सोमवार, 18 अगस्त 2014

राजेंद्र यादव बिना हंस का पहला सालाना जलसा


उमेश चतुर्वेदी
(वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय द्वारा संपादित पत्रिका यथावत में प्रकाशित)
31 जुलाई 2014 की दिल्ली के ऐवान-ए-गालिब सभागार में हर साल की तरह गहमागहमी तो थी, लेकिन बौद्धिक समाज के बीच वह गर्मजोशी नजर नहीं आ रही थी, जो कथा और विचार पत्रिका हंस के सालाना जलसे की जान हुआ करती थी..इसके पुनर्संस्थापक और संपादक रहे राजेंद्र यादव से सहमति रखने वाले हों या असहमति, इक्का-दुक्का अवसरों को छोड़ दें तो इस कार्यक्रम में अपनी शिरकत जरूर करते रहे..2013 के कार्यक्रम की अनुगूंज ऐसी रही थी कि जिस वाम और प्रगतिवादी खेमे की बौद्धिकता को चरम पर पहुंचाने के लिए राजेंद्र यादव अपने हंस रूपी मंच का इस्तेमाल करते रहे थे, उसी राजेंद्र यादव के खिलाफ उनकी ही धारा के समझे जाने वाले लोगों ने मोर्चा खोल दिया था। राजेंद्र जी का अपराध सिर्फ इतना ही था कि उन्होंने उस साल का कार्यक्रम -वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति- जिसमें उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे और राष्ट्रवादी खेमे के प्रखर चिंतक गोविंदाचार्य को मंच पर ना सिर्फ बुलाया था, बल्कि उनका सारगर्भित भाषण कराया था।