गुरुवार, 15 जनवरी 2009

क्यों चुप है चीन

उमेश चतु्र्वेदी
जून 2003 में चीन की धरती पर तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जब कदम पड़े थे – तब ना सिर्फ भारतीय, बल्कि चीन के मीडिया ने भी दोनों देशों के बीच रिश्तों की नई इबारत लिखे जाने की भरपूर उम्मीद जताई थी। इस उम्मीद की वजह भी थी। 1962 में भारत की शर्मनाक पराजय के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की ये पहली चीन यात्रा थी, जिससे किसी सार्थक नतीजे की उम्मीद जताई जा रही थी। ये उम्मीद परवान चढ़ती नजर भी आई...जब 44 साल से बंद सिक्किम की सीमा पर स्थित नाथूला दर्रे को 6 जुलाई 2006 को खोल दिया गया। तब से लेकर गंगा और यांग टिसी क्यांग में न जाने कितना पानी बह चुका है। आर्थिक बदलाव के दौर में इन दोनों पड़ोसी देशों के बीच अर्थव्यवस्था से लेकर सियासी हालात ...हर मोर्चे पर बेहतर संबंधों की उम्मीद जताई जाती रही है। लेकिन क्या ये उम्मीद सचमुच सफल हो पाई है...इस पर नजर डालने के लिए हाल में हुए मुंबई हमले को लेकर चीन की सरकार और वहां के मीडिया के रूख पर निगाह डालना ज्यादा समीचीन होगा।
26 नवंबर को मुंबई हमले के बाद पूरी दुनिया की सवालिया निगाहें पाकिस्तान और पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद पर टिकी हुई हैं। अमेरिका की एफबीआई तक मुंबई में पकड़े गए पाकिस्तानी आतंकवादी कसाब से पूछताछ कर चुकी है। इसे लेकर अमेरिकी मीडिया में खबरों की भरमार है। पाकिस्तान को चेतावनियों वाले लेख लगातार साया हो रहे हैं। कुछ यही हाल ब्रिटेन का भी है। ब्रिटिश विदेश मंत्री डेविड मिलिबैंड इन दिनों भारत यात्रा पर हैं। उन्होंने भी पाकिस्तान को आतंकवाद का निर्यात रोकने और उस पर काबू पाने के लिए चेतावनी दी है। जाहिर है..ये खबर भी इन दिनों यूरोपीय और अमेरिकी अखबारों की सुर्खियां बनी है। सात समंदर पार या सात हजार मील दूर की सरकार और वहां की मीडिया के लिए पाकिस्तान इन दिनों बड़ा सवाल है। लेकिन अपने ठीक पड़ोस में ...हिमालय के पार स्थित चीन के लिए जैसे ये घटना कोई खबर ही नहीं है। यह उस चीन का नजरिया है, जिसके साथ हमारे अर्थशास्त्री बदलते आर्थिक दौर में मिलकर नई इबारत लिखने की उम्मीद पाले हुए हैं।
जो चीन को जानते हैं और उसे देखते – परखते रहे हैं, उन्हें पता है कि चीन का मीडिया क्यों चुप है। चीन में वैसा मीडिया नहीं है, जैसा भारत, पाकिस्तान या फिर यूरोप-अमेरिका में है। इन जगहों के मुताबिक यहां का मीडिया ना तो स्वतंत्र है, ना ही निष्पक्ष। चीन का मीडिया उन्हीं खबरों को तवज्जो देता है या यहां वही खबरें सुर्खियां बनतीं हैं ...जिसके लिए चीन सरकार से हरी झंडी मिलती है। साफ है - यहां के मीडिया पर सरकारी नियंत्रण है। शायद यही वजह है कि चीन के मीडिया को वहां की सरकार का मुखपत्र ही कहा जाता है।
जब चीन की सरकार ही इस मसले को लेकर पूरी तरह चुप्पी साधे हुए है तो वहां का सबसे बड़ा अखबार पीपुल्स डेली या सरकारी समाचार एजेंसी झिंन्हुआ कैसे पाकिस्तान पर उंगली उठा सकती है। 26 नवंबर के आतंकी हमले के बाद चीन के सरकारी रेडियो चाइना इंटरनेशनल ने भी कायदे की डिस्पैच दिल्ली से नहीं भेजी या भेजी भी तो उसे प्रसारित नहीं किया गया। सिर्फ तीस नवंबर को इसने एक खबर जारी की। वह खबर थी कि भारतीय गृहमंत्री ने भारतीय प्रधानमंत्री को मुंबई हमले के सिलसिले में अपना इस्तीफा सौंपा। जाहिर है ये खबर तब के गृहमंत्री शिवराज पाटिल के इस्तीफे को लेकर थी। ऐसा नहीं कि चीन की सरकार इस मसले पर चुप ही है। उसने चार दिसंबर को एक अपील जरूर जारी की। इसमें चीन की सरकार ने भारत और पाकिस्तान सरकार से मुंबई हमले को लेकर बातचीत करने की अपील की थी। इस खबर को पीपुल्स डेली ने चार दिसंबर को प्रमुखता से साया किया। इसके बाद से मुंबई हमले को लेकर चीन का मीडिया हैरतनाक तरीके से चुप है। हां 14 दिसंबर को उसकी चुप्पी एक बार टूटी जरूर ...लेकिन उसमें ये जानकारी दी गई कि मुंबई हमले को लेकर चीन सरकार और प्रशासन भी चिंतित है और यही वजह है कि बीजिंग में सुरक्षा इंतजामों को लेकर रिहर्सल की गई।
चीन के मीडिया की चुप्पी भी समझ में आती है। हिमालय के दोनों तरफ दोस्ती के लाख दावे किए जाएं- लेकिन ये उतना ही बड़ा सच है कि आज भी दोनों देशों के रिश्तों में वह गरमाहट नहीं आई है, जितनी चीन और पाकिस्तान के बीच है। शायद यही वजह है कि जहां दुनिया भर का मीडिया मुंबई हमलों के लिए पाकिस्तान समर्थित लश्कर-ए-तैय्यबा को जिम्मेदार ठहरा रहा है। वहीं चीन के सरकारी अखबार पीपुल्स डेली ने 28 नवंबर को ये रिपोर्ट प्रकाशित करने में देर नहीं लगाई कि इन हमलों के लिए डेक्कन मुजाहिद्दीन नामक भारतीय संगठन जिम्मेदार है। पीपुल्स डेली ने पाकिस्तानी उर्दू अखबारों की उन रिपोर्टों को प्रमुखता से प्रकाशित करने में भी देर नहीं लगाई – जिनमें इस हमले के लिए हिंदू आतंकवादी संगठनों को जिम्मेदार ठहराया गया।
पीपुल्स डेली में तो एक अनाम विश्लेषक के हवाले एक रिपोर्ट भी प्रकाशित की गई। जिसमें मुंबई हमले के पीछे पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों का हाथ होने से पाकिस्तानी अधिकारियों और नेताओं ने इनकार किया था। चीनी मीडिया की ये चुप्पी और भी दिलचस्प बन जाती है – जब आपको पता चलता है कि चीन की सरकारी संवाद एजेंसी झिन्हुआ ने मुंबई हमलों को 2008 के टॉप टेन वर्ल्ड न्यूज में शुमार किया था। चीन के मीडिया ने किस तरह भारतीय पक्ष को कमजोर दिखाने की कोशिश की – इसका उदाहरण है एक रिपोर्ट। तीस दिसंबर को प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मुंबई हमले की संयुक्त जांच के संबंध में भारतीय विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी के बयान से पाकिस्तान के सबूतों को ही बल मिलता है। ये रिपोर्ट कितनी शातिराना है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारतीय विदेश मंत्रालय ने मुंबई हमले की संयुक्त जांच के पाकिस्तान के प्रस्ताव को सिरे से नकार दिया था। लेकिन इस रिपोर्ट में भारत के इस इनकार का कोई जिक्र नहीं है।
तीस दिसंबर को ही झिन्हुआ ने एक रिपोर्ट जारी की। पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसफ अली जरदारी और चीन के उप राष्ट्रपति ही याफेई के बीच बैठक के बाद एक तरह से चीन सरकार के वक्तव्य के तौर पर जारी किया गया था। इसके मुताबिक – दक्षिण पूर्वी एशिया के इलाके में शांति और स्थिरता को लेकर चीन, भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने के लिए रचनात्मक भूमिका निभाता रहेगा।
चीन के मीडिया की इस भूमिका के विश्लेषण के बाद भी क्या दोनों देशों के बीच पारदर्शिता पर आधारित दोस्ती की कोई गुंजाइश बाकी रह जाती है। इस पर उन लोगों को खासतौर पर विचार करना चाहिए, जिन्हें लगता है कि दोनों देशों के रिश्तों के बीच पड़ी हिमालय की ठंडी बरफ को पिघलाना कठिन नहीं है।

2 टिप्‍पणियां:

RAJIV MAHESHWARI ने कहा…

अच्छी जानकारी जुटाई हे. इन "लाल मुहु " वालो के वारे में........धन्यबाद
राजीव महेश्वरी

बेनामी ने कहा…

hamare desh ke yojanakaro ko cheen ki har gatividhiyo ka barik vislesan karane ke bad hi arthik or rajnaitik relation rakhane chahiye. hame yah samajhna hoga ki china kabhi bhi hamari kutnitik sahayata nahi karega.yah lekh china himayati budjiviyo or bampanthiyo ko bhi padana chahiye jisase unki budhi mai kuchchh ghuse.