गुरुवार, 17 जनवरी 2008

भदेसपन की भाषा और तकनीक का साथ

उमेश चतुर्वेदी

भाषा में भदेस हूं,इतना कायर हूं कि उत्तर प्रदेश हूं। सुदामा पांडे धूमिल ने ये कविता भले ही पूरे उत्तर प्रदेश के संदर्भ में लिखी थी, लेकिन उन्होंने असल में जिस भदेसपन की बात की थी, वह दरअसल पूर्वी उत्तर प्रदेश में ही पाई जाती है। और सच कहें तो ये देसीपन (भदेसपन) खासतौर पर भोजपुरीभाषी इलाके में ही पाई जाती है। भोजपुरी के अमर गायक और लोक कलाकार भिखारी ठाकुर के मशहूर नाटक विदेसिया या गबरघिंचोक में इस भदेसपन की खूब चर्चा मिलती है। इस भदेस इलाके ने देश-विदेश में ख्यात ढेरों विभूतियों को जन्म दिया, साहित्य और राजनीति से लेकर समाजशास्त्रीय विद्वानों तक को पैदा किया, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर इस इलाके को सहज सम्मान का पात्र कभी नहीं माना गया। शायद यही वजह है कि इंटरनेट की अत्याधुनिक दुनिया में जो भोजपुरी वेबसाइटें काम कर रही हैं या फिर सक्रिय हैं, उनका मूल उद्देश्य अपने इसी स्वाभिमान को बचाए और बनाए रखना तो है ही, उसे नए सिरे से प्रतिष्ठित कराना भी है।

गूगल या याहू से सर्च करने पर भोजपुरी की जिन वेबसाइटों से हमारा पहला परिचय होता है, उसमें सबसे पहला नाम भोजपुरी संसार का होता है। सही मायने में ये याहू के भोजपुरी ग्रुप की वेबसाइट है, जिसका मकसद भोजपुरी संस्कृति और सामाजिक ढांचे से दुनियाभर को परिचित कराना तो है ही, दुनियाभर में फैले भोजपुरीभाषी लोगों को भी एक सूत्र में जोड़ना भी है। इस साइट पर भोजपुरी कहानी, कविता से लेकर लालबहादुर ओझा लिखित भोजपुरी सिनेमा का इतिहास तक, सब कुछ है। भोजपुरी ग्रुप की ये साइट स्वतंत्र रूप से भोजपुरी डॉट ओआरजी के नाम से भी आपको इंटरनेट पर मिल सकती है। इन दिनों भोजपुरी में सीवान जिले के सुधीर कुमार सिंह ने भोजपुरिया डॉट कॉम नाम से वेब पोर्टल मैदान में उतारा है। जमशेदपुर में अपनी खुद की सॉफ्टवेयर कंपनी चला रहे सुधीर कुमार ने अपनी इस साइट पर भोजपुरी साहित्य और संस्कृति से लेकर रीति-रिवाज़ों और खानपान को भी पूरी शिद्दत से पेश किया है। इन दिनों उन्होंने फिल्मोत्सव की तर्ज पर भोजपुरी सिनेमा का समारोह आयोजित करना शुरु किया है। बिहार और भोजपुरी इलाके के मशहूर छठ पूजा का आयोजन और इसके प्रसाद का वितरण दुनियाभर में करके ये भोजपुरी संस्कृति और समाज का अलख जगाने में जुटे हुए हैं।

भोजपुरी इलाके में रहकर जितने लोग सूचनाक्रांति की इस नई दुनिया से नहीं जुड़ रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा वे लोग सूचना और तकनीकी क्रांति के जरिए भोजपुरी की सेवा कर रहे हैं, जो अपने कामकाज के सिलसिले में सिलिकॉन वैली या सिंगापुर या फिर ब्रिटेन में रह रहे हैं। अमेरिका में एक भोजपुरी एसोसिएशन है-भोजपुरी एसोसिएशन ऑफ नॉर्थ अमेरिका। इसके कर्ता-धर्ता हैं शैलेश मिश्र और इनकी साइट है-भोजपुरी डॉट यूएस। इसी तरह भोजपुरी सोसाइटी ऑफ सिंगापुर की भी एक साइट पूरे जोशोखरोश से मौजूद है- भोजपुरी सिंगापुर डॉट कॉम। एक ऐसी ही साइट है गोरखपुर के मशहूर इलाके चौरीचौरा के नाम पर चौरीचौरा डॉट कॉम। गोरखपुर के निवासी आर एन शुक्ला और सुधांशु त्रिपाठी मिलकर इस पोर्टल को चला रहे हैं। जैसा कि नाम से स्पष्ट है, इस साइट पर गोरखपुर की ज्यादा सूचनाएं और समाचार और सांस्कृतिक विविधताओं की जानकारी है। लेकिन भोजपुरी संस्कृति और समाज की खांटी झलक भी इस साइट के जरिए आपको मिल सकती है।

