बुधवार, 1 अगस्त 2012


पुस्तक समीक्षा
संस्कृति और परंपराओं के बीच जिंदगी को खोजने की जद्दोजहद
उमेश चतुर्वेदी
आदिकवि बाल्मीकि ने दुनिया की पहली कृति रामायण में कहा है कि कुटुंब ही संस्कृति का आधार है। जब कुटुंब ही बिखर जाएगा तो संस्कृति छिन्न-भिन्न हो जाएगी। नई आर्थिकी ने सबसे पहली चोट कुटुंब पर ही की है। इससे कुटुंब बिखर रहा है और इसका असर यह है कि सभ्यता, संस्कृति और वातावरण सबकुछ छिन्न-भिन्न हो रहा है। पृथ्वी भले ही अपनी धुरी पर पहले की ही तरह घूम रही हो, लेकिन  दुर्भाग्यवश मानव मिजाज से लेकर मौसम तक अपनी धुरी को छोड़ता जा रहा है। उससे भी दिलचस्प यह है कि सब कुछ आधुनिकता और आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के नाम पर हो रहा है। यह सच है कि परंपराओं में कई अंधविश्वास भी हैं, कई दुरभिसंधियां भी हैं।