गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

ताकि बन सके रोशनी की नई लकीर

उमेश चतुर्वेदी
"कोई भी बुद्धिमान शासक किसी ऐसे वचन का निर्वाह नहीं कर सकता और न ही उसे करना चाहिए..जिससे उसे नुकसान होता हो और जब उस वचन को पूरा करने के लिए बाध्यकारी कारण समाप्त हो चुके हों " - द प्रिंस  में मैकियावेली।
मशहूर लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता महाश्वेता देवी इन दिनों जिस तरह से ममता बनर्जी पर हमले कर रही हैं. ममता को फासिस्ट कहने से भी अब महाश्वेता देवी को झिझक नहीं रही। इससे मैकियावेली का यह कथन एक बार फिर याद आता है। माओवादी किशनजी की मुठभेड़ में हुई मौत के बाद तो वरवर राव तो ममता का विरोध कर ही रहे हैं, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और दूसरी वामपंथी पार्टियां भी ममता के खिलाफ हो गई हैं।