंटरनेट के मंच के बिना सोशल मीडिया की कल्पना नहीं की जा सकती। वैसे यह दौर कन्वर्जेंस यानी अंतर्सरण का भी है। इंटरनेट पर मौजूद सभी मीडिया को हम नया मीडिया कहते हैं। लेकिन इस नये मीडिया के मंच पर अब पारंपरिक मीडिया यानी अखबार और पत्रिकाओं के साथ ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के दोनों महत्वपूर्ण स्तंभ टेलीविजन और रेडियो भी मौजूद है। एक तरफ से दूसरी तरफ का आवागमन और उसके अंदर से बाहर तक की तांकझांक की यह सहूलियत ही कन्वर्जेंस की बदौलत हासिल हो पाई है। मोटे तौर पर भारत जैसे देश मे इस सारे मंच को अब भी शहरी माध्यम ही माना जाता है। लेकिन क्या सचमुच अब भी यह शहरी माध्यम ही है।