अमर उजाला में प्रकाशित
उमेश चतुर्वेदी
संपादक - प्रयाग शुक्ल
प्रकाशक - वाग्देवी प्रकाशन, बीकानेर
मूल्य - 250 रूपए
आज राजनीति खुद ही कमाई का साधन बन गई है, अब राजनेता
स्वयं ही करोड़ों में खेलते हैं। लिहाजा उनके अनुयायी उनसे आर्थिक सहयोग और ताकत ही
हासिल करने की उम्मीद और लालच में उनके अनुगामी बने रहते हैं। वैचारिकता की खुराक
की उम्मीद अब राजनेताओं से कम ही की जाती है। सोचिए, अगर राममनोहर लोहिया से भी
उनके अनुयायी सिर्फ आर्थिक ताकत ही हासिल करने की उम्मीद लगाए बैठे होते और उनके
अनुगामी बने रहते तो क्या देश को झिझोड़ देने वाले विचार लोगों के सामने आ पाते,
तब क्या देश को आलोड़ित करने वाली लोकसभा की तीन आने बनाम पंद्रह आने की बहस देशव्यापी
चर्चा का विषय बन पाती। डॉक्टर राममनोहर लोहिया महज चार साल तक लोकसभा के सदस्य
रहे, लेकिन पहले नेहरू, फिर शास्त्री और बाद में इंदिरा गांधी की सरकारों की
नीतियों की कलई जिस अंदाज में उन्होंने संसद के सामने खोली, वैसा दशकों तक संसद
की शोभा बढ़ाते रहे लोग नहीं कर पाए हैं। उनके विचार आज भी अगर जनमानस की
स्मृतियों में ताजा हैं तो इसके बड़े कारक हैदराबाद के कारोबारी खानदान के चिराग
बदरी विशाल पित्ती और कोलकाता के मारवाड़ी व्यापारी बालकृष्ण गुप्त परिवार है।
हैदराबाद के निजाम के आर्थिक प्रबंधक रहे पित्ती परिवार को राजा की उपाधि मिली थी।
उस परिवार के इकलौते चश्म-ओ-चिराग बदरी विशाल पित्ती का लोहिया विचार और
हिंदी की गंभीर पत्रकारिता को अमोल योगदान है। इन्हीं बदरी विशाल की जिंदगी पर
आधारित इसी नाम से वरिष्ठ सांस्कृतिक पत्रकार और लेखक प्रयाग शुक्ल ने संपादित की
है। जिसमें बदरी विशाल की कलाप्रियता, साहित्यधर्मिता और सांस्कृतिक सोच को लेकर
21 हस्तियों ने अपने विचार लिखे हैं। इससे बदरी विशाल के सांस्कृतिक व्यक्तित्व की
एक मुकम्मल तसवीर सामने आती है।
समाजवादी और कलाकारों की दुनिया जानती है कि
देवी-देवताओं की नंगी पेंटिंग बनाकर चर्चा में रहे मशहूर पेंटर मकबूल फिदा हुसैन
ने लोहिया की प्रेरणा से रामायण और महाभारत पर पेंटिंग की सीरिज बनाई है। पित्ती
के हैदराबाद के महलनुमा घर मोतीमहल में डॉक्टर राममनोहर लोहिया से मकबूल फिदा
हुसैन की कैसे मुलाकात हुई, इस पर खुद हुसैन ने एक लेख लिखा है। हैदाराबाद का मोती
महल, डॉक्टर लोहिया, हुसैन और बदरीविशाल पित्ती नामक इस संस्मरण में इन चित्रों की
रचना प्रक्रिया से पहले का सच दर्ज है। इस संस्मरण में लोहिया से मुलाकात और फिर
आजीवन उनके कला सहयोगी रहने के लिए बने रिश्तों की आधारभूमि की चर्चा है। बदरी
विशाल जी का व्यक्तित्व सही मायने में साहित्य और कलाओं का समाजवादी आधारभूमि पर
बना संगम था। इस संगम को चित्रकार रामकुमार, लक्ष्मा गौड़, पंडित जसराज, स्वप्न
सुंदरी जैसी कला जगत की निष्णांत हस्तियों ने अपने संस्मरणों में आत्मीय ढंग से
याद किया है। वहीं रमेशचंद्र शाह, अजित कुमार, कुंवर नारायण आदि साहित्यकारों ने
कल्पना को भी अपने ढंग से याद किया है। सुदूर गाजीपुर में रहते हुए विवेकी राय ने
कल्पना में प्रकाशित साहित्य सर्वेक्षण पर इसी नाम से एक पुस्तक ही लिखी है। बेहतर
होता कि उनसे भी एक संस्मरण लिखवाया गया होता।
आज लोहिया का साहित्य अगर जनमानस को उपलब्ध है,
लोकसभा में दिए लोहिया के भाषणों को आज की राजनीतिक हस्तियां देश के बेहतर भविष्य
के लिए अगर उद्धृत करती हैं तो इसकी बड़ी वजह बदरी विशाल पित्ती की सोच है।
जिन्होंने पहले चेतना और बाद में नवहिंद प्रकाशन की स्थापना करके समाजवादी और
मूल्यपरक साहित्य प्रकाशित किया। डॉक्टर लोहिया की पत्रिका मैन काइंड. तेलुगू
मासिक जयंती और तेलुगू साप्ताहिक पोराटम के संपादकीय मंडल के भी सदस्य बदरी विशाल
पित्ती रहे। 1948 से 1951 तक उन्होंने हैदराबाद से ही उदय नाम का साप्ताहिक पत्र
निकाला। पूंजी के कारोबारी परिवार के बदरी विशाल कहा करते थे कि उन्होंने अपनी
पैतृक संपत्ति में कुछ भी इजाफा नहीं किया है। बल्कि उसे गंवाया ही है। लेकिन
साहित्य, कला और संगीत की उन्होंने जो सेवा की और उसे जो प्रोत्साहन-संरक्षण दिया
है, वह अनमोल है और उसे विरासत याद करेगी। प्रस्तुत पुस्तक उनके इस गुण को उभारने
में कामयाब रही है।
डॉक्टर लोहिया का कोई सहयोगी हो और उसकी तीक्ष्ण
राजनीतिक सोच ना हो, यह कैसे हो सकता है। बदरी विशाल पित्ती भी समाजवादी सोच वाले
राजनेता भी थे। 14 साल की उम्र में भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लेना, निजामशाही
के खिलाफ आंदोलन करना मामूली बात नहीं है। हैदराबाद को भारत में मिलाने, बाद के
दौर में अनाज के दाम कम करने और 1959 में अंग्रेजी हटाओ आंदोलन के आयोजन जैसे
राजनीतिक काम भी बदरी विशाल ने किए। सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर आंध्र विधानसभा के
सदस्य भी रहे। लेकिन उनके राजनीतिक व्यक्तित्व पर पुस्तक में जानकारी तो है, लेकिन
आलेख नहीं है। इससे उनका राजनीतिक व्यक्तित्व उभर कर सामने नहीं आ पाया है।
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