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शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011
रविवार, 9 अक्तूबर 2011
हरियाणवी फिल्म की भावी चुनौतियां
उमेश चतुर्वेदी
हरियाणा अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में हर बार एक सवाल जरूर उठता है...कि जब भोजपुरी जैसी क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों का करोड़ों का बाजार हो सकता है तो हरियाणवी भाषा की फिल्मों का बाजार क्यों नहीं बनाया जा सकता है। यह सवाल इसलिए भी वाजिब है कि भारत में भोजपुरी भाषाभाषियों की संख्या करीब चार करोड़ है, जबकि हरियाणवी या उसकी तर्ज वाली हिंदी बोलने वालों की संख्या इसकी तुलना में कुछ ही कम यानी तीन करोड़ है। जाहिर है कि हरियाणवी सिनेमा का एक बड़ा बाजार बनाया जा सकता है। तीसरे हरियाणा फिल्म फेस्टिवल के दौरान 2010 में हरियाणवी की पहली फिल्म चंद्रावल की नायिका ऊषा शर्मा से लगायत हरियाणा की माटी के फिल्मी लाल यशपाल शर्मा और सतीश कौशिक तक यह सवाल उठाते रहे हैं और इसी तर्ज पर सरकार से मांग करते रहे हैं। यह सवाल चौथे हरियाणा फिल्म फेस्टिवल में भी उठा।
हरियाणा अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में हर बार एक सवाल जरूर उठता है...कि जब भोजपुरी जैसी क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों का करोड़ों का बाजार हो सकता है तो हरियाणवी भाषा की फिल्मों का बाजार क्यों नहीं बनाया जा सकता है। यह सवाल इसलिए भी वाजिब है कि भारत में भोजपुरी भाषाभाषियों की संख्या करीब चार करोड़ है, जबकि हरियाणवी या उसकी तर्ज वाली हिंदी बोलने वालों की संख्या इसकी तुलना में कुछ ही कम यानी तीन करोड़ है। जाहिर है कि हरियाणवी सिनेमा का एक बड़ा बाजार बनाया जा सकता है। तीसरे हरियाणा फिल्म फेस्टिवल के दौरान 2010 में हरियाणवी की पहली फिल्म चंद्रावल की नायिका ऊषा शर्मा से लगायत हरियाणा की माटी के फिल्मी लाल यशपाल शर्मा और सतीश कौशिक तक यह सवाल उठाते रहे हैं और इसी तर्ज पर सरकार से मांग करते रहे हैं। यह सवाल चौथे हरियाणा फिल्म फेस्टिवल में भी उठा।
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