मंगलवार, 28 अक्तूबर 2008

क्यों महान हैं गांधी ...


गांधी जी की महानता को लेकर आए दिन सवाल-जवाब और तर्क-वितर्क होते रहे हैं। ऐसे ही सवालों से लबरेज एक जर्मन जिज्ञासु युवती का सहारा समय उत्तर प्रदेश के सीनियर प्रोड्यूसर राजकुमार पांडेय का सामना हुआ तो उन्हें इसका जवाब खोजने के लिए काफी कवायद करनी पड़ी। उसी कवायद को उन्होंने शब्दों में पिरोकर मीडिया मीमांसा को भेजा है। पेश है राजकुमार पांडेय जी के विचार-
महात्मा गांधी को महान किस चीज ने बनाया। ये सवाल भले ही अटपटा लगे लेकिन इसका जबाव इतना आसान नहीं है। वो भी उस हालत में जब कोई विदेशी बातचीत के दौरान ये सवाल पूछ बैठे। एक बातचीत में जर्मनी की एक युवती ने ये प्रश्न खड़ा कर दिया। बैठकी पत्रकारों की थी, लिहाजा हमें जवाब देना ही था। तरह तरह के उत्तरों के बीच मैंने कहा कि गांधी की ईमानदारी, उनकी सादगी और मानव मात्र के प्रति उनके आदर भाव ने गांधी को महान बनाया। एक मित्र ने बीच में ही टोक दिया- गांधी ने कमजोरों को सशक्त किया था। इस लिए वे महान बने। लेकिन पश्चिमी समाज में आदमी की ताकत को पैसे से तौला जाता है। लिहाजा जर्मन युवती के लिए ये जवाब हैरत की बात थी। ऐसे में उसे फिर से सवाल दागना ही था - गांधी के पास वो ताकत कहां से आई कि वो किसी और को ताकत दे सकें।
प्रश्न मासूम और तर्किक लग रहा था। जिसे भारतीय दर्शन की पारंपरिकता से परिपूर्ण समझ न हो तो उसे ऐसे सवाल परेशान करते ही रहेंगे। दरअसल ताकत का अर्थ पश्चिमी दर्शन भौतिक ताकत से ही लगाता है। आत्मिक ताकत का अंदाजा उसे तब तक नहीं हो सकता, जब तक भारतीय जीवन पद्धति और दर्शन से वाकफियत न हो।
मैने उस युवती से बातचीत कर शायद उसे काफी हद तक संतुष्ट कर दिया, लेकिन चूंकि चर्चा में मदिरा भी शामिल थी लिहाजा कोई खास नतीजा नहीं निकलना था।
लेकिन मुझे लगता है कि हम भारतीय लोग अपने लिए प्रतिमूर्तियां गढ़ते हैं। कई बार किसी और की बनाई हुई छवि भी हमें इतनी रोचक लगती है कि हम उसके दीवाने हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो हम छविवादी है। इसी से मिलता जुलता एक तर्क सादृश्यमूलक युक्ति भी है। हालांकि सादृश्यमूलक युक्ति में हम बनी बनाई छवियों में अपने जैसा कुछ देख कर उसे अपना मानने लगते हैं। फिर उस छवि को हम तरह तरह की कसौटियों पर कसते हैं। ये कसौटिंयां इतनी खरी होती हैं कि बहुत सी छवियां या प्रतिमूर्तियां समय के साथ भंग भी होती जाती है। इसी छविवाद के तहत श्री राम, श्री कृष्ण भगवान हैं और अमिताभ, शाहरुख हमारे हीरो हैं। हम सचिन और गावसकर के दीवाने हैं।
गांधी जी की छवि भारत में उनके जुझारुपन, और आंदोलनों के प्रति उनके अपने नज़रिए के कारण बनी। साथ में उनकी सादगी, ईमानदारी और मानव मात्र को सम्मान देने के उनके भाव ने उन्हें संत का स्थान दिलाया। उन्हें छवियों के पीछे चलने की हमारी प्रवृति का लाभ मिला और चल पड़े जिधर दो डग मग में चल पड़े कोटि पग उसी ओर.... की स्थिति हो गयी। गांधी जी के कहने पर करोड़ों लोग उनके पीछे चलने लगे।
दरअसल इनमें से कोई भी एक गुण अकेला किसी को बड़ा तो बना सकता है। लेकिन महान नहीं। गांधी जी जिस तरह से व्यक्तिगत स्वतंत्रता के हामी थे, या फिर जो सादगी उनके पास थी, जिस तरह से वे ईमानदार थे, सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन में उन सब चीजों ने मिल कर उन्हें महान बनाया। भारतीय परंपरा में अब से तकरीबन तीन दशक पहले जो संत कम से कम कपड़े पहन कर सादगी के साथ तपस्या में लगा रहता था वही महात्मा कहलाता था। तमाम आशाराम या फिर किसी और की तरह भौतिक साधनों का भयंकर इस्तेमाल करने वाला संत नहीं माना जाता था। गांधी का युग वही था। उन्होंने भी बहुत कुछ छोड़ा। वे एक सफल आंदोलन के महानायक के रूप में भारत आए थे। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में अपने नेतृत्व की शक्ति दिखा दी थी। उन्होंने यहां पर देखा कि मानव मानव में गहरा भेद है। थोड़े से अभिजात्य या ब्राह्मण जाति के लोग तो शूद्र की परछाई से भी दूर भागते हैं। वही शूद्र उनका मैला सिर पर उठा कर चल रहा है। हरिजनों कों मंदिर में प्रवेश करने का अधिकार नहीं है। गांधी जी ने बराबरी का नारा ही नहीं दिया, मंदिरों के दरवाजे हरिजनों के लिए खुलवाए। सबको बताया कि सभी मानव बराबर है। तब जा कर सुदूर बिहार के हरिजन टोले में भी “गान्ही बाबा” की टोली तैयार हो गई। हिंदू धर्म की सहिष्णुता को अपने जीवन में दिखा कर उन्होंने मुसलमानों का भी भरोसा हांसिल किया। अब ज्यादातर भारतीयों को वह छवि दिखने लगी, जो उन्हें आजादी दिला सकने वाले नेता में दिखनी चाहिए थी। तब जा कर लोगों ने ही उन्हें वह ताकत दे दी- जिससे वे महान हो सके। जिस ताकत से अंग्रेज फौज और अंग्रेजी हाक़िम डरें। ये गांधी जी ही थे, जिनके सम्मान में उन्हीं के विरुद्ध सुनवाई करने वाले जज ने खड़े हो कर कुछ पक्तियां कहीं। इसकी दूसरी मिसाल शायद ही इतिहास में कहीं और मिले। उनके प्रति लोगों के प्रेम का ही सबूत था कि उन्होंने एक आंदोलन शुरू करने को कहा और आंदोलन चल पड़ा। बाद में जब चौरा चौरी कांड हुआ तो तमाम खतरों के बावजूद उन्होंने आंदोलन वापस लेने में भी हिचक नहीं दिखाई। आंदोलन रुक भी गया। अगर हम गांधी को सिर्फ नेता मानते तो उनके कहने पर आंदोलन चला तो देते, उनकी एक आवाज पर आंदोलन रोकते नहीं। इसकी भी मिसाल कम ही मिलेगी।
गांधी जी के बारे में हम भारतीय तो बचपन से ही जानते हैं, फिर भी ये सब कुछ लिखने की वजह ये हुई कि कहीं कोई और अगर गांधी के बारे में सवाल करे तो हमारे पास उनके राष्ट्रपिता बनने के कारणों की दार्शनिक वजह भी रहे।