(प्रेस विज्ञप्ति)
15वाँ रमाकांत स्मृति कहानी पुरस्कार राजधानी के गाँधी शांति प्रतिष्ठान में ओमा शर्मा को उनकी कहानी 'दुश्मन मेमना' के लिए प्रदान किया गया।कार्यक्रम की अध्यक्षता की कथाकार-कलाकार प्रभु जोशी ने। मुख्य अतिथि थे कवि -कथाकार कन्तिमोहन। निर्णायक और रंगकर्मी दिनेश खन्ना,'कथादेश' के संपादक हरिनारायण,कथाकार योगेन्द्र आहूजा और विमल कुमार ने कहा कि एक रचनाकार की स्मृति में दिया जाने
वाला यह पुरस्कार प्रेरणा का काम करता है।
पुरस्कृत कथाकार ओमा शर्मा ने अपने
वक्तव्य में कहा कि कहानी मुझे लेखन कला की सबसे सघन और कलात्मक विधा लगती है। स्मारिका 'कथा-पर्व' का लोकार्पण भी हुआ। इस अवसर पर राजेंद्र यादव,विश्वनाथ त्रिपाठी,जापानी विद्वान् इशिदा,संजीव,पंकज बिष्ट,प्रेमपाल शर्मा,इब्बार रब्बी ,वीरेंद्र कुमार बरनवाल,श्योराज सिंह बेचैन,सुरेश उनियाल,हरिपाल त्यागी,सुरेश सलिल,शरद सिंह,श्याम सुशील,रामकिशोर द्विवेदी,संज्ञा उपाध्याय ,हीरालाल नगर,आकांक्षा पारे, उमेश चतुर्वेदी सहित अनेक पीढ़ियों के लेखक व साहित्य प्रेमी
उपस्थित थे। रमाकांत स्मृति पर आधारित प्रदर्शनी
को साहित्य प्रेमियों ने चाव से देखा।
प्रारंभ में रमाकांत जी के पुत्र अजय श्रीवास्तव ने उपस्तिथों का स्वागत करते
हुए वक्ताओं व पुरस्कृत कथाकार को मंच पर
आमंत्रित किया और संचालन के लिए संयोजक को मंच सौपा।रमाकांत स्मृति कहानी पुरस्कार समिति के संयोजक
महेश दर्पण ने बताया की इससे पूर्व जो चौदह
कथाकार पुरस्कृत हो चुके हैं ,वे हैं - नीलिमा सिन्हा ,कृपाशंकर,अजय प्रकाश ,मुकेश वर्मा ,नीलाक्षी सिंह ,सूरजपाल चौहान, पूरन हार्डी ,अरविन्द कुमार सिंह ,नवीन नैथानी , योगेन्द्र आहूजा ,उमाशंकर चौधरी ,मुरारी शर्मा ,दीपक श्रीवास्तव और आकांक्षा पारे काशिव। इस बार निर्णायक मंडल के
सदस्य श्री दिनेश खन्ना ने कहानी का चयन किया है। इस बार कुल 443 कहानियों की संस्तुतियाँ प्राप्त हुई थीं। हमारी कोशिश है की हम
रमाकांत जी की समग्र कहानियां पाठकों के लिए उपलब्ध कराएं। जो लोग रमाकांत जी के लेखन पर आलोचनात्मक या
संस्मरणात्मक लेख लिख रहे हों , वे उन्हें हमारे पास अवश्य भिजवाएं। युवा पाठकों में रमाकांत जी के लेखन के प्रति एक आत्मीय भाव है और वे उनके अंतिम
उपन्यास 'जुलूस वाला आदमी' को उल्लेखनीय मानते हैं।
रमाकांत जी के मित्र और वरिष्ठ कवि -कथाकार कन्तिमोहन ने कहा - रमाकांत से मेरी पहली मुलाक़ात करोल बाग में हुई थी, लेकिन उनके दिल्ली आने से पहले ही विष्णु चंद शर्मा ने मुझे उनके बारे में काफी -
कुछ बता दिया था। उनकी जासूसी उपन्यासों में गहरी दिलचस्पी
ने मुझे उनके करीब ला दिया था। राजनीति पर उनसे काफी विचारोत्तेजक चर्चा होती थी। हर उम्र के लोगों के साथ उनका व्यवहार मित्रवत होता था। पढने - लिखने वाले अनेक लोगों को
वह सादत पुर ले गए। यही वजह है कि
अब भी , जा पाए या ना जा पाएं , सादत पुर जाने को जी करता है। रमाकांत दिल्ली
के कॉफी हाउस [मोहन सिंह प्लेस] में विष्णु प्रभाकर के बाद सबसे सम्मानित व्यक्ति थे। पूर्वी दिल्ली की संभावनाओं को उन्होंने 'क्रासाद ' जैसे अखबार के ज़रिये पहचाना था। जब वह 'सोवियत दर्पण' के संपादक थे , तब उनसे खूब मिलना होता था। उनसे पत्रिकाएँ और पुस्तकें लेकर पढता था। आज , आमतौर पर लेखक को अपने अलावा कही कुछ नज़र नहीं आता , लेकिन रमाकांत इसके उलट इंसान थे। विश्व साहित्य के बारे में उनकी जानकारी अद्भुत थी। उनका विश्लेषण बड़ा अच्छा होता था। उनके अंतिम दिनों में कही एक बात मुझे याद है - 'पत्नी के न रहने को बहुत मिस करता हूँ। जब तक वह जीवित रहीं , मैंने उनके महत्व को नहीं समझा।'
