शनिवार, 13 सितंबर 2014

इंसानियत की तरफ बढ़े हाथ



उमेश चतुर्वेदी
(नवभारत टाइम्स में प्रकाशित)
तपती गरमी के बीच बारिश की फुहारें जिंदगी में जैसे नई लहर लेकर आती हैं..जीने और नए तरीके से सोचने की लहर..इस लहर को बार-बार महसूस किया है...लहजा बदल सकता है..हरफ बदल सकते हैं..लेकिन बारिश के साथ जिंदगी का यह अनुभव हर शख्स को होता ही है..लेकिन यह बारिश भी जिंदगी में एक नए तरह का अनुभव करा जाएगी..ऐसा कभी सोचा भी नहीं था..नियति में तमाम भरोसे के बावजूद इस अनुभव को संजोग ही कह सकते हैं..दफ्तरी भागमभाग और जुतम-जुताई के बाद थकान उतारने का अपना एक ही जरिया है गप्पबाजी..कभी वह कोरी होती है तो कभी उसमें बौद्धिकता का छौंका भी लग जाता है..जुलाई के आखिरी हफ्ते के उस दिन दफ्तर से निजात के बाद खुद को सहज करने के लिए उस दिन भी एक अड्डे पर जाने का विचार था..लेकिन अचानक आई बारिश ने इरादा बदलने को बाध्य कर दिया..