शुक्रवार, 6 नवंबर 2015

कल्पना और बदरी विशाल पित्ती का रचनात्मक संघर्ष

मेश चतुर्वेदी
(यथावत के नवंबर प्रथम 2015 अंक में प्रकाशित)
1.कल्पना और हिंदी साहित्य
लेखक- विवेकी राय/प्रकाशक-अनिल प्रकाशन,इलाहाबाद/मूल्य- 150 रूपए
2.स्वातंत्रयोत्तर हिंदी के विकास में कल्पना के दो दशक/ लेखक- शशिप्रकाश चौधरी/प्रकाशक-राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
मूल्य-500 रूपए 
3.बदरी विशाल
संपादक - प्रयाग शुक्ल
प्रकाशक - वाग्देवी प्रकाशन, बीकानेर
मूल्य - 250 रूपए
गांधी जी की कामयाबियां, कर्म और प्रयोग उनके जाने के महज 67 साल बाद ही अतिमानवीय और हैरतअंगेज लगने लगे हैं। आने वाली पीढ़ियां तो यह सोचने के लिए बाध्य ही हो जाएंगी कि सचमुच वे हाड़मांस का हमारे-आपके जैसे ही साधारण पुतले भी थे। कंटेंट और विचार के स्तर पर हिंदी पत्रकारिता जितनी तेजी से छीजती जा रही है, उसे देखते हुए आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि कुछ इसी अंदाज में आने वाले दिनों में पत्रकारिता के कर्मयोगी और छात्रों के सामने जब कल्पना की गुणवत्ता की जानकारी आए तो वे हैरत में पड़ जाएं। लेकिन सुदूर अहिंदीभाषी क्षेत्र से निकलती रही कल्पना ने जिस तरह का रूख हिंदी भाषा और साहित्य के सवालों को लेकर दुनिया के सामने रखा, वह आज के दौर में कल्पनातीत ही कहा जाएगा। भारतेंदु युग के बाद हिंदी को मांजने और सार्वजनिक विमर्श की भाषा बनाने में जो काम आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के संपादन में सरस्वती ने किया, आजादी के बाद कुछ वैसा ही योगदान कल्पना का भी रहा। कल्पना ने हिंदी की दुनिया को कल्पना की सीमारेखा से यथार्थ के धरातल पर लाने और भाषाई स्वाधीनता के आंदोलनों से लेकर हिंदी में नए और आधुनिक चलन को स्थापित करने में जो भूमिका निभाई, उसे विवेकी राय की किताब कल्पना और हिंदी साहित्य में बखूबी देखा जा सकता है। कल्पना की शुरूआत यानी 1949 से लेकर 1977 में अंत तक के उसके अंकों के आधार पर तैयार इस पुस्तक के मूल में खुद कल्पना के संस्थापक और मानस पिता हैदराबाद के सुरूचिपूर्ण मारवाड़ी कारोबारी के बेटे बदरी विशाल पित्ती ही थे। विवेकी राय जी के शब्दों में कहें तो कल्पना का सर्वेक्षण नाम से यह सर्वेक्षण शुरू हुआ। इसका कल्पना में ही धारावाहिक तौर पर प्रकाशन भी हुआ। कल्पना निश्चित तौर पर साहित्य, वर्तनी, व्याकरण, कला-समीक्षा, प्रकीर्ण विधाएं आदि के संदर्भ मे अपने मुकम्मल और ठोस विचार रख ही रही थी। लेकिन उसने किस तरह हिंदी साहित्य और भाषा की सेवा की, उसका चौंकाऊ आयाम उसके प्रतिबद्ध पाठक भी नहीं जान पाए थे। लेकिन विवेकी राय के सर्वेक्षण ने जैसे कल्पना को समझने के लिए नई वीथि ही खोल कर रख दी।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में हिंदी के शलाका पुरूष डॉक्टर नामवर सिंह के निर्देशन में हिंदी साहित्य के विकास में कल्पना के दो दशक यानी सिर्फ 1968 तक पर शशिप्रकाश चौधरी ने शोध किया है। निश्चित तौर पर इनके शोध में कल्पना के दो दशकों के योगदान को केंद्रित किया गया है। शशिप्रकाश चौधरी ने शोध प्रविधि के लिए तमाम पाठ्य सामग्री इकट्ठी की है और उनके आधार पर कल्पना के योगदान पर विश्लेषण किया है। लिहाजा कल्पना के बीस साल की यात्रा के जरिए हासिल कामयाबियों-खूबियों का जिक्र ज्यादा है। लेकिन हैरत होती है कि कल्पन की सामग्री के सर्वेक्षण पर शशिप्रकाश चौधरी के शोध में चर्चा तक नहीं है। अगर इस सर्वेक्षण पर शशि प्रकाश की नजर पड़ी होती तो शायद उनका शोध निकष कुछ और व्यापक होता और उनके शोध मंथन से हासिल कल्पना का मक्खन कहीं ज्यादा स्वादिष्ट होता।

गुरुवार, 5 नवंबर 2015

13 दिसंबर की याद, संदर्भ असहिष्णुता का विरोध....