इसके बाद समारोह की स्मारिका 'कथा - पर्व' का लोकार्पण व वितरण हुआ जिसमे पुरस्कृत लेखक का परिचय,आत्मकथ्य और पुरस्कृत कहानी के साथ ही निर्णायक
का वक्तव्य भी प्रकाशित है।
इस बार के निर्णायक दिनेश खन्ना ने कहा - कहानी के चयन की प्रक्रिया में मैं अकेला ही था। कई कहानियां
अच्छी लगीं,लेकिन फिर मेरी सोच ओमा शर्मा की 'दुश्मन मेमना' के साथ ठहरी रही। यह मुझे एकदम आज की कहानी लगी। हमारे आज के शहर,महानगर में रहते - बसते मध्य-वर्गीय परिवार में घटित होता यथार्थ। आज के युवाओं , और अपने बच्चे के भविष्य को लेकर थोडा ज्यादा चिंतित और सचेत रहने वाले माता - पिता
,ख़ास - तौर पर माँ-बाप और उनकी एकलौती संतान। पेरेंट्स की चिंताएं और लड़की
की हर तरह की जिद्द .... कहानी इन् तमाम चीज़ों
के साथ मनोवैज्ञानिक जटिलता के बीच आ खड़ी होती है। बेटी का लगभग ब्लैकमेलिंग
जैसा व्यवहार और उनके बीच मनोचिकित्सकों के लम्बे सवाल - जवाब का सिलसिला कहानी को आकार देता है। कहानी दिलचस्प और गंभीर विषय के
साथ कई ढंकी - छिपी मनोवैज्ञानिक परतें खोलती है। शिल्प, कलात्मकता की दृष्टि से भी कहानी
अनोखी बन पड़ी है। पढने के बाद यह कहानी बराबर याद रहती है।
अंत में कहीं एक अनसुलझा प्रश्न छोड़ जाती है। कथारस और ताजगी भरी भाषा के
लिए भी मुझे इस पुरस्कार के लिए यह कहानी सर्वथा उपयुक्त लगी।
'दुश्मन मेमना' का प्रकाशन सितम्बर ,2011 में हरिनारायण द्वारा सम्पादित 'कथादेश' में हुआ था। हरिनारायण ने सर्वप्रथम इस कहानी के कुछ अंश सुनाये और फिर इसे एक बेचैन करने वाली रचना बताया। आत्मस्वीकृति की शैली
में,इस रचना को उन्होंने ज्वलंत समस्याएं सामने रखने वाली बताया। उनका कहना
था कि यह कहानी जितनी बाहर है, उतनी ही भीतर भी है। उन्होंने कहानी
को समझने के सूत्र भी दिए। उन्होंने कहा , कहानी के अंत में यह संकेत खुलते हैं कि जोशी ने एक ब्यूटीफुल फैमिली होते हुए भी परिवार से बाहर सम्बन्ध बनाये थे।
कवि - कथाकार विमल कुमार ने कहा कि यह देखना ज़रूरी है की सौ सालों में
कहानी में क्या परिवर्तन आयें हैं। कहानी
अपने समय से किस तरह से टकरा रही है। समाज में भी बदलाव आ रहे हैं। आज उदय प्रकाश और अखिलेश के बाद की
कथा-पीढ़ी सामने है। ये कथाकार 'हंस' , 'कथादेश' , 'पाखी' , 'वागर्थ' , 'नया ज्ञानोदय ' आदि अनेक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए
हैं। दरअसल, ये नयी आर्थिक नीति
के बाद के रचनाकार हैं। लेकिन इनमे से कुछ के पास अच्छा शिल्प और भाषा है पर जीवन दृष्टि नहीं है। दूसरी तरफ कुछ के पास गहरी जीवन दृष्टि है , पर भाषा और शिल्प नहीं। इसके बीच तालमेल
रखना ज़रूरी है। आज का डिप्टी कलेक्टर क्या कर रहा है, 'तिरिछ' की भयावहता को वह किस रूप में देखता है? संजय कुंदन की 'गाँधी जयंती' , उमाशंकर चौधरी की 'अयोध्या बाबू सनक गए हैं ', शशांक की 'घंटी' और प्रेम भरद्वाज की रचनाओं के बहाने उन्होंने अपनी कहानी से जुडी चिंताएं व आशंकाएं सामने रखीं। कहानीकारों के वर्गीय चरित्र पर ही नहीं , कहानी में चरित्र-चित्रण पर भी
उन्होंने बात की और आग्रह किया कि हम कहानी पर गंभीरता से
विचार करें।
वरिष्ठ कथाकार व चित्रकार हरिपाल त्यागी ने 'बारहखड़ी' पुस्तक की प्रति और महेश भारद्वाज ने 'रमाकांत की चर्चित कहानियां' संग्रह की प्रति पुरस्कृत कथाकार को
भेंट कीं। 'बारहखड़ी' में 12 ऐसे रचनाकारों की कहानियां संकलित हैं
जिन्हें रमाकांत कहानी पुरस्कार मिल चुका है। हरिपाल जी ने प्रत्येक कहानी के लिए एक विशेष चित्र बनाया है। 'चर्चित कहानियाँ' में स्वर्गीय रमाकांत की 'कार्लो हब्शी का संदूक' सहित 14 कहानियां संकलित हैं।
कथाकार योगेन्द्र आहूजा ने अपने मित्र
और साथी रचनाकार ओमा शर्मा पर चर्चा करते
हुए उन्हें एक ऐसा मित्र बताया जो वक्त पर साथ तो दे ही , जीवन में यह एहसास भी दिलाता रहे की हम अकेले नहीं हैं। उन्होंने कहा की बड़ी रचनाओं को कैसे पढना चाहिए , यह तो मैंने उनसे सीखा ही है , उनकी अनेक रचनाओं का मै पहला
पाठक भी रहा हूँ। 'दुश्मन मेमना' भी मैंने प्रकाशन पूर्व पढ़ी थी। हिंदी
में ओमा जी ने स्टीफेन सवाईग की आत्मकथा का अनुवाद प्रस्तुत करके एक बड़ा काम किया है। उनकी
रचात्मक मैत्री के लिए योगेन्द्र आहूजा ने
उन्हें अपनी शैली में शुक्रिया कहा और कहा की पैशन समेत अनेक चीज़ों के अर्थ मैंने ओमा जी से सीखे हैं।
पुरस्कृत ओमा शर्मा ने कहा कि हिंदी कहानी के लिए दिए जाने वाले इस एकलौते और विशिष्ट पुरस्कार की पिछले बरसों में जो प्रतिष्ठा बनी है , उस कड़ी में स्वयं को शामिल होता देख मुझे
बहुत प्रसन्नता हो रही है। कोई भी पुरस्कार किसी भी रचना का निहित नहीं होता , लेकिन उस रचना विशेष को रेखांकित करने में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अपने प्रारंभिक
किसानी जीवन के बारे में बताने के साथ ही
लेखक ने बताया कि कैसे दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में अर्थशास्त्र के अध्ययन ने उन्हें मेहनत करने और चीज़ों को समग्रता में जांचने - परखने का
प्रशिक्षण दिया। तंत्र में आर्थिक शक्तियों की केंद्रियता को समझने का संस्कार दिया। उसने मुझे
स्वतन्त्र होकर सोचना समझना सिखाया। झुककर चलने
का गुरुकुल नवाज़ा। उन्होंने अपनी रचना प्रक्रिया की शुरुआत में बड़े भाई प्रेमपाल शर्मा के महत्वपूर्ण
योगदान का उल्लेख किया। अपने प्रिय रचनाकारों के
उल्लेख के साथ ही ओमा शर्मा ने 'दुश्मन मेमना' की रचना प्रक्रिया और उसकी चिंगारी खुद तक पहुचने की बात को बड़े तरीके से सामने रखा।
समारोह के अध्यक्ष और वरिष्ठ कथाकार-कलाकार प्रभु जोशी ने कहा कथा के विदा
हुए वंशज को इस तरह याद किया जाता है, यह देख कर अच्छा लगा। जो पुरस्कृत हुए हैं , वे रमाकांत जी के वंशज हैं। मनुष्य वह
है जो तकनीक की संभावनाओं को पहचानता है। क्या अब तकनीक नए रूप में नहीं आने वाली है? हम उससे भिड़ना क्यों नहीं चाहते? उन्होंने नयी सूचना तकनीक पर आई
कहानियों के आस्वाद की चर्चा की। कहा कि नई तकनीक के बीच नया मनुष्य बन रहा है।
ओमा शर्मा ने उसके बारे में सोचा है। हिंदी लेखक को
तकनीक के नए आयाम के बारे में सोचना चाहिए। सोचा जाना चाहिए कि तकनीक संवेदना से किस गहराई तक जुड़ सकती है। तकनीक से मनुष्य परास्त नहीं होगा। प्रश्न खड़े होते रहेंगे और साहित्य लिखा जाता रहेगा। मार्क्सवाद विचार की तरह आज भी है। एस्थेटिक सेंस को
बचाए रखना ज़रूरी है।
अंत में संयोजक ने आभार ज्ञापित करते हुए कहा कि आगामी रमाकांत
स्मृति कहानी पुरस्कार के लिए वर्ष 2012 में प्रकाशित कहानियों पर विचार किया जाएगा। निर्णायक होंगे वरिष्ठ आलोचक और गद्यकार विश्वनाथ त्रिपाठी।
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