लेकिन ये सब साइटें या तो रोमन लिपि में अंग्रेजी में भोजपुरी इलाके की सांस्कृतिक रस-गंध लिए हुए हैं या फिर उनमें एक कोना देवनागरी लिपि में भोजपुरी का भी है। लेकिन पूरी तरह से देवनागरी लिपि में भोजपुरी की साइट है अंजोरिया डॉट कॉम। बलिया जैसी छोटी जगह से अपने व्यक्तिगत प्रयासों से ओपी सिंह नामक एक सज्जन भोजपुरी इलाके की अहम खबरों को दुनियाभर में फैले भोजपुरीभाषी और भोजपुरी मूल के लोगों तक पहुंचा रहे हैं।

अब ब्लाìग की चर्चा न हो तो ये आलेख अधूरा ही रहेगा। उपर उल्लिखित साइटें जहां भोजपुरी इलाके की सांस्कृतिक रसगंध को फैलाने और उसके जरिए फिजी, गुयाना. त्रिनिडाड और मारीशस से लेकर दुनियाभर में फैले भोजपुरी समाज को जोड़ने की कोशिश कर रहीं हैं तो दूसरी तरफ ब्लॉग की दुनिया में मौजूद लिट्टीचोखा डॉट कॉम और भोजपुरी डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम सही मायने में भोजपुरी इलाके की खांटी और खरी-खरी बातें पेश कर रहीं हैं। कुछ यही हाल भोजपुरी डॉट संसद डॉट ओआरजी और भोजपुरी डॉट ब्लॉगमैट्रिक्स डॉट कॉम का भी है।

ये भी सच है कि सिर्फ देश भर में ही करीब चौदह करोड़ लोग भोजपुरी बोलते हैं। एक अनुमान के मुताबिक सिर्फ देश में ही करीब चार करोड़ भोजपुरीभाषी विस्थापित हैं. जो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और गुजरात से लेकर अरूणाचल प्रदेश तक फैले हुए हैं। इसके अलावा करीब तीन करोड़ भोजपुरी भाषी और भोजपुरी मूल के लोग दुनियाभर में भी फैले हुए हैं। ऐसे में ये कुछ चुनिंदा वेब साइटें ऊंट के मुंह में जीरा के ही समान हैं। लेकिन भदेसपन से भरपूर संस्कृति वाले लोगों का अपनी सांस्कृतिक अस्मिता को बचाए और बनाए रखने की ये कोशिश भी किसी तरह से कम करके नहीं आंकी जा सकती।

कॉपी एडिटर और उपसंपादक की चीख

ये कविता हमें प्रियदर्शन ने भेजी है। अंशुल शुक्ला की संग्रहीत या रचित इस कविता में उपसंपादक की पीड़ा का जिक्र है। यही वजह है कि मीडिया मीमांसा पर इस कविता को डाला जा रहा है।


ये मीटिंग ये स्टोरी ये फीचर की दुनिया
ये इंसान के दुश्मन, क्वार्क की दुनिया
ये डेडलाइन के भूखे, एडिटर की दुनिया
ये पेज अगर बन भी जाए तो क्या है?

यहां एक खिलौना है सब एडिटर की हस्ती
ये बस्ती है मुर्दा रिपोर्टर की बस्ती
यहां पर तो रेजेज से इंन्फ्लेशन ही सस्ती
ये अप्रेजल अगर हो भी जाए तो क्या है ?

हर एक कंप्यूटर घायल, हर एक न्यूज ही बासी
डिजाइनर में उलझन, फोटोग्राफर्स में उदासी
ये ऑफिस है या आलमी मैनेजमेंट की
सर्कुलेशन अगर बढ़ भी जाए तो क्या है ?

जला दो, जला दो इसे, फूंक डालो मॉनीटर
मेरे नाम का हटा दो ये यूजर
तुम्हारा है, तुम्हीं संभालो ये कंप्यूटर
ये पेपर अगर चल भी जाए तो क्या है ?