अब तक ये ही माना जाता था कि अखबार और पत्रिकाएं ही गिफ्ट दे-देकर अपना सर्कुलेशन बढ़ाते हैं। इसके लिए उनकी आलोचना भी होती रही है। लेकिन अब खुलासा हो गया है कि टीआरपी की माया के पीछे भी गिफ्ट महाराज का हाथ है। ट्राई की ओर से टीआरपी की वैकल्पिक रणनीति तैयार करने के लिए ट्राई ने 15 मई को एक बैठक बुलाई थी। इसी बैठक में खुद
टेलीविजन ऑडिएंस मीजरमेंट यानी टैम के सीईओ एल वी कृष्णन इजहार किया कि जिन घरों में टीआरपी के मीटर लगे हुए हैं-उनके सदस्यों को गिफ्ट दिया जाता है। सबसे बड़ी बात ये कि ऐसा करने में उसे कोई बुराई भी नजर नहीं आती। ऐसे में क्या गारंटी है कि टेलीविजन चैनलों के कर्ता-धर्ता गिफ्ट देकर या टैम अधिकारियों के जरिए टीआरपी मीटर वाले घरों के सदस्यों तक गिफ्ट पहुंचा कर अपनी रेटिंग में कमीबेशी नहीं कराते होंगे।
जब इंडियन रीडरशिप सर्वे में ये सब संभव है तो टीआरपी में ऐसा क्यों नहीं हो सकता ..पिछले साल राजस्थान के दो प्रमुख हिंदी अखबारों का विवाद सामने आया था। एक का आरोप था कि दूसरे ने आईआरएस के सर्वेक्षकों को पटाकर - घूस देकर अपनी पाठक संख्या ज्यादा दिखाई है। अब हमें तैयार रहना होगा कि प्रतिद्वंदी चैनलों के बीच भी ऐसे आरोप-प्रत्यारोप के दौर शुरू हो सकते हैं।
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3 टिप्पणियां:
चतुर्वेदी जी मैं ने आलेख पढ़ा। अच्छा लगा। पर यह तो बड़े पैमाने पर सब जगह हो रहा है। मार्केटिंग का युग है तो यह सब तो होगा ही। उपभोक्ता को अपनी आँखें सजग रखनी होंगी। इन रेटिंग्स पर से ही विश्वास उठ गया है।
टैम के आंकड़ों में मुझे कोई भरोसा नहीं है। लेकिन यहाँ टैम के सीईओ ने बस इतना कहा है कि टैम मीटर लगाते समय वे उस परिवार को कोई उपहार देते हैं, वरना लोग मीटर लगाने ही क्यों देंगे। इस टिप्पणी से यह मतलब नहीं निकलता कि जिन घरों में टैम मीटर लगे हुए हैं, वहां कोई टीवी चैनल भी रेटिंग बढ़ाने के इरादे से अपने उपहार पहुंचा सकता है। टैम मीटर किन घरों में लगे हैं, यह जानकारी बस टैम के ही पास है (ऐसा माना जाता है)।
जहाँ तक टैम के आंकड़ों पर टीवी चैनलों के प्रसाद के असर की बात है, इस बारे में हम बस संदेह ही कर सकते हैं। मुझे नहीं लगता कि हममें से किसी के पास इसकी 'जानकारी' है। यह बिल्कुल हो भी सकता है, और नहीं भी हो सकता है। और भला टैम मीटर वाले परिवारों को उपहार देने से इस बात का कोई लेना-देना क्यों होगा। यह तो बस सीईओ से सीईओ के बीच का मसला होगा, मीटर वाले परिवार बीच में कैसे आ जायेंगे।
राजीव रंजन झा
सीईओ, नारदवाणी संचार माध्यम प्रा.लि.
अच्छी जानकारी दी है।
लेकिन राजीव रंजन वाले कमेंट पर भी कुछ बोलना चाहिए।
अब आपको कॉपी लेखन वाली किताब पर काम शुरू कर देना चाहिए। जी हां, टीवी स्क्रिप्ट उर्फ कॉपी लेखन की बात कर रहा हूं।
चाहें तो मैं जिज्ञासु के रूप में आपकी मदद कर सकता हूं। इस बहाने मुझे भी कुछ ज्ञान हो जाएगा।
लालबहादुर ओझा
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