सोमवार, 17 मार्च 2008

बना रहेगा सहअस्तित्व का दौर

उमेश चतुर्वेदी
माध्यमों के इतिहास से एक अजीब सा संयोग जु़ड़ा हुआ है। दुनिया में जब-जब किसी नए माध्यम की आहट मिलती है – पुराने माध्यमों के अंत की घोषणा होने लगती है। पिछली सदी के दूसरे दशक में जब जी मार्कोनी ने रेडियो की खोज की तो अमेरिका और यूरोप में जमे-जमाए अखबारों पर संकट की घोषणाएं की जाने लगी थी। कुछ वैसे ही – जैसे पिछले दिनों फुकुओमा ने इतिहास के अंत का ऐलान कर दिया था। पिछली सदी के तीसरे दशक में इसी तरह जब जे एल बेयर्ड ने टेलीविजन का आविष्कार किया तो अखबारों के साथ ही रेडियो की अस्मिता भी खतरे में दिखने लगी थी। लेकिन हुआ ठीक इसका उलटा। तब से लेकर टेम्स और हडसन नदियों में ठीक वैसे ही काफी पानी बह चुका है – जैसे अपनी गंगा और यमुना में। लेकिन अमेरिका और यूरोप में अखबारों के सर्कुलेशन और पृष्ठों में लगातार विकास हुआ है। टेलीविजन के चैनल भी बढ़े – रेडियो की दुनिया में क्रांति भी हुई। लेकिन न्यूयार्क टाइम्स हो या फिर वाशिंगटन पोस्ट- सबका सर्कुलेशन बढ़ा। 1920 से लेकर 1970 तक विकसित दुनिया में अखबार, रेडियो और टेलीविजन एक दूसरे के सहभागी के तौर पर विकसित होते रहे। इस सहभाग ने रेडियो और टेलीविजन को भी पारंपरिक मीडिया की श्रेणी में ला दिया। लेकिन 1969 में जब अपरानेट की खोज हुई तो एक बार फिर इस पारंपरिक मीडिया को अपनी अस्मिता खतरे में पड़ती दिखनी शुरू हुई। इस अपरानेट से ही आगे चलकर इंटरनेट का विस्तार हुआ। लेकिन मीडिया के इन सभी माध्य्मों के अस्तित्व पर कोई खतरा नजर नहीं आया। आज सच है कि अमेरिकी और यूरोपीय अखबार सर्कुलेशन न बढ़ पाने की परेशानियों से जूझ रहे हैं। लेकिन इसकी वजह इंटरनेट या रेडिया नहीं हैं। बल्कि वहां का समाज ऐसे विंदु पर पहुंच चुका है- जहां इन माध्यमों के विकास की गुंजाइश नहीं रही।
लेकिन अपने देश की स्थिति बिल्कुल उलट है। यहां आज भी देश में साक्षरता करीब 65 फीसदी ही पहुंच पाई है। यानी शत-प्रतिशत साक्षरता हासिल करने का लक्ष्य काफी पीछे है। ऐसे में यहां प्रिंट माध्यम का अभी भी तेजी से विस्तार हो रहा है। करीब एक दशक पहले जब इस देश में भी इंटरनेट ने दस्तक दी तो अखबारों में अपना इंटरनेट संस्करण निकालने की होड़ लग गई। 1999 और 2000 में डॉट कॉम का बुलबुला तेजी से उठा। तब भी अखबारों के अस्तित्व पर सवाल उठाए जा रहे थे। लेकिन यहां इंटरनेट का वह बुलबुला फूट गया। लेकिन नए सिरे से फिर इंटरनेट के प्रति जागरूकता बढ़ी। अखबारों और पत्रिकाओं के इंटरनेट संस्करण मुफ्त में वर्चुअल स्पेस में मिलने लगे। तब एक बार फिर यहां इनके जरिए पारंपरिक मीडिया के अंत का ऐलान किया जाने लगा। क्रमश:....

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