शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

इतिहास ब-जरिए ज्ञान-विज्ञान


अब तक इतिहास को सिर्फ दो ही नजरिए से ज्यादा देखा-समझा गया है। इसी नजरिए से उसे लिपिबद्ध भी किया गया है। शासकों की वंशावली और उनके जीत-हार, उनकी शासन व्यवस्था, उनके अत्याचार और उनके जनहित की योजनाओं के आधार पर ही अब तक इतिहास लेखन हुआ है।
बचपन से लेकर अब तक हमने अपनी पाठ्यपुस्तकों या श्रुति-स्मृति की परंपराओं के जरिए अपनी और दुनिया के विगत का जितना ज्ञान हासिल किया है, उन सबका नजरिया यही है। मार्क्सवादी दर्शन के प्रभाव में बाद में जनता, उसके संघर्ष और उसकी विकास यात्रा के नजरिए से भी इतिहास को देखने-समझने की कोशिश शुरू हुई है। लेकिन हम में से शायद ही किसी का ध्यान इतिहास को विज्ञान की विकास यात्रा के जरिए से देखने की कोशिश की हो। नृतत्वशास्त्र में कहीं –कहीं ये नजरिया मिल सकता है। इन अर्थों में देखें तो ओमप्रकाश प्रसाद की पुस्तक प्राचीन विश्व का उदय एवं विकास (विज्ञान की भूमिका) नई कोशिश है।
हकीकत तो यही है कि विश्व इतिहास की रचना में जिन पशुमानवों, गरीबों, अनपढ़, अर्धनग्न, जंगली और आदिवासी लोगों ने किया, उनके अंदर भी एक वैज्ञानिक सोच थी। उन्होंने ही पहले हथियार, आग, पहिया और न जाने ऐसी कई चीजों की खोज की, जिन्होंने बाद के दौर में दुनिया को गतिशील, सभ्य और द्रुतगामी बनाने की नींव रखी। उन्होंने जब ये आविष्कार किए, तब वे किसी विश्वविद्यालय के विद्यार्थी नहीं थे...तब तो विद्यालय भी नहीं थे। लेकिन उन्होंने अपनी जरूरत को कल्पना से जोड़ा और इस तरह सीढ़ी दर सीढ़ी आगे बढ़ते गए। भारत, मिस्र, मेसापोटामिया, चीन, यूनान, माया सभ्यता और रोम की सभ्यताओं का उदय और विकास इतिहास के पन्नों से दूर रह गए लोगों की कोशिशों का ही नतीजा है। इन्हीं कोशिशों की विकास यात्रा को अपने तईं लिपिबद्ध करने की कोशिश ओमप्रकाश प्रसाद ने की है।
इस पुस्तक में लेखक ने तर्कों से साबित किया है कि प्राचीन मनुष्य के बीच गरीबी-अमीरी, ऊंच-नीच, धर्म-अधर्म और अपने-पराए में अंतर नहीं था। आज के मनुष्य की तरह न तो उनकी दुश्मनी छिपी थी और न ही दोस्ती का वैसा इजहार था। सबकुछ सहज और संयत तरीके से बढ़ रहा था। इसी विकास यात्रा में उन्होंने कभी समस्याएं महसूस कीं तो उन्हें सुलझाने के लिए अपनी तत्कालिक बुद्धि का सहारा लिया। इस तरह जादू-टोने का उद्भव हुआ। दिलचस्प है कि इन प्रारंभिक अज्ञानियों के चक्कर में ज्ञान की दुनिया बड़ी होती गई। इसके बाद जब ज्ञान बढ़ा तो उसके दुरूपयोग की प्रवृत्ति भी बढ़ती गई और लेखक के मुताबिक बाद में इसी दुरूपयोग ने सामाजिक दुराव और तनाव का नया अध्याय शुरू किया, जिसके दर्शन हमें मौजूदा समाज में बार-बार होते हैं।
लेखक के मुताबिक वैदिक शास्त्र का आरंभ जादू से ही हुआ। प्रारंभिक दौर में बीमारियों के इलाज में औषधियों के साथ-साथ मंत्र प्रयोगों और जादू टोने की सहायता ली जाती थी। आज भी कुछ समाजों में ये प्रवृत्ति दिखती है। बहरहाल इन्हीं तरह के प्रयोगों से कुछ औषधियां अचूक पाई गईं और लेखक के मुताबिक इसी तरह आयुर्वेद का उद्भव हुआ। जब धीरे-धीरे कृषि का विकास हुआ। मौसम पर ही तब की खेती आधारित थी। लिहाजा मौसम के पूर्वानुमान की शुरूआत हुई। इसके साथ अनुभव जुड़ता गया और अनुभव सिद्ध मौसम विज्ञान की शुरूआत हुई। ज्योतिष के जन्मदाता भी ये ही लोग थे। बाद में खेती का विस्तार हुआ...सार्वजनिक संपत्ति की बजाय निजी संपत्ति पर जोर बढ़ा और इस तरह सभ्यता की कहानी विज्ञान के जरिए आगे बढ़ती रही।
एक तथ्य पर गौर फरमाया जाना चाहिए कि दुनिया में चाहे जहां की सभ्यताएं आगे बढ़ीं, वे कम से कम एक सूत्र से जुड़ी हुई थीं और यह सूत्र है विज्ञान। ओमप्रकाश प्रसाद ने अपनी पूरी पुस्तक में सभ्यताओं के विकास का विश्लेषण वैज्ञानिक विकास की जरूरत और उसकी विकास यात्रा के जरिए किया है। उनका मानना है कि पूरी दुनिया में एकता और आपसी निर्भरता का सबसे बड़ा आधार विज्ञान ने ही बनाया है। यही वजह है कि मानव विकास से संबद्ध तथ्यों का विस्तृत ब्यौरा इस पुस्तक में मिलता है। यह पुस्तक यह भी बताने की कोशिश करती है कि मौजूदा दौर में जितनी प्रकार की सुख-सुविधाएं विश्व को हासिल हैं, उनकी प्रमुख वजह विज्ञान ही है। पुस्तक इस नतीजे पर पहुंचती है कि यह दुनिया उन लोगों की अमूल्य देन है, जिन्हें आज का विश्व गरीब, कामगार, अशिक्षित, निम्न पशुमानव, म्लेच्छ और स्पृश्य मानता है। यह सच है कि कडी़ धूप और बालू की रेत पर हजारों-हजार साल की यात्रा के बाद अनाज और अग्नि की खोज में इन्हीं मानवों ने अहम भूमिका निभाई। उनकी चाल-ढाल और रहन-सहन भले ही अवैज्ञानिक था। लेकिन उनकी सोच वैज्ञानिक जरूर थी। तभी वे प्रकृति को चुनौती दे सके और ऐसा आधार तैयार करने में सफल रहे, जिस पर चलते हुए सभ्यता आज की ऊंचाइयों तक पहुंच पाई है। कहना ना होगा कि इन लोगों के अवदान का दर्शन इस पुस्तक में बार-बार होता है। इस पुस्तक की खूबी इसके आखिर में दी गई शब्दावली से बढ़ गई है। जिससे ज्ञान-विज्ञान के कई अनजाने पहलुओं को जानने- समझने में मदद मिलती है।
पुस्तक – प्राचीन विश्व का उदय एवं विकास(विज्ञान की भूमिका)
लेखक – ओमप्रकाश प्रसाद
प्रकाशक – राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
मूल्य – 600 रूपए

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