मंगलवार, 26 फ़रवरी 2008

हिंदी के विकास में विदेशी विद्वानों का योगदान-2

उमेश चतुर्वेदी
कई लोग ये जानकर भी हैरत में पड़ सकते हैं कि बंगाल एशियाटिक सोसायटी भले ही ओरिएंटल ज्ञान-विज्ञान के लिए मशहूर हुई, लेकिन उसकी स्थापना भी अपने हिंदी प्रेम के कारण सर विलियम जोन्स ने किया था। जिसने बाद में पृथ्वीराज रासो, कर्नल टॉड कृत राजस्थान, और बीसलदेव रासो समेत कई अनमोल और तकरीबन लुप्त हो चुके ग्रंथों की खोज की। कर्नल टॉड ने राजस्थानी लोकसाहित्य पर भी काफी काम किया था। इन ग्रंथों के प्रकाशन के बाद ही अंग्रेज सरकार की सरकारी मुद्रा में भी देवनागरी का प्रयोग होने लगा।
जब-जब हिंदी का इतिहास लिखा जाएगा, तब-तब अंग्रेज विद्वान एडम गिलक्राइस्ट का नाम सम्मान के साथ लिया जाएगा। वही पहले विद्वान हैं, जिन्होंने पहली बार हिंदी-अंग्रेजी का शब्दकोश तैयार किया। 1787-91 में इस शब्दकोश का हिंदोस्तानी- इंगलिश डिक्शनरी के नाम से दो खंडों में प्रकाशन हुआ था। गिलक्राइस्ट ही पहले विद्वान हैं- जिन्होंने हिंदी का पहली बार भाषावैज्ञानिक अध्ययन पेश किया। उनका ये अध्ययन 1798 में ओरियंटल लिंग्विस्ट के नाम से प्रकाशित हुआ। गिलक्राइस्ट ने 1799 में ओरियंटल सेमिनरी नाम से एक संस्था की स्थापना भी की। जिसके तहत हिंदुस्तानी का अध्ययन किया जाना था। इसके साथ ही ये संस्था यूरोपीय लोगों को अंग्रेजी के माध्यम से हिंदी भी सिखाती थी।
सन 1799 में एक योग्य अफसर विलियम वटर वर्थ बेली ने भारतीय सिविल सेवा में प्रवेश लिया। यहां ये तथ्य गौर करने लायक है कि तब तक Êसविल सेवा में प्रवेश पाने के लिए हिंदी की जानकारी होना औपचारिक तौर पर जरूरी हो गया था। बेली ने ना सिर्फ हिंदी का गहन अध्ययन किया, बल्कि 1800 की हिंदुस्तानी की परीक्षा में दूसरा स्थान हासिल किया था। सन 1802 में उन्होंने हिंदी की वाद-विवाद प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और प्रतियोगिता का मेडल और उस जमाने में डेढ़ हजार रूपए नगद भी जीते। बाद में ये अफसर लॉर्ड विलियम बेंटिक से कुछ समय पहले तक भारत का गवर्नर जनरल भी रहा।
जब सिविल अधिकारियों के लिए हिंदी की अनिवार्यता लागू कर दी गई तो यह महसूस किया जाने लगा कि पहले से नियुक्त अधिकारियों को भी हिंदुस्तानी की जानकारी दी जानी चाहिए। इसके लिए एक कॉलेज खोलना तय हुआ और अंग्रेज सरकार ने अपने एक अधिकारी मॉकस वेलेजली को यह कॉलेज खोलने की जिम्मेदारी सौंपी। मॉकस ने ही काफी परेशानी और मेहनत के बाद 4 मई 1800 को कलकत्ता - अब कोलकाता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की। बाद में गिलक्राइस्ट की इस कॉलेज में बतौर प्रोफेसर नियुक्ति की गई- जो सन 1800 से 1804 तक इस कॉलेज में कार्यरत रहे। जाने-माने भाषा वैज्ञानिक कैलाश चंद्र भाटिया का मानना है कि इतनी छोटी अवधि में गिलक्राइस्ट ने हिंदी के लिए ऐतिहासिक भूमिका निभाई। अपने प्राध्यापकी के इसी दौर में गिलक्राइस्ट ने मानक हिंदी को खड़ी बोली नाम दिया या दूसरे शब्दों में कहें तो खड़ी बोली को ही बतौर मानक हिंदी मान्यता दिलाई। गिलक्राइस्ट ने हिंदी को संवर्द्धित करने का भरपूर प्रयास किया। ये बात और है कि नौकरशाही के दबावों के चलते गिलक्राइस्ट को इस कॉलेज से इस्तीफा देने में ही भलाई सूझी। वैसे तो कई लोग इस कॉलेज में आते रहे- लेकिन यहां तैनात एक विद्वान विलियम प्राइस ने हिंदुस्तानी की नई व्याकरण जैसी पुस्तक की रचना करके हिंदुस्तानी की अहम सेवा की। क्रमश:...

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