हिंदी के इन दिनों खूब छपने वाले एक स्तंभकार और एक बड़ी जगह कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार को पिछली सदी के आखिरी सालों में शिद्दत से नौकरी की तलाश थी...तब दैनिक भास्कर में कमलेश्वर जी प्रधान संपादक की हैसियत से कार्यरत थे। यह बात और है कि दफ्तर कम ही आते थे। बहरहाल दोनों सज्जनों को कमलेश्वर जी भास्कर में लाना चाहते थे। भास्कर के प्रबंध संचालक सुधीर अग्रवाल से मुलाकात भी करवाई। यह बात और है कि उन्हें नौकरी नहीं मिली। लेकिन कमलेश्वर जी उन लोगों की मदद करना चाहते थे। उन्होंने तब फीचर सेक्शन में काम करने वाले मुझ समेत सभी पांचों लोगों को बुलाया और कहा कि अमुक-अमुक को ज्यादा से ज्यादा छापो...ये लोग बेरोजगार हैं और उनका भी घर चलना चाहिए। संपादक के निर्देशानुसार हम लोग उन जैसे कई लोगों से साग्रह लिखवाते थे। इसी तरह दैनिक हिंदुस्तान में एक कृष्णकिशोर पांडेय जी होते थे। संपादकीय पृष्ठ के प्रभारी थे। वे भी बेरोजगार फ्रीलांसरों पर ज्यादा ध्यान देते थे। इसका यह भी मतलब नहीं कि सारे फ्रीलांसर खराब लिखते थे, उनकी पढ़ाई-लिखाई कमजोर थी और नजरिया खराब था। लेकिन आज देखिए. ठेठ खालिस हिंदी के लेखन पर अखबारों का भरोसा कम हुआ है। अंग्रेजी के तुक्कामार लेखक और टीवी के उलथा लिखने वाले चेहरों पर हिंदी अखबारों का भरोसा बढ़ गया है। ऐसे में कमलेश्वर और कृष्ण किशोर पांडेय ज्यादा याद आते हैं। कमलेश्वर जी नहीं रहे..पांडे जी दिल्ली में ही रहते हैं..
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