उमेश चतुर्वेदी


13 दिसंबर 2001
संसद पर आतंकी हमले को सुरक्षा बलों ने नेस्तनाबूद कर दिया था...संसद भवन और उसके आसपास सेना और अर्धसैनिक बलों की टुकड़ियां तैनात हो चुकी थीं..तब मैं दैनिक भास्कर के दिल्ली ब्यूरो में बतौर संवाददाता तैनात था और उस घटना को रिपोर्ट कर रहा था...सेना ने संसद परिसर और उसके आसपास विमानभेदी तोपें तैनात कर दी थीं..ताकि अगर हवाई हमले भी हों तो उन्हें नेस्तनाबूद किया जा सके..अफरातफरी के बाद नई दिल्ली इलाके में धीरे-धीरे शांति लौट रही थी..लेकिन संसद के केंद्रीय कक्ष में बदहवास बैठे सांसद अपने डर पर काबू नहीं पा रहे थे..तब गृहमंत्री के नाते लालकृष्ण आडवाणी और रक्षा मंत्री के नाते जार्ज फर्नांडिस ने केंद्रीय कक्ष में जाकर सांसदों को आश्वस्त करना तय किया..पहले आडवाणी गए और उन्होंने सांसदों को बताया कि हालात काबू में हैं और जल्द ही सब कुछ सामान्य हो जाएगा। इसके बाद जार्ज फर्नांडिस केंद्रीय कक्ष पहुंचे। ऐसे मौकों पर अपने देश में सेना और उसकी ताकत पर भरोसा पुलिस से कहीं ज्यादा नजर आता है..जार्ज बोलने के लिए तैयार हुए...तो सांसदों ने उन्हें घेर लिया. सुरक्षा के जो-जो उपाय हो सकते थे, जार्ज ने रक्षा मंत्री के नाते कर ही दिए थे, उनकी जानकारी भी सांसदों को दी..आखिर में जार्ज ने यह भी बताया कि सेना ने संसद परिसर में विमान भेदी तोपें तैनात कर दी है और हालात पूरी तरह सेना और सुरक्षा बलों के नियंत्रण में हैं..इसलिए घबराने की कोई बात नहीं है.. इतना कहकर जार्ज जैसे ही लौटने लगे, उन्हें सांसदों ने घेर लिया...जार्ज से हाथ मिलाने के लिए सांसदों में होड़ लग गई..उनमें तब की विपक्ष खासकर कांग्रेस के सांसद सबसे आगे थे...सभी जार्ज का शुक्रिया कर रहे थे..कुछ ने तो यहां तक कह दिया है कि जार्ज यू आर अ ग्रेट डिफेंस मिनिस्टर..यू हैव डन वैरी गुड जॉब लाइक अ ग्रेट डिफेंस मिनिस्टर...ये कहने में कोई हर्ज भी नहीं था..लेकिन विपक्षी सांसदों के मुंह से निकली ये बात तब इसलिए कहीं ज्यादा अहम थी, क्योंकि तब जॉर्ज को विपक्ष रक्षा मंत्री ही नहीं मान रहा था..जिस ताबूत घोटाले में हाल ही में जॉर्ज को सुप्रीम कोर्ट ने बरी किया और सीबीआई को झाड़ पिलाई, उसी कथित घोटाले के चलते विपक्ष उन्हें संसद के दोनों सदनों में देखना तक नहीं पसंद करता था..जिस दिन लोकसभा या राज्यसभा में रक्षा मंत्रालय की बारी होती, प्रश्नकाल शुरू होते ही कांग्रेस समेत समूचा विपक्ष सदन से बाहर निकल जाता था - भाई जब रक्षा मंत्री मानते ही नहीं तो सवाल का जवाब क्यों सुनें...लेकिन आतंकी हमले के बाद उन्हीं सांसदों में संसद के केंद्रीय कक्ष में जॉर्ज का आभार जताने के लिए होड़ मच गई...असहिष्णुता को लेकर मौजूदा केंद्र सरकार पर उठ रहे सवाल, मोदी सरकार के साथ विपक्ष के जारी असहयोग को देखते हुए एक बार फिर यह घटना याद आ गई...