गुरुवार, 21 जून 2018

योग से योगा और आगे क्या ??


मेरे बिगड़ने के दिन शुरू हो चुके थे...हालांकि तब लगता था कि जिस राह पर चल रहे हैं, वही बहुत शानदार राह है..उस राह में गोष्ठियां थीं, प्रेस कांफ्रेंस थी, ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन की बैठकें थीं...साहित्यिक समारोह थे...जिनमें शामिल होने पर शुरू में बड़ा उत्साह रहता था, लेकिन कई बार मिली उपेक्षाएं आहत भी कर देती थीं.. उन्हीं दिनों कुछ लोग ऐसे भी मिले, जिन्होंने खूब उत्साहित किया...उन्हीं में से एक थे नर्मदेश्वर चतुर्वेदी..उसी कुल-गोत्र के, जो मेरा-मेरे खानदान का है... अमर्त्य सेन के नाना, गुरूदेव रवींद्र नाथ ठाकुर के शांतिनिकेतन के ऋषि अध्यापक आचार्य क्षितिमोहन सेन की प्रेरणा से संत साहित्य का अवगाहन करने वाले पंडित परशुराम चतुर्वेदी नर्मदेश्वर जी के बड़े भाई थे.. क्या संयोग है कि हिंदी के दो बड़े संत कवियों की रचनाधर्मिता, उनके योगदान और उनकी महत्ता से हिंदी साहित्य को परिचित कराने वाले इतिहासकार-समालोचक हजारी प्रसाद द्विवेदी और परशुराम चतुर्वेदी बलिया के ही थे... दोनों का गांव गंगा के किनारे, बस अंतर इतना कि द्विवेदी जी गंगा के उत्तरी तट के वासी थे तो परशुराम जी का गांव द्विवेदी जी के गांव के ठीक सामने गंगा के दक्षिणी तट पर स्थित है...द्विवेदी जी ने कबीर के अवदान से दुनिया को परिचित कराया तो परशुराम चतुर्वेदी ने मीरां से.... यह बात और है कि परशुराम चतुर्वेदी की कीर्ति पताका उतनी ऊंचाई पर नहीं फहर पाई, जैसा मान द्विवेदी जी को हासिल हुआ... बात बिगड़ने के दिनों की हो रही थी...तो उन्हीं दिनों बलिया के टाउन हाल में हिंदी पर एक कार्यक्रम हुआ...उसमें किसी विद्वान ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव के नाम का उच्चारण नरसिंहा राव कर दिया...जैसा कि आजकल चलन ही हो गया है.. जब नर्मदेश्वर जी की बारी आई तो उन्होंने उस विद्वान पर कटाक्ष किया...अंग्रेजी के प्रभाव में नरसिंह , नरसिंहा हो गए, राम, रामा हो गए और गुप्त जी गुप्ता हो गए...जबकि गुप्ता, गुप्त शब्द का स्त्रीलिंग होता है... ऐसी ढेर सारी भाषा विज्ञान और व्याकरण विषयक उन्होंने बातें की.. नर्मदेश्वर जी से जुड़ा यह वाकया आज मुझे योग दिवस के उपलक्ष्य में आकाशवाणी समाचार मुख्यालय में हुए एक कार्यक्रम में याद आ गया। योग सिखाने वाली विदुषी ने आकाशवाणी समाचार में योग दिवस के मौके पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि योग अंग्रेजी के ए अक्षर के चलते, योगा हो गया है और इसमें डे भी मिल गया है.. मैं सोचने लगा कि अंग्रेजी ने किस तरह हमारे मूल शब्दों को भी बदल कर रख दिया है... हिंदी को मान सकते हैं कि वह अंग्रेजी के साथ समानांतर विकसित हुई है...इसलिए वह अंग्रेजी के असर में आ गई..लेकिन योग शब्द तो विशुद्ध रूप से संस्कृत का है...वैदिक संस्कृत हो या लौकिक, हर जगह योग ही शब्द के रूप में विद्यमान है.. कहा जाता है कि उदारीकरण की आंधी ने मूल्यों को उड़ा दिया है...हकीकत भी यही है..लेकिन इसने अपने डंडे भी लगाए हैं..ए का डंडा, जो राम को रामा, नरसिंह को नरसिंहा, और योग को योगा कर देती है...अगर यही चलन रहा तो किसी दिन यह योग को योगर्ट भी कर देगी तो हैरत नहीं होगी..और गुलाम मानसिकता को पीढ़ियों से ढो रहा हमारा समाज इसे ही गर्वोन्नत भाव से स्वीकार कर लेगा... वैसे योग संकुचित भी हो गया है...यह आसन और प्राणायाम का ही पर्याय बनकर रह गया है..जिन महर्षि पतंजलि को योग का आविष्कारक माना जाता है, उन्होंने योग के बारे में कहा है, यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टांगानि। यानी यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि, ये योग के आठ अंग हैं। भारत में जिन षड्दर्शन की परंपरा है, जिनमें प्रमुख हैं, सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, पूर्व मीमांसा और वेदांत हैं। विश्वविद्यालयों में बाकायदा दर्शन शास्त्र की पढ़ाई होती है...स्कोरिंग यानी ज्यादा नंबर देने वाला विषय माना जाता है दर्शन शास्त्र...इसलिए सिविल सेवा की परीक्षाओं में भी इसके जरिए लोग कामयाबी हासिल करते हैं.. उनमें से कई आईएएस हैं, आईपीएस हैं..दूसरे सेवाओं के भी अधिकारी हैं..लेकिन लगता है कि परीक्षाएं पास करने के बाद वे भी योग दर्शन को भूल गए हैं..अगर ऐसा नहीं होता तो योग के इस एकांगी रूप पर वे सवाल जरूर उठाते.. यानी योग सिर्फ आसन और प्राणायाम नहीं, जीवन का एक दर्शन है..लेकिन हम हैं कि योगा के जरिए सिर्फ प्राणायाम और आसन के पीछे ही दौड़ रहे हैं... भारतीयता की परंपरा, सर्वांग जीवन की परंपरा है, जिसमें इह भी है और पर लोक भी...योग दोनों से अपने आठों अंगों के जरिए आत्मा को जोड़ता है...इसमें परमात्मा से जुड़ने की राह भी है..जब यह जुड़ना परम यानी क्लाइमेक्स पर पहुंचता है तो एक तरह से खुद को तिरोहित करना होता है...जिस बिंदु पर यह उपलब्धि हासिल होती है, उसे परमानंद कहते हैं.. काश कि हम योग को इस अंदाज में समझ पाते...उदारीकरण की आंधी से दूर..भारतीयता के दर्शन के एकदम करीब...

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