सोमवार, 25 फ़रवरी 2008

हिंदी के विकास में विदेशी विद्वानों का योगदान-1

उमेश चतुर्वेदी
जिस ब्रिटिश सरकार के एक अधिकारी मैकाले ने क्लर्क बनाने के नाम पर अंग्रेजी जानने की अनिवार्यता शुरू की थी- बहुत लोगों को जानकर हैरत हो सकती है कि उसी सरकार ने 1881 में निर्णय कर लिया था कि भारतीय सिविल सेवा में वही अफसर चुने जाएंगे, जिन्हें हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाओं की समझ है। वैसे हिंदी का प्रशासनिक महत्व अंग्रेज सरकार ने सन 1800 से पहले ही समझना शुरू कर दिया था। दिलचस्प बात ये है कि इसके कारण कतिपय अंग्रेज विद्वान ही थे। कई लोगों को यह जानकार आश्चर्य होगा कि हिंदी का पहला व्याकरण डच भाषा में 1698 में लिखा गया था। इसे हॉलैड निवासी जॉन जीशुआ कैटलर ने हिंदुस्तानी भाषा नाम से लिखा था। इसी तरह हिंदी साहित्य का पहला इतिहास किसी हिंदुस्तानी विद्वान या हिंदुस्तानी भाषा में नहीं लिखा गया था। इसके बाद दो और महत्वपूर्ण पुस्तकें इसी भाषा में रची गईं। 1745 में लिखी पुस्तक हिंदुस्तानी व्याकरण और 1771 में प्रकाशित अल्फाबेतुम ब्रह्मनिकुम। इनके रचनाकारों के नाम हैं क्रमश: सर्वश्री बेंजामिन शुल्ज और कैसियानो बेलिगति। हिंदी साहित्य का पहला इतिहास फ्रेंच विद्वान गार्सां द तासी ने 1886 में ला लितरेतर ऐन ऐंदुई इंदुस्तानी नाम से लिखा था।
लेकिन हिंदी के सार्वकालिक और सार्वदेशिक महत्व को सबसे पहले एडवर्डटेरी नामक अंग्रेज विद्वान ने समझा था। उन्होंने 1655 में ही कहा था - हिंदुस्तान देश की बोलचाल की भाषा अरबी-फारसी जबानों से बहुत मिलती-जुलती है। लेकिन बोलने में उनसे ज्यादा सुखकर और आसान है। इसमें काफी रवानी है और थोड़े में बहुत कुछ कहा जा सकता है। एडवर्डटेरी को यह जानकार और प्रसन्नता हुई थी कि हिंदी भी अंग्रेजी की तरह बांए से दाएं लिखी जाती है, अरबी और उर्दू की तरह दाएं से बाएं नहीं। अंग्रेज विद्वानों की ये पीढ़ी निश्चित रूप से पूर्वाग्रह से दूर थी। इनके लिए क्षुद्र स्वार्थों का कोई स्थान नहीं था। इन्हीं सब कारणों से उन्होंने अपनी जिज्ञासा को आगे बढ़ाते हुए हिंदी का अध्ययन किया। एडवर्डटेरी के करीब एक सदी बाद 1782 में एक अंग्रेज अधिकारी हेनरी थॉमस कोल ब्रुक हिंदुस्तान आए। बंगाल सर्विस के योग्यतम अफसरों में उनका नाम था। उन्होंने हिंदुस्तानी भाषा का अध्ययन तो किया ही, संस्कृत से उनका विशेष अनुराग था। कालांतर में संस्कृत में विद्वत्ता के लिए वे विख्यात भी हुए। उन्होंने हिंदी के सार्वजनिक एवं सार्वदेशिक रूप को स्पष्ट करते हुए लिखा- जिस भाषा का व्यवहार पूरे हिंदुस्तान के लोग करते हैं, जो पढ़े-लिखे और अनपढ़ - हर तरह के लोगों की सामान्य बोलचाल की भी भाषा है, जिसे हर एक गांव के लोग समझ- बूझ लेते हैं, यथार्थ में उस भाषा का नाम हिंदी है।
क्रमश:....

1 टिप्पणी:

मृत्युंजय कुमार ने कहा…

इससे देश की अंग्रेजीदां नौकरशाही को सबक लेना चाहिए।