धारदार और किस्सागोई शैली में व्यंग्य के चलते हिंदी साहित्य में अपनी पहचान बना चुके यशवंत व्यास को बिहारी सम्मान के लिए चुना जाना बेहद सटीक फैसला है। के के बिड़ला फाउंडेशन ने उनके उपन्यास कामरेड गोडसे को इस सम्मान से सम्मानित करने का ऐलान किया है। इस उपन्यास में एक ओर जहां आज के दौर में सांप्रदायिकता के खतरे का चित्रांकन करता है, वहीं अपनी अद्वितीय और ताजगी भरी भाषा और शैली के लिए जाना जाता है। शायद यही वजह है कि मशहूर कथाकार कमलेश्वर को इसका बारहवां अध्याय पसंद आया तो पत्रकार अरविंद मोहन को बेहद पठनीय उपन्यास लगा।
पिछले साल प्रकाशित होते ही इस उपन्यास ने हिंदी साहित्य जगत का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लिया था। लिहाजा इसकी चर्चा भी खूब हुई और पाठकों की सराहना भी। यशवंत लेखन और पत्रकारिता में शैलीगत नए और सफल प्रयोगों के लिए भी जाने जाते हैं। अमिताभ बच्चन पर लिखी किताब अमिताभ का अ से लेकर बिड़ला फाउंडेशन की फेलोशिप पर तैयार शोध पुस्तक अपनी गिरेबान में उनकी ये शैलीगत भंगिमा भी खासतौर पर उभर कर सामने आई। उनके संपादन में निकल रही पत्रिका अहाजिंदगी में भी इस नएपन का बार-बार अहसास होता है।
यशवंत व्यास को ये सम्मान पाने पर मीडिया मीमांसा की ओर से बधाई।
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1 टिप्पणी:
हमारी भी बधाई व शुभकामनाएं पहुंचे उन्हें!
उनकी किताबें तो नही पढ़ी लेकिन यह जरुर कहेंगे कि अहा! जिंदगी में उनके संपादकीय पढ़ पढ़कर उनकी लेखनी के कायल होते जा रहे हैं हम।
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