गुरुवार, 29 सितंबर 2011

हिंदी के गौरव का दिन

उमेश चतुर्वेदी
तीन साल पहले की बात है....दिल्ली के प्रेस क्लब में एक हस्ताक्षर अभियान चलाया जा रहा था...इलाहाबाद में रह रहे एक साहित्यकार के बेटे उन्हें मानव संसाधन विकास मंत्रालय से आर्थिक मदद दिलाने के लिए इस अभियान में जुड़े हुए थे। उन्होंने इन पंक्तियों के लेखक के सामने भी वह चिट्ठी रखी, यह कहते हुए कि अगर उचित लगे तो इस पर हस्ताक्षर कर दो... पता नही उस अभियान ने उन्हें आर्थिक दुश्चिंताओं से मुक्त किया या नहीं...अब अमरकांत को भारतीय साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार मिलने की घोषणा हो चुकी है...लेकिन यह पुरस्कार भी उनकी जिंदगी को आर्थिक तौर पर पूरी तरह सुरक्षित शायद ही बना पाए। श्रीलाल शुक्ल को उनके ही साथ ज्ञानपीठ ने सम्मानित करने का निर्णय लिया है।

मंगलवार, 27 सितंबर 2011

हारूद का रद्द होना

उमेश चतुर्वेदी
कश्मीर घाटी में शांति लाने की बारूदी और राजनीतिक कोशिशों के बीच संस्कृति की धारा अब तक खामोश ही रही है...जिस कश्मीरी भाषा ने ललद्यद जैसी लब्धप्रतिष्ठ और क्रांतिकारी कवियत्री को पैदा किया हो...वहां की संस्कृति और साहित्यिक धारा का शांति के पक्ष में न उतरने की वजह भले ही बारूद की दुर्गंध और संगीनों की छांह रही हो...लेकिन पहली बार घाटी में संस्कृति की धारा उठती नजर आई थी। कश्मीर विश्वविद्यालय के श्रीनगर कैंपस और श्रीनगर के दिल्ली पब्लिक स्कूल में चौबीस से छब्बीस सितंबर तक कश्मीरी साहित्य का अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन हारूद होना